गुरु रामदास और मिट्टी के चबूतरे
जब तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने अपना उत्तराधिकारी चुनने का मन बनाया तो उनके शिष्यों में से बहुत से ऐसे थे जिन्हें विश्वास था कि शायद गुरु साहिब उन पर दया करके उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दें| पर जैसा कि आम तौर पर ऐसी स्थिति में होता है, गुरु साहिब ने सबको इम्तिहान की कसौटी पर रख दिया| हुक्म दिया कि अमुक मैदान में अपनी-अपनी मिट्टी लाकर चबूतरे बनाओ|
सेवकों ने चबूतरे बनाये| आपने कहा, “ये ठीक नहीं हैं, फिर बनाओ|” लोगों ने फिर बनाये| आपने कहा, “ये भी ठीक नहीं हैं|” लोगों ने तीसरी बार बनाये| आपने कहा, “यह जगह ठीक नहीं है, अपनी-अपनी मिट्टी उस मैदान में ले जाओ और फिर बनाओ|” लोगों ने फिर बनाये, लेकिन आपने पसन्द न किये| जब आपके सतगुरु अंगद देव जी ने आपको अपना उत्तराधिकारी बनाया था तो उस समय आप काफ़ी बड़ी उम्र के थे| उस वक़्त गुरु साहिब अपनी उम्र के थे| उस वक़्त गुरु साहिब अपनी उम्र के आख़िरी पड़ाव में थे| जब चार-पाँच बार इस तरह हुआ, तब लोगों ने सोचा कि सत्तर साल के बाद आदमी की अक़्ल क़ायम नहीं रहती| सो यह सोचकर बहुत-से लोग हट गये| जो लगे रहे, उनसे गुरु साहिब चबूतरे बनवाते रहे और गिरवाते रहे|
आख़िर कब तक! एक-एक करके सभी छोड़ गये| केवल एक रामदास जी रह गये, जो चबूतरे बनाते और गुरु साहिब के पसन्द न करने पर गिरा देते| दूसरे शिष्य जो आपको गुरु जी के आदेश की पालना करते देख रहे थे, आपका मज़ाक़ उड़ाते हुए कहने लगे कि आप तो सौदाई हैं जो गुरु को प्रसन्न करने के लिए बार-बार चबूतरे बना रहे हैं| रामदास जी ने थोड़ी देर काम रोककर उनसे कहा, “भाइयो, सारी दुनिया अन्धी है| केवल एक व्यक्ति है, जिसे दिखायी देता है, और वे हैं मेरे सतगुरु| सतगुरु के सिवाय बाक़ी सारी दुनिया पागल है|” इस पर शिष्य कहने लगे कि आप और आपके गुरु दोनों की अक़्ल क़ायम नहीं है| रामदास जी रो पड़े और बोले कि आप मुझे चाहे जो मर्ज़ी कह लो, लेकिन गुरु साहिब को कुछ न कहो, क्योंकि अगर गुरु साहिब की अक़्ल क़ायम नहीं तो किसी की भी अक़्ल क़ायम नहीं है| गुरु साहिब अगर इसी तरह सारी उम्र हुक्म देते रहेंगे, तो रामदास सारी उम्र चबूतरे बनाता रहेगा|
आपने ख़ुशी-ख़ुशी सत्तर बार चबूतरे बनाये और सत्तर बार गिराये| इस पर गुरु अमर दास जी ने कहा, “रामदास! अब तुम भी चबूतरे बनाना छोड़ दो| मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि एक तुम ही हो जिसने बिना कुछ कहे पुरे समपर्ण से मेरा हुक्म माना है|” गुरु साहिब चबूतरे क्यों बनवाते और गिरवाते थे? केवल इसलिए कि जिस हृदय में नाम रखना है और जहाँ से करोड़ों जीवों को फ़ायदा उठाना है, वह हृदय भी किसी क़ाबिल होना चाहिए| रामदास जी का दृढ़ प्रेम देखकर आख़िर गुरु अमर दास जी ने उनको अपनी छाती से लगा लिया और रूहानी दौलत से भरपूर कर दिया|
एक व्यक्ति हज़ार बार युद्ध में हज़ार लोगों को जीत लेता है, जब
कि दूसरा व्यक्ति केवल अपने आप पर विजय प्राप्त करता है|
वास्तव में दूसरा व्यक्ति ही सबसे बड़ा विजेता है| (महात्मा बुद्ध)