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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

बादशाह अकबर ने दरबार में सवाल पूछा – “ठंड में हमें ठंड लगती है, गर्मी में गर्मी बेहाल कर देती है, वर्षा में चारों तरफ पानी-ही-पानी हो जाता है, तब कौन-सा मौसम अच्छा कहा जाएगा?”

गणेश जी विघ्न विनाशक व शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अगर कोई सच्चे मन से गणोश जी की वंदना करता है, तो गौरी नंदन तुरंत प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। वैसे भी गणेश जी जिस स्थान पर निवास करते हैं, उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि तथा सिद्धि भी उनके साथ रहती हैं उनके दोनों पुत्र शुभ व लाभ का आगमन भी गणेश जी के साथ ही होता है। कभी-कभी तो भक्त भगवान को असमंजस में डाल देते हैं। पूजा-पाठ व भक्ति का जो वरदान मांगते हैं, वह निराला होता है।

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – “बीरबल, इस दुनिया में सबसे प्यारा क्या है?”

विक्रमादित्य न्यायप्रिय और प्रजा प्रेमी राजा थे| इसलिए उनसे न्याय करवाने के लिए देवता भी स्वर्गलोक से धरती पर आया करते थे| एक बार उन्होंने नदी के तट पर एक महल बनाने का आदेश दिया|

एक निर्धन व्यक्ति था। वह नित्य भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करता। एक बार दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी की श्रद्धा-भक्ति से पूजा-अर्चना की। कहते हैं उसकी आराधना से लक्ष्मी प्रसन्न हुईं। वह उसके सामने प्रकट हुईं और उसे एक अंगूठी भेंट देकर अदृश्य हो गईं। अंगूठी सामान्य नहीं थी। उसे पहनकर जैसे ही अगले दिन उसने धन पाने की कामना की, उसके सामने धन का ढेर लग गया।

बादशाह अकबर ने सोचा कि बीरबल को कोई ऐसा काम करने को कहा जाए जिसे वह कर ही न सके| यही सोचकर उन्होंने बीरबल को दरबार में बुलाया और कहा – “बीरबल, वैद्यजी ने एक ओषधि बनाने के लिए बैल के दूध की मांग की है, अत: हमें कहीं से बैल का दूध ला दो|”

एक किसान के खेत में अनेक कौए आते थे और उसकी फसल नष्ट कर उड़ जाते थे| यह उनके नित्य का सिलसिला था| इससे किसान बहुत दुखी था| उसने खेत में कई बार कपड़े व फूस के पुतले (बिजूका) खड़े किए, लेकिन उन्होंने उन पुतलों को भी नष्ट कर डाला|

तुलसी से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है। श्रीमद देवि भागवत पुराण में इनके अवतरण की दिव्य लीला कथा भी बनाई गई है। एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।

बादशाह अकबर को बीरबल से मजाक करने की सूझी| उन्होंने एक दांता बनवाया और उसे इस तरह का रूप दिया कि पता न चले कि वह दांता है, और जो भी उसमें हाथ डाले उसका हाथ फंस जाए| बादशाह ने उसमें एक सेब रख दिया|

रत्नापुरी के राजा चन्द्रभान के बड़े पुत्र राजकुमार ने अपने मनोरंजन के लिए वानरों की टोली और पीछे राजकुमार ने भेड़ों का झुंड पाल रखा था| वानर तो राजउधान में पेड़ों के फल खाकर सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे किन्तु भेड़ें प्रायः अवसर पाकर राजमहल के भोजनालय में घुस जाती और जो कुछ हाथ लगता, खा जाती|

यह कथा द्वापरयुग की है जब भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने काशी को जलाकर राख कर दिया था। बाद में यह वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह कथा इस प्रकार हैः

बादशाह अकबर जितने अच्छे शासक थे उतने ही अच्छे इंसान भी| उनका विनोदप्रिय स्वभाव सभी को भाता था|

नमक के एक व्यापारी के पास एक गधा था| वह नित्य ही प्रातःकाल उस पर नमक की बोरियाँ लादकर निकटवर्ती कस्बों में बेचने निकल जाया करता था| वहाँ तक जाने के लिए उसे कई छोटी-मोटी नदियाँ और नाले पार करने पड़ते थे|

एक बार भगवान नारायण वैकुण्ठलोक में सोये हुए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि करोड़ों चन्द्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरू-धारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेन्द्र-वन्दित, सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनन्दातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं।

