संसार के कुछ सुलझे तथा अनसुलझे प्रश्न?
भारत में भ्रष्टाचार उन्मूलन और पारदर्शिता के भले ही कड़े कदम उठाए गए हों, लेकिन रिश्वतखोरी कम नहीं हुई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में रिश्वत के मामले में भारत शीर्ष पर है। रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में दो तिहाई अर्थात 67 प्रतिशत से ज्यादा भारतीयों को सरकारी सेवाओं के बदले किसी न किसी रूप में रिश्वत देनी पड़ती है। चीन में 73 प्रतिशत लोगों ने कहा कि तीन वर्षों में उनके देश में रिश्वत का चलन बढ़ा है। रिश्वत देने की दर जापान में सबसे कम 0.2 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में केवल तीन प्रतिशत पाई गई। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अध्यक्ष श्री जोस उगाज के कहना है कि सरकारों को भ्रष्टाचार रोधी कानूनों को हकीकत में बदलने के प्रयास करने चाहिए। करोड़ों लोग रिश्वत देने के लिए बाध्य हैं और इसका सबसे बुरा असर गरीबों पर पड़ता है। किसी महापुरूष ने कहा है कि अपना अपना करो सुधार तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।
दुनिया में हर साल प्रदूषित वातावरण के कारण पांच साल से कम उम्र के 17 लाख बच्चों की मौत हो रही है। जेनेवा स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह जानकारी अपनी हालिया रिपोर्ट में दी है। इसके मुताबिक प्रतिवर्ष पर्यावरण खतरों जैसे भीतरी और बाहरी वायु प्रदूषण, अप्रत्यक्ष धूम्रपान, दूषित जल, स्वच्छता की कमी और अपर्याप्त साफ-सफाई हर साल पांच साल के कम उम्र के 17 लाख बच्चों की जान ले रहा है। रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि एक महीने से पांच साल तक बच्चों की मौत का सबसे आम कारण डायरिया, मलेरिया और निमोनिया है। वहीं पाकिस्तान के लाहौर में संगीनों के साए और कड़ी सुरक्षा के बीच आतंक पर क्रिकेट की जीत हुई। पाक सुपर लीग के सफल आयोजन के बाद पाक ने राहत की सांस ली। फाइनल में विंडीज के डरेन सैमी की कप्तानी वाले पेशावर जाल्मी ने दर्शकों के जबरदस्त उत्साह के बीच क्वेटा ग्लेडिएटर्स को 58 रन से हराकर खिताब जीता। यह आतंक पर बल्ले से प्रहार करने की जीती जागती मिसाल है।
लखनऊ बिजली आपूर्ति प्रशासन (लेसा) की लापरवाही बार-बार कार्यरत संविदा कर्मियों के लिए भारी पड़ रही है। लखनऊ के बिजली विभाग की लापरवाही से संविदा कर्मी या तो जान से जाता है, या फिर पूरी जिन्दगी के लिए विकलांग हो जाता है। बिजली विभाग की संवेदनहीनता से साल भर के अंदर करीब एक दर्जन से ज्यादा हादसे हो गए हैं। इन हादसों में अधिकतम संविदा कर्मियों ने जान गंवाई है, या पूरी तरह से विकलांग हो गए हैं। इसके बाद भी विभागीय अधिकारी संविदा कर्मियों पर ही ठीकरा फोड़ पल्ला झाड़ लेते हैं। विभाग की तरफ से दलील दी जाती है कि हमारी तरफ से सभी उपकेन्द्रों पर सुरक्षा उपकरणों को प्रदान करवा दिया गया है, अब संविदा कर्मी उसका उपयोग न करे तो विभाग का क्या दोष है? वहीं ठेकेदार भी इन मामलों से दूरी बना कुछ पैसे देकर भाग निकलता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संविदा कर्मियों की मौत की कोई कीमत नहीं है। एक रिर्पोट के अनुसार लखनऊ में 10 महीने में 13 हादसे हुए जिसमें कुछ संविदा कर्मियों ने जान गवांई और कुछ विकलांग हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के फीरोजाबाद में सूदखोरी के चंगुल में फंसे एक मजदूर की जिंदगी चली गई। थोड़े से रूपये का कर्ज न चुका पाने पर सूदखोर ने उसके पूरे मकान का जबरन बैनामा करा लिया। यह सदमा वह सह नहीं सका। यह वही जिला है जहां कुछ दिन पहले ही सूदखोर भाइयों ने मजदूर को जिंदा जला दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी। आजादी के 70 साल बाद भी इस सामाजिक बुराई को समाप्त नहीं हो पाना हमारी पूरी व्यवस्था के लिए चुनौती है। सरकार जिन गरीबों और जरूरतमंदों के नाम पर तमाम योजनाएं बनाती है, वही इसका लाभ उठा पाने से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि बैकिंग संस्थाओं की प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि जरूरत पर त्वरित मदद नहीं मिल पाती। जबकि सूदखोर की सबसे बड़ी ताकत ही यही है कि वे तुरंत कर्ज मुहैया कराते हैं। बैकिंग संस्थाओं की इस कमी को सुधारना होगा। यह सरल होगा तभी सूदखोरी पर अंकुश लगेगा।
