आदमी का उस्ताद आदमी
एक बार अकबर बादशाह की अपने वज़ीर बीरबल से बहस हो गयी| बीरबल ने कहा कि आदमी का उस्ताद आदमी है| अकबर बोला कि नहीं, क़ुदरत ने आदमी को इस तरह बनाया है कि जन्म से ही उसमें सब गुण मौजूद होते हैं|
बीरबल ने कहा कि मैं आपके विचार से सहमत नहीं| अकबर ने कहा कि अपनी बात का सबूत दो| बीरबल ने बारह साल की मोहलत माँगी| अकबर ने मंज़ूर कर लिया|
बीरबल ने अलग-अलग घरों से दस-बीस दूध पीते बच्चे इकट्ठे किये| उनकी परवरिश के लिए कोई गूँगी आया मुक्रर्रर की और जंगल में उनके रहने का इन्तज़ाम कर दिया और साथ में कुछ जंगली जानवर भी दे दिये| बारह साल के बाद उन बच्चों को दरबार में पेश किया| वे बन्दरों और जंगली जानवरों की तरह बोलने लगे| अकबर को बीरबल की बात यक़ीन हो गया|
सो आदमी का उस्ताद आदमी ही है| अगर उस्ताद या गुरु नेक और योग्य है तो शिष्य या शार्गिद की हालत भी अवश्य बदलेगी| जिस मंज़िल तक गुरु जाता है, उसी मंज़िल तक वह शिष्य को भी ले जा सकता है|
अन्तर में सतगुरु से समपर्क बना रहने पर ही नाम का प्यार जाग्रत
होता है| दुनियादारों की संगति से हमारी सुरत फिर इन्द्रियों में
आ गिरती है| इसलिए गुरु की संगति या सत्संग परम आवश्यक
हैं| गुरु के प्यार से हमें जगत् का मोह छोड़ने और अन्दर जाने
की शक्ति प्राप्त होती है| (महाराज जगत सिंह)