मनुष्य रूप में जन्म हमें लोक कल्याण के लिए ही मिला है!
(1) जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए:
लोक कल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर सफल जीवन जीने के लिए प्रत्येक मनुष्य को ईश्वरीय ज्ञान रूपी शक्ति का प्रत्येक पल भरपूर सदुपयोग करना चाहिए। हम जैसा सोचते हैं हम अपने जीवन को वैसा ही बना भी लेते हैं। हमारा अवचेतन मन हमारी सोच या विचार को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में हमारा उत्साह हमारी सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। इसलिए हमें जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए। मनुष्य जीवन के महत्व के बारे में किसी ने सही ही कहा है कि – प्रभु कार्य करके पा लो प्रभु का प्यार कहीं लुट न जायें यह खजाना। कल किसने देखा है प्रभु कार्य इसी क्षण आज कर लो। प्रभु कार्य रस जीवन में भर लो। देखो प्रभु कार्य करने यह मौका नहीं आयेगा दुबारा। कहीं समय का पक्षी चुग न जाये दाना। कहीं लुट न जायें सांसों का खजाना। गुजरा हुआ समय फिर वापिस नहीं आता है। समय की गति को कोई रोक नहीं पायेगा। समय के साथ ही नहीं चलना वरन् समय को आगे बढ़कर बढ़ाना है।
(2) उत्साह सबसे बड़ी जीवन शक्ति तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है:
शरीर या देह का जीवन क्षणिक जबकि आत्मा का जीवन अनन्त काल का है। मस्तिष्क और आत्मा कभी बूढ़े नहीं होते- जो यह सोचता है या मानता है कि जन्म, किशोवस्था, जवानी, परिपक्वता और बुढ़ापे का चक्र ही जीवन है, वह वास्तव में दया का पात्र है। इस तरह के व्यक्ति के लिये जीवन का कोई अर्थ नहीं है। इस तरह का विश्वास कुंठा, ठहराव और एक तरह की निराशा लाता है। बुढ़ापा ही केवल मृत्यु का कारण नहीं है वरन् मृत्यु का आगमन तो जीवन की किसी भी अवस्था या क्षण में किसी बीमारी या दुर्घटना से हो सकता है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षण को पूरे उत्साह के साथ अनवरत जीना ही जीवन की सर्वश्रेष्ठ कला है। इसके लिए जीवन की अंतिम सांस तक लोक सेवा के लिए कार्य में संलग्न रहना चाहिए। परमात्मा की सदैव से एकमात्र इच्छा लोक कल्याण ही रही है।
(3) जीवन के प्रत्येक क्षण खुश रहने का स्वभाव विकसित करें:
जीवन में किसी मनुष्य को प्रतिकूल परिस्थितियाँ विचलित कर सकती हैं और अनुकूल परिस्थितियाँ प्रसन्नता से भर सकती हैं। जीवन में कभी-कभी दुख सहने में हमें पीड़ा चाहे जितनी हो, उसी दौरान हमारी उन्नति हो रही होती है। इससे जीवन का अनुभव समृद्ध होता है। किसी ने यह कहा है कि हमें जो मिला है, हमारे भाग्य से ज्यादा मिला है। अगर आपके पांव में जूते नहीं हैं, तो अफसोस मत कीजिए। दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास तो पांव ही नहीं हैं। मानव शरीर एवं जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है। ईश्वरीय प्रेम हमारे मस्तिष्क, हृदय तथा आध्यात्मिक शक्तियों के विकास का आधार है। अनेक जन्मों के सुकर्मों के बाद मानव जीवन एकमात्र अपनी आत्मा के विकास के उद्देश्य से मिला है। इसे व्यर्थ के कार्यों में खोना जीवन की सबसे बड़ी अज्ञानता है।
(4) परिवर्तन का स्वागत करें:
हमारे पास ऐसी अद्भुत शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं, जो मानवीय सोच की अनन्त सीमाओं के पार जाती हैं। हर धर्म में कहा गया है कि ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास ही जीवन का आधार है। शरीर में निवास करने वाली आत्मा अजर, अमर तथा अविनाशी है। इसलिए जीवन में आने वाले परिवर्तन का स्वागत करें – बुढ़ापा कोई दुखद घटना नहीं है। हम जिसे बुढ़ापे की प्रक्रिया कहते हैं, वह दरअसल परिवर्तन है। इसका खुशी से स्वागत किया जाना चाहिए। मानव जीवन का हर पहलू प्रभु की राह पर आगे की तरफ एक कदम है, जिसकी कोई मिसाल नहीं है।
(5) यह जन्म हमें लोक कल्याण के लिए ही मिला हुआ है:
आत्मा अजर अमर है। जिसे लोग मौत कहते हैं, वह देह का अन्त है। आत्मा देह से निकलकर दिव्य लोक की ओर आगे निकल जाती है। व्यक्ति अपने अच्छे कार्यों, विचारों तथा संकल्पों के रूप में सदैव जीवित रहता है। एक सुन्दर प्रार्थना है – हम पल-पल, रोज-रोज अच्छे और अच्छे बनते जाते हैं। हम पल-पल, रोज-रोज उस परम शक्ति की ओर बढ़ते जाते हैं। हमारी स्वयं पर आध्यात्मिक विजय प्राप्त करने की उत्साह से भरी जागरूकता सदैव हर पल होनी चाहिए। हर क्षण, प्रत्येक दिन हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवसाय परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बने। वास्तव में यह मनुष्य जन्म हमें लोक कल्याण के लिए ही मिला हुआ है और लोक कल्याण ही सबसे बड़ा धर्म है। इसलिए हमें अपने जीवन को पूरे उत्साह के साथ जीते हुए लोक कल्याण का काम करना चाहिए।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