लखनऊ शहर में हाईप्रोफाइल भिखारी सुंदर काया, आधुनिक फैशन के कपड़े, पैरों में डिजाइनर पायल, हाथ में चमकीले कंगन और अंग्रेजी में बातचीत के रूप में मिल जायेंगी। एक बार तो आप भी चैक जाएंगे, जब यह आपको घेर लेंगी और मदद मांगने लगेंगी। इसके घेरे से निकलना भी आसान नहीं है और दस-बीस रूपये इन्हें स्वीकार नहीं होता है। यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं बल्कि सच्चाई से जुड़ा यह नजारा शहर की सड़कों पर हर दिन दिखाई देता है। करीब आठ लड़कियों की यह टोली कश्मीर में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद के नाम पर पैसे मांगती हंै। ये युवतियां हजरतगंज की सड़कों, माॅल और शोरूम में जाकर अंग्रेजी में मदद मांगती दिखती हैं। लखनऊ को भिक्षामुक्ति के अभियान से जुड़े शरद पटेल कहते हैं कि लखनऊ के मोहान रोड पर बना भिक्षु आश्रम जर्जर हो चुका है और सरकार के पास बजट नहीं है कि उसे बनाया जाए। भिक्षु गृह में तीन साल से कोई भिखारी नहीं लाया गया। यह गृह इसलिए बना था, जिससे भिक्षा से मुक्ति दिलाकर लोगों को किसी काम का प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा जा सके। यहां 11 पद स्वीकृत है और हर माह लाखों रूपये वेतन में जा रहा है। शरद पटेल कहते है कि लखनऊ में नए भिखारियों की संख्या बढ़ रही हैं। लखनऊ में कराए गए सर्वे में 3500 भिखारी चिंहित किए गए हैं।
भले ही विशेषज्ञ रोबो कर्मियों को इंसानी नौकरियों के लिए खतरा मान रहे हों पर दुनिया भर की कंपनियां इनके सह-अस्तित्व के विकल्प तलाश रही है। वैश्विक आॅडिट फर्म पीडब्ल्यूसी ने 20वां सीईओ सर्वे जारी किया है। यह बताता है कि भविष्य में इंसान और मशीन यानी कि रोबो कर्मी संयुक्त रूप से काम करेंगे। आॅटोमेशन के दौर में नौकरियों की प्रकृति में बदलाव होंगे। इस प्रक्रिया में कुछ पारंपरिक नौकरियां खत्म जरूर होंगी पर बड़े स्तर पर अवसर भी पैदा होंगे।
देश में दवा की कीमतों को नियंत्रित रखने वाले निकाय राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) का कहना है कि पिछले साल मार्च से अब तक एक वर्ष में कैंसर की दवा की कीमत में 86 प्रतिशत तक की कमी आई है। इससे लाखों मरीजों को राहत मिली है। प्राधिकरण ने कहा कि इस अवधि में मधुमेह की दवाओं की कीमत भी 10 से 42 प्रतिशत तक कम हुई है। गरीब मरीजों के लिए यह अच्छी खबर है।
अमेरिका में लगातार नस्लीय हमलों से भारतीयों के दिलोदिमाग में भय और दहशत है और ट्रंप सरकार में उनका भरोसा कम होता जा रहा है। असुरक्षा के इसी माहौल के खिलाफ कंसास और केंट शहर में सैकड़ों भारतीयों ने एकजुटता दिखाई। हमारा मानना है कि वल्र्ड लीडरों को अब समझदारी दिखाना चाहिए कि मानव जाति एक ग्लोबल विलेज में जी रही है। आज आधुनिक विज्ञान दूसरों ग्रहों में जीवन की खोज कर रहा है। एक न एक दिन विज्ञान अन्य ग्रहों में जीवन की खोज कर लेगा। तब हमें अपना परिचय पृथ्वी वासी के रूप में देना होगा। वल्र्ड सिटीजन के रूप में हमें अभी से अपनी बाल पीढ़ी तथा युवा पीढ़ी को शिक्षा के द्वारा तैयार करना चाहिए। तकनीकी से लेश आज की युवा पीढ़ी दुनिया भर में घूम-घूमकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहती है।
हथियारों की होड़ के अन्तर्गत एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा बजट में नौ फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा की है, दूसरी तरफ चीन ने भी अपने रक्षा बजट में सात फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा की है। अमेरिका और चीन का रक्षा बजट पहले से ही बहुत ज्यादा है। अमेरिका का रक्षा बजट अकेले चीन, सऊदी अरब, रूस, ब्रिटेन, भारत, फ्रांस और जापान के संयुक्त बजट से ज्यादा है। ऐसे में सवाल उठता है कि हथियारों की यह होड़ विश्व सभ्यता को कहां ले जाएगी? बारूद के ढेर पर बैठी है यह धरती, एटम बमों के जोर पर ऐठी है यह दुनिया। दुनिया को बमों के जोर पर नहीं बल्कि प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून के द्वारा चलाने की समझदारी शक्तिशाली देशों को दिखानी चाहिए। इस प्रयास से ही धरती को विनाश से बचाया जा सकता है।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
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