सत्य और न्याय की सदैव जीत होती है!
झारखंड में रामगढ़ के रजप्पा टाउनशिप में पिछले 30 साल से झाडू लगाने वाली सुमित्रा देवी का नौकरी का आखिरी दिन था। विदाई समारोह में शामिल होने के लिए उसके तीन अफसर बेटे शामिल हुए। उसके तीन बेटों में सीवान (बिहार) के डीएम महेंद्र कुमार, रेलवे के चीफ इंजीनियर वीरेन्द्र कुमार व रेलवे के चिकित्सक धीरेन्द्र कुमार हैं। बेटों ने मां के संघर्ष की कहानी से सबको अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि जिस नौकरी के दम पर उनकी मां ने उन्हें पढ़ाया-लिखााया, आज उसके विदाई समारोह में वे उनके साथ हैं। सुमित्रा देवी ने कहा कि यह नौकरी इसलिए नही छोड़ी कि इसी की कमाई से उनके बेटे पढ़-लिखकर आगे बढ़ सके और आज उन्हें गर्व का एहसास करा रहे हैं। सुमित्रा के जज्बे को लाखों सलाम जो पूरी जिंदगी झाडू लगाती रही, लेकिन उसने अपने तीनों बेटों को साहब बना दिया। इसे कहते है यदि कोई मनुष्य अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अच्छा इंसान बनाने का संकल्प कर ले तो फिर कुछ भी असंभव नहीं रहता। कुदरत चारों ओर से हमारा हौसला बढ़ाती है। सफलता कोई मंजिल नहीं वरन् सफलता ही रास्ता है। संग्राम जिन्दगी है लड़ना इसे पड़ेगा, जो लड़ नहीं सकेगा आगे नहीं बढ़ेगा।
मध्य प्रदेश के सीहोर में रात करीब दो बजे आष्टा-सीहोर मार्ग से गुजर रही निजी यात्री बस के ड्राइवर बाबूलाल को अचानक हार्ट अटैक हो गया। सीने में तेज दर्द होते ही बाबूलाल ने बस स्पीड धीमी करनी शुरू कर दी और बस किनारे लगा दिया। साहसी बाबू लाल ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बस को अनियंत्रित नहीं होने दिया। कुछ देर बाद उनकी मौत हो गई। ड्राइवर बाबूलाल को अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों की जान बचाने के लिए लाखों सलाम। हम उनकी महान आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करते हैं। लोगों की जान बचाने वाले इस तरह के बलिदानियों के परिवारजनों को सम्मान देना समाज का दायित्व है।
रांची के रहने वाली श्रेया प्रदीप की एक ट्वीट के अनुसार वह अपनी बीमार मां के साथ बेंगलुरू से इंडिगो फ्लाइट में सफर कर रही थी। उन्हें गेट पास ही एक्सएल सीट दी गई, ताकि उनकी मां को बैठने में सहूलियत हो, जो चल नहीं सकती थी। कोलकाता के स्टाॅप के दौरान पता चला कि असल में दोनों सीटें केन्द्रीय उड्डयन मंत्री श्री जयंत सिन्हा तथा उनकी पत्नी के लिए बुक हैं। लेकिन जब फ्लाइट में आते ही उन्हें पता चला तो उन्होंने अपनी आरामदेह सीट छोड़ दी और उन्होंने इकाॅनमी क्लास में सफर किया। अब यह ट्वीट वायरल हो रहा है और लोग जयंत सिन्हा की ओर से दिखाई गई मानवता की तारीफ कर रहे हैं। किसी के काम जो आये उसे इंसान कहते है, पराया दर्द जो अपनाये उसे इंसान कहते है। यहां ऐसा कौन सा इंसान है जिसने दुःख नहीं झेले। इसलिए बन्धु! सत्य और न्याय की राह पर ध्येयपूर्वक अकेला चलना है। यदि हमारा कोई साथ न दे तो हमें खुद से प्रीत जोड़ लेना चाहिए। धरती को बिछोना तथा आकाश को चादर बनाकर ओड़ लेना चाहिए। संसार में ऐसा कौन सा इंसान है जिसने संसार में आकर दुःख नहीं झेले हैं।
देश के छोटे-बड़े शहरों में ऐसी स्पोट्र्स अकादमी बनाई जाए जिसमें दिव्यांगों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाए। यह बातें पैरालंपिक में रजत पदक विजेता पहली महिला खिलाड़ी दीपा मलिक ने लखनऊ में आयोजित एक प्रेसवार्ता में कहीं। उन्होंने कहा कि कई रिकाॅर्ड मेरे नाम हैं। अवार्डों से मेरा कमरा भरा हुआ है इसके बावजूद भारत के गौरव बढ़ाने के लिए जीतने की मेरी भूख कम नहीं हुई है। मैं और कीर्तिमान स्थापित करूं. यह कहना है पैरालम्पिक में शाटपुट में सिल्वर मेडल जीतने वाली दीपा मलिक का। दीपा से पहले किसी भी महिला दिव्यांग खिलाड़ी ने यह कारनामा नहीं किया है। दीपा अभी भारत में बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं अभियान के साथ ही वह महिला सशक्तिकरण पर काम करना चाहती है। दीपा ने मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव से मिलकर दिव्यागों की स्पोर्ट्स अकादमी खोलने की मांग की। मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने सरकार की ओर से पूरा सहयोग देने का वादा किया। दीपा मलिक के संकल्प से भरे इस जज्बे को लाखों सलाम। जीवन में दुःखों से साक्षात्कार करने वाला व्यक्ति ही दूसरों की पीड़ा को संवेदनशील होकर ही महसूस कर सकता है। एक दिव्यांग ही एक दिव्यांग की पीड़ा को अच्छी तरह महसूस कर सकता है।
