हमारे प्यार का खोखलापन
एक बुढ़िया थी| उसकी एक जवान लड़की थी| इत्तफ़ाक से वह लड़की सख़्त बीमार हो गयी| बहुत इलाज करवाया लेकिन फ़ायदा न हुआ| बुढ़िया कहने लगी कि हे परमात्मा! इसकी जगह मैं मर जाऊँ, यह बच जाये| मैं तो बूढ़ी हूँ| दुनिया में बहुत कुछ देख चुकी हूँ; यह जवान है, यह न मरे| बार-बार यही कहती|
एक दिन बाहर का दरवाज़ा खुला रह गया| कहीं से एक आवारा गाय अन्दर आ घुसी| रास्ते में एक देग़ पड़ी हुई थी| गाय ने खाने के लिए ज्यों ही देग़ में मुँह डाला उसके सींग उसमें फँस गये| लगी घबराकर इधर-उधर दौड़ने| अब देग़ के नीचे का काला हिस्सा सामने था| जब गाय ने दो-चार चक्कर लगाये तो बुढ़िया डर गयी और समझी कि मौत का फ़रिश्ता आ गया है| कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूँ, लड़की वह सामने पड़ी है, उसको ले जा|
सो मनुष्य बातें कुछ करता है और दिल में कुछ और होता है| लेकिन सच्चा सत्संगी नित्य मरता है और उसे अपनी मौत की इतनी ख़ुशी होती है जितनी किसी को अपनी शादी की भी नहीं होती|
परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किससे डरूँ?
परमेश्वर मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ है, मैं किसका भय खाऊँ? (साम्ज़)