जहाज़ का तूफ़ान से बचाव
जिस वक़्त गुरु हरकिशन जी चोला छोड़ने लगे तो उनके शिष्यों ने पूछा कि अब हमें कौन उपदेश देगा? आपने उत्तर दिया कि वह बाबा बकाला गाँव में मिलेगा| शिष्यों ने ढूँढ़ना शुरू कर दिया| लेकिन उन्हें उस गाँव में ऐसा कोई व्यक्ति न मिला जो उन्हें रूहानी उपदेश देने के क़ाबिल हो| इससे इस बात की अनिश्चितता पैदा हो गयी कि गुरु हरकिशन का उत्तराधिकारी कौन होगा| इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर सोढी खानदान के बाईस आदमी गुरु बन बैठे| इस दौरान गुरु हरकिशन जी के एक शिष्य तेग़ बहादुर चुपचाप एक बूढ़ी औरत के मकान में बैठे भजन कर रहे थे जिनके बारे में किसी को पता नहीं था|
उस ज़माने में मक्खनशाह नामक एक शिष्य जो सौदागर था, अपने माल का जहाज़ भरकर फ़ारस से भारत को ला रहा था| रास्ते में तूफ़ान के कारण जहाज़ अटक गया और डूबने लगा| डूबते हुए जहाज़ की छत पर बैठे मक्खनशाह ने घुटने टेककर और हाथ जोड़कर विनती की कि इस वक़्त जो गुरु है, अगर वह मेरे जहाज़ चल पड़ा| जब जहाज़ हिन्द महासागर के किनारे लगा तो माल बेचकर उसने काफ़ी लाभ कमाया| जब वह गुरु हरकिशन जी के दर्शन करने और अपनी भेंट अर्पण करने के लिए गया तो उसे पता चला कि गुरु साहिब तो चोला छोड़ चुके हैं| उसे बताया गया कि गुरु हरकिशन जी के उत्तराधिकारी के दर्शन के लिए उसे बाबा बकाला जाना पड़ेगा| वह पूछता-पूछता बाबा बकाला आ गया| वहाँ बाईस गुरु गद्दियों पर बैठे हुए थे| अब सोचने लगा कि मोहरें किसको दूँ, कुछ समझ में न आया| आख़िर पाँच-पाँच मोहरें सबके आगे रखता गया कि जिसने मेरे जहाज़ को पर लगाया है अपने-आप ही बोल पड़ेगा| लेकिन उन बाईस में से किसी ने भी जिक्र न किया, सिर्फ़ आशीर्वाद ही देते रहे कि ख़ुश रहो|
आख़िर उसने लोगों से पूछा कि यहाँ और भी कोई महात्मा है? किसी ने बताया कि एक और भी है जिसको ‘तेगा़’ कहते हैं| मन में सोचा कि चलो उनके भी दर्शन कर लें| जब गुरु तेग़ बहादुर जी के पास पहुँचा, तो पहले की तरह पाँच मोहरें आगे रखकर माथा टेक दिया| गुरु साहिब ने कहा “बाक़ी मोहरें कहाँ हैं? तूने पाँच सौ मोहरों का वायदा किया था, ज़रा मेरा कन्धा तो देख, जहाज़ की कीलों के कितने ज़ख़्म लोग हुए हैं|” इतना कहकर उन्होंने कुर्ता उतारकर कन्धा दिखा दिया| यह कौतुक देखकर मक्खनशाह ने चुपचाप पाँच सौ मोहरें रख दीं|
जब पक्का निश्चय हो गया तो उसी मकान की छत पर चढ़कर ऊँचे स्वर में आवाज़ लगायी, “गुरु लाधो रे! गुरु लाधो रे!” यानी गुरु मिल गया रे! गुरु मिल गया रे! जब लोगों को पता चला तो बाक़ी की बाईस गुरु गद्दियाँ उठ गयीं| उनका रोज़गार बन्द हो गया| जिज्ञासु बहुत बड़ी संख्या में गुरु तेग़ बहादुर साहिब की शरण में आने लगे| जब लोगों ने नामदान के लिए अर्ज़ की तो उन्होंने कहा कि गठरी भारी है, गुरु के भरोसे से ही उठायी जा सकती है|
सन्तों के पास नाम की दौलत होती है, सबकुछ होता है, फिर भी दम नहीं मारते, घमण्ड नहीं करते|
तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें आदेश दिया
है ताकि तुम जाकर फलदार बनो और तुम्हारा फल क़ायम रहे; जो
कुछ मेरे पिता से मेरे नाम पर माँगोगे तो वह तुमको देगा| (सेंट जॉन)