सभी केन्द्रीय कर्मचारियों इसमें अधिकारी भी शामिल हंै, को जल्द ही हर शुक्रवार को बताना होगा कि उन्होंने हफ्ते भर में क्या काम किया और कितना काम पेडिंग रह गया है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर केन्द्र सरकार ने कर्मचारियों के कामकाज को आंकने और ग्रेडिंग में पारदर्शिता के लिए यह नई व्यवस्था अगले वर्ष से लागू हो जायेगी। देश में लगभग 50 लाख केन्द्रीय कर्मी हैं। सरकार की इस मंशा से केन्द्रीय कर्मचारियों को अच्छी सैलरी के साथ अच्छी तरह कार्य भी करने की प्रेरणा मिलेगी। केन्द्र सरकार की एक अच्छी पहल है। साथ ही इससे आम जनता को सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता को निरन्तर विकसित होते देखने तथा अनुभव करने का सुअवसर मिलेगा। सरकारी कर्मचारियों का पूरा ध्यान कार्य निपटाने की जवाबदेही पर फोकस होने से समाज का चहुँमुखी विकास होगा। साथ सरकारी सेवाओं के प्रति लोगों का सम्मान तथा विश्वास बढ़ेगा। सेवा भाव से की जाने वाली नौकरी या व्यवसाय ही व्यक्तित्व तथा प्रसन्नता के विकास का सबसे सरल उपाय है। बन्धु, एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल, जग में रह जायेगे यारो तेरे बोल। दूजे के होठो को देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़ फिर दुनिया से बोल – एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल, जग में रह जायेगे यारो तेरे बोल।
पठानकोट एयरबेस अटैक के कवरेज के मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हिन्दी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन का प्रतिबंध लगाने का फैसला स्थगित करने का फैसला किया है। ऐसा चैनल के फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने के बाद किया गया। अधिकारियों ने कहा कि अपील का निपटारा होने तक फैसले को स्थगित किया गया है। सरकार को मीडिया को संविधान तथा कानून के अन्तर्गत कार्य करने देना चाहिए। देश की सुरक्षा के लिए वतन के सिपाही होते हैं उसी प्रकार लोकतंत्र की रक्षा के लिए कलम के सिपाही अपनी भूमिका निभाते है। मीडिया लोक सेवकों को कार्य के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रेरित करता है। संविधान के अनुसार कल्याणकारी राज्य का गठन करने में लोकतंत्र के चारों स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा मीडिया की अह्म भूमिका है। इन चारों स्तम्भों की अपने दायित्वों तथा अधिकारों के प्रति जवाबदेही लोकतंत्र की सुन्दरता है।
जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों के कैलेंडर का अनुपालन करने वालों की संख्या तेजी से घट रही है। सेना, सुरक्षा बलों के अभियान का असर घाटी में हुआ है। लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी शुरू करने को उत्सुक है। सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों द्वारा गृहमंत्रालय को भेजे गए इनपुट में कहा गया है कि अलगावादियों की अपील पहले जैसी कारगर नहीं नजर आ रही है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि जम्मू कश्मीर में 12वीं बोर्ड परीक्षा में 95 प्रतिशत छात्रों ने उपस्थिति दर्ज कराकर आतंकियों को करारा जवाब दिया है। अलगावादियों ने पिछले महिनों में 30 फीसदी स्कूलों को नुकसान पहुंचाया है। अलगावादियों का फोकस विध्वंस पर होता है हम उसका जवाब अपना फोकस सृजन पर करके दे सकते हैं। बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए। आज के बच्चे ही कल के समाज का भविष्य हैं। आतंकवादियों से सेना के तरीके से निपटना ही सही है। लेकिन आगे से कोई नवयुवक के कदम आतंकवाद की गलत राह पर न बढ़े इसके लिए हमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, समृद्धि को विश्व के प्रत्येक नागरिक के लिए सर्वसुलभ बनाना होगा।
कई बार हम बुराई से लड़ते-लड़ते अपने आप में ही बुराई पैदा कर लेते हैं। हम शत्रुओं को इतने ध्यान से देखते हैं कि उनके ज्यादातर अवगुण हममें ही आ जाते हैं। शत्रु से निपटने में हम भी शत्रु जैसे हो जाते हैं। जब कोई हमारे साथ अभद्रता करें तो हम उनकी प्रशंसा क्यों करें? इसका जवाब है कि प्रशंसा करना मेरा चरित्र है और अभद्रता करना उसका चरित्र। इसलिए कहा गया है कि गलत जवाब गलत से देना सही नहीं ठहराया जा सकता। जो कोई भी लोक कल्याण की राह पर ध्येयपूर्वक सहन करता है प्रकृति उसका इनाम बढ़ा देती है। यह कुदरत का नियम है कि अच्छाई देने से वह कई गुना होकर वापिस आती है तथा बुराई देने से वह कई गुना होकर हमारे पास वापिस आती है। हम हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। यह सोच बदलनी होगी। अगर हम समर्थ हैं। हमारे पास दौलत है, तो हमें समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। जब हमारे पास पैसा और ताकत दोनों हों, तब समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। हमेशा सोचे मैं भारत तथा सारी मानव जाति के लिए बिना किसी धर्म-जाति के भेदभाव के क्या सकता हूँ?