बादशाह अकबर और बीरबल महल में यमुना नदी को निहार रहे थे| वर्षा के मौसम में नदी अपने पूरे उफान पर थी| इसी उफान के कारण बहाव से जो आवाज आ रही थी, उससे ऐसा लग रहा था मानो नदी रो रही है|

एक घोबी था| उसके पास एक घोड़ा और एक गधा था| एक दिन वह दोनों को बाज़ार लेकर जा रहा था| उस दिन धूप बहुत तेज़ थी| घोबी ने गधे की पीठ पर कपड़ों के बड़े-बड़े गट्ठर लाद रखे थे, जबकि घोड़े की पीठ पर कुछ नही था|

पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। स्वयंभुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था।

दिल्ली में देवीदास नामक एक व्यक्ति रहता था| उसे सभी लोग मनहूस कहते थे| उसके बारे में यह किंवदंती मशहूर थी कि जो प्रात: उसका मुंह देख लेता था उसे दिन भर भोजन भी नसीब नहीं होता था|

हम में से बहुत से लोग यही जानते हैं कि राधाजी श्रीकृष्ण की प्रेयसी थीं परन्तु इनका विवाह नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित “गर्ग संहिता” में यह वर्णन है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। एक बार नन्द बाबा कृष्ण जी को गोद में लिए हुए गाएं चरा रहे थे। गाएं चराते-चराते वे वन में काफी आगे निकल आए। अचानक बादल गरजने लगे और आंधी चलने लगी।

बादशाह अकबर अक्सर दरबार में पहेलियां भी बुझते रहते थे और अधिकतर मामलों में बीरबल ही उन पहेलियों को सुलझा पाता था|

किसी गाँव में एक नटखट बंदर ने बड़ा उत्पात मचा रखा था| वह लोगों के घरों में घुसकर खाने-पीने की चीजें लेकर भाग जाता| बच्चों-बड़ों को काट खाता| छतों पर सूख रहे कपड़ों को उठाकर ले जाता|

द्वापर युग की बात है, एक बार पृथ्वी पर पाप कर्म बहुत बढ़ गए। सभी देवता चिंतित थे। अपनी समस्या लेकर वे भगवान विष्णु के पास गए।

अकबर-बीरबल की नोंक-झोंक में यह एक प्रसिद्ध कथा है और अब तो ‘बीरबल की खिचड़ी’ को मुहावरे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है, जिसका सीधा-सा-अर्थ यह है कि किसी आसान काम को बहुत मुश्किल बताना या फिर किसी छोटे से काम को करने में बहुत अधिक समय लगा देना|

पंचवटी के सघन जंगलों में एक मदमस्त हाथी रहता था| वह जिधर से भी निकलता, उधर ही हाहाकार मच जाता| सभी जानवर प्राण बचाते हुए इधर-उधर भाग खड़े होते| इसी भाग-दौड़ में अनेक जानवर तो जीवन ही गँवा बैठते थे|

दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज मनाया जाता है। इसे यम द्वीतिया भी कहते हैं। इस दिन बहनें भाई के मस्तक पर टीका लगाकर उसकी लंबी उम्र की मनोकामना करती है।

सुबह का समय था| अकबर ने अपने सेवक से कहा – “जाओ जल्दी बुलाकर लाओ|”

एक जंगल में अन्य सभी वृक्ष तो सुंदर व सीधे खड़े हुए थे लेकिन एक वृक्ष ऐसा था जिसका तना भी टेढ़ा था और शाखाएँ भी टेढ़ी-मेडी थी| इसलिए वह कुबड़ा वृक्ष कहलाता था| कुबड़ा होने के कारण न राहगीर ही उसकी छाया में बैठते थे और न पक्षी ही उस पर घोंसला बनाते थे| जबकि अन्य वृक्षों का सभी उपयोग करते थे|

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी दीपावली का अगला दिन गोवर्धन पूजन, गौ पूजन के साथ-साथ अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। अन्नकूट पूजा में भगवान विष्णु अथवा उनके अवतार और अपने इष्ट देवता का इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर पूजन किया जाता हैं।

अकबर ने अपने दरबारियों से सवाल किया – “बारह में चार निकल गए, क्या बचा?”

श्री जार्ज बनार्ड शा अंग्रेजी भाषा के विख्यात लेखक एवं शिरोमणी नाटककार थे| कहते हैं कि वह जिस तरह अच्छा लिखते थे|