चोर से क़ुतुब
हज़रत अब्दुल क़ादिर जीलानी फ़ारस देश के बहुत कमाई वाले महात्मा थे| मुसलमानों में फ़क़ीरों के दर्जे होते हैं – क़ुतुब गौस आदि| किसी जगह का क़ुतुब मर गया था| वहाँ के लोगों ने आकर अर्ज़ की कि हज़रत, हमें क़ुतुब चाहिए| आपने कहा कि भेज देंगे| कुछ दिनों तक जब क़ुतुब न भेजा तो उन्होंने सोचा शायद हममें से किसी को क़ुतुब चुनना होगा, तो वे फिर आये और अर्ज़ की कि हज़रत, क़ुतुब चाहिए| कहने लगे, “भेज देंगे| थोड़ा और धैर्य रखिये, यह इतना आसान नहीं, ऐसे काम के लिए कुछ समय चाहिए|”
कुछ दिन इन्तज़ार करने के बाद लोगों ने तीसरी बार अर्ज़ की कि क़ुतुब की सख़्त ज़रूरत है इसलिए क़ुतुब जल्दी भेजा जाये| आपने कहा, “अच्छा कल ले जाना|” हज़रत अब्दुल क़ादिर अन्तर्यामी थे| उन्हें मुरीदों में कोई भी ऐसा कमाईवाला नज़र नहीं आया जो क़ुतुब के लायक़ हो| मन में सोचा कि क़ुतुब कहाँ से देंगे|
रात को एक चोर पीर साहिब के यहाँ उनकी घोड़ी चुराने के लिए आया| पहले आगे के पैर खोले, फिर पीछे के| जब पीछे के खोले तो आगे के बँध गये| जब आगे के खोले तो पीछे के बँध गये| चोर हठीला था| तय कर लिया कि घोड़ी ज़रूर लेकर जानी है| सारी रात खोलता रहा| जब भजन का वक़्त हुआ तो पीर साहिब जागे| क्या देखते हैं कि एक व्यक्ति घोड़ी खोल रहा है| आपने पूछा, “भाई, तू कौन है और क्या कर रहा है?” उसने कहा, “हज़रत! मैं चोर हूँ, सारी रात लगा रहा और बना कुछ भी नहीं!” आपको उसकी यह अदा पसन्द आ गयी कि इसने सच कहा है| प्यार के साथ कहा, “आ तुझे यह घोड़ी दे दूँ|” ज्यों ही नज़र भरकर उसे देखा, उसे चोर से क़ुतुब बना दिया| जब दिन हुआ तो उन लोगों ने आकर अर्ज़ की कि हज़रत, हमें क़ुतुब दो| आपने कहा कि जैसा मैंने आप से वायदा किया था, यह रहा तुम्हारा क़ुतुब और तुम देखोगे कि इतना श्रेष्ठ क़ुतुब सारी दुनिया में नहीं होगा|
गुरु अपनी दया-दृष्टि से जो चाहे कर दे|
यदि तू ख़ुश्क पत्थर या संगमरमर है तो कामिल फ़क़ीर की सोहबत में जाने पर तू हीरा बन जायेगा| (मौलाना रूम)