घोड़े की अड़ी
एक फ़क़ीर का ज़िक्र है| वह घोड़े पर बैठकर कहीं जा रहा था| उसका एक तालिब यानी शिष्य जंगल में उसकी याद में बैठा हुआ उसके दर्शनों के लिए तड़प रहा था| फ़क़ीर जिधर घोड़ा ले जाना चाहे, उधर न जाये, वह इधर करे तो घोड़ा उधर चला जाये| जब उधर करे तो घोड़ा इधर चला जाये| जब घोड़ा अपनी जिद्द पर अड़ा रहा तो महात्मा बोले, “अच्छा! जिधर तेरी मर्ज़ी है ले चल|” तो वह घोडा सीधा जंगल की ओर लेकर चल पड़ा और तीन-चार मील जाकर रुक गया| आगे वह शिष्य बैठा हुआ था| मुर्शिद को देखकर उठ खड़ा हुआ| फ़क़ीर ने कहा, “यह सब क्या है?” शिष्य ने कहा कि आज मेरा दिल आपके दर्शन के लिए तड़प रहा था|
सो शिष्य के प्यार में इतनी कशिश होनी चाहिए|
गुरसिख प्रीति गुरु मिलै गलाटे|| (गुरु रामदास जी)