काल का हिसाब चुकता
डेरे में ठाकुर सिंह नाम का एक सत्संगी रहता था| उसको लोगों के घर में खाने की आदत थी| जीवन के आख़िरी दिनों में उसे प्लेग की बीमारी हो गयी| बड़े महाराज जी ने पूछा कि क्या हाल है? वह बोला जी, काल हिसाब माँगता है| मौत से चार दिन पहले बिल्कुल चुप हो गया| आख़िर उसने कहा कि सारा हिसाब दे दिया है, अब शब्द पढ़ो|
मन्ना सिंह ने शब्द पढ़ा| जब शब्द पढ़ा, उसकी रूह फ़ौरन अन्दर चली गयी| चेहरे पर ग़मी की जगह ख़ुशी छा गयी| इससे ज़्यादा सत्संगी शिष्य को मौत के वक़्त क्या चाहिए!
नाम की महिमा अपार है| जिस तरह आग की एक चिनगारी करोड़ों मन लकड़ियों को जला देती है, उसी तरह नाम की कमाई से कर्मों का हिसाब ख़त्म हो जाता है|
जबहिं नाम हिरदे धरा, भया पाप का नास|
मानो चिनगी आग की, परी पुरानी घास||
(कबीर साहिब)