गुरु की खुशी
जब बड़े महाराज जी डेरे में बाबा जैमल सिंह जी के पास आये तो वहाँ कोई मकान नहीं था, सिर्फ़ एक छोटी-सी कोठरी थी, जिसके आस-पास बाड़ लगी थी| पानी का कोई इंतज़ाम नहीं था| पानी दरिया से वड़ाइच गाँव के कुएँ से लाना पड़ता था|
जिस वक़्त वहाँ निर्माण का काम शुरू हुआ, बड़े महाराज जी ने एक कुआँ खुदवाया और मकान भी बनवाये| उस वक़्त नदी में बाढ़ आने के कारण वड़ाइच गाँव ढह रहा था| लोगों ने उनसे कहा कि आप यहाँ मकान बनवा रहे हो, कुआँ लगवा रहे हो, यह आपकी नासमझी है; अगर दरिया सब कुछ बहाकर ले गया तो? बड़े महाराज जी ने, जो उस समय सेना में एक इंजिनियर के तौर पर काम कर रहे थे, उनको जवाब दिया कि अगर मकान बन जायें और सतगुरु एक बार भी आकर इनमें बैठ जायें तो आप अपनी मेहनत को सफल समझेंगे, फिर चाहे दरिया ले जाये परवाह नहीं|
सो यह सतगुरु की सेवा है| मतलब यह कि जो धन साध-संगत की सेवा में लग जाये वह सफल है, उसकी रखवाली भी सतगुरु आप ही करते हैं|
जो सतगुरु की सेवा में लगा है वह बड़ा भाग्यशाली है सतगुरु
में मालिक समाया हुआ है|
(महाराज सावन सिंह)