वर्तमान को लेकर नकारात्मक सोच हर दौर की सच्चाई रही है। वर्तमान किसी के लिए सर्वोत्तम समय है तो किसी के लिए निकृष्टतम समय है। सच यह है कि मौजूदा समय की भी एक राह विनाश की ओर जाती है, तो दूसरी नवसृजन की ओर। हर समय की तरह आज भी ज्यादातर लोग नवसृजक की भूमिका में हैं। जिन्हें लगता है कि समय के बगीचे में फूल से ज्यादा खरपतवार हैं, तो उन्हें बातुनी नहीं बल्कि कर्मशील होना चाहिए। खुरपे लेकर उन्हें बगीचे में होना चाहिए। विचारक शोपनहार ने कहा है कि हम जो चाहते हैं, उसे पा सकते हैं, पर हम जो चाहते हैं, उसे चाह नहीं सकते। किसी अंडे का खोल अगर बाहरी शक्ति से टूटता है, तो जीवन का अंत हो जाता है। वहीं अंडे का खोल अगर आंतरिक शक्ति से टूटता है तो एक जीवन की शुरूआत होती है। समय को लेकर हमारी शिकायतें दूर करने का स्त्रोत भी हमारे अंदर है। अर्थात बीमारी का कारण भी हमारे अंदर है तथा बीमारी की दवा भी हमारे अंदर है। इन दोनों ही स्थितियों को निर्मित करने में हमारी सहमति और अस्वीकृति की प्रमुख भूमिका होती है। हम जैसा आर्डर अपने को देंगे वैसे विचारों से हम घिर जाते हैं। इसलिए हमेशा हॅप्पी थाॅट का आर्डर देने का अभ्यास करना चाहिए।
हमारा लक्ष्य पर हमेशा फोकस रहने से राह की बाधायें नहीं दिखाई देती हैं। जैसे ही हमारा फोकस लक्ष्य से हटा वैसे ही बाधायें सामने खड़ी हो जाती है। आमतौर पर अन्तिम समय में लोगों को कहते सुना जाता है कि जीवन में थोड़ा समय और मिल जाता तो मैं उस काम को ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकता था क्योंकि अंतिम समय में कार्यक्षमता बेहतर हो जाती है। हाल ही में हुए एक शोध में पाया गया कि जब व्यक्ति को आभास होता है कि उसकी मौत करीब है या असुरक्षा की भावना उसके मन चारों ओर से घेर लेती है तो उस स्थिति में वह तीव्र गति से और अच्छा काम करने लगता है। वह हर सुबह उठते समय नये जन्म मिलने के तथा सोते समय मृत्यु की गोद में सो जाने के भाव से जीता है। हमें एक दिन में पूरी जिन्दगी जी लेना का अभ्यास करना चाहिए। किसी यह पता नहीं होता कि किस क्षण में उसकी मृत्यु का सन्देश छिपा है। इसलिए हमें रोजाना सोने के पूर्व अपने दिन भर के कार्यों का लेखा-जोखा कर लेना चाहिए। एक दिन ही जी मगर इंसान बनकर जी, एक दिन ही जी सफल अभियान बन कर जी। एक दिन ही जी आंधी-तूफान बनकर जी। इस संसार में हम मुसाफिर की तरह है इसलिए हमें बस चलते जाना है। एक राह रूक जाती है तो और राह जुड़ जाती हंै। हम मुड़े तो साथ-साथ राह मुड़ गयी।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
पता– बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025
मो. 9839423719