धार्मिक है लेकिन नहीं है नैतिक बहुत बड़ा आश्चर्य है? (यदि समय शक्ति के रहते आचार-विचार सुधार न सके, जब अंत समय आ जायेगा, फिर मत कहना कुछ कर न सके)
(1) धार्मिक है लेकिन नहीं है नैतिक बहुत बड़ा आश्चर्य है?
धर्म के नाम पर हम रोजाना जो भी घण्टों पूजा-पाठ करते है वे भगवान को याद करने के लिए कम भगवान को भुलाने के ज्यादा होते हैं। धर्म के नाम पर सारे विश्व में एक-दूसरे का खून बहाया जा रहा है। मानव इतिहास में विश्व में धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा लड़ाइयाँ तथा युद्ध हुए हैं। रामायण में लिखा है परहित सरिस धर्म नही भाई, परपीड़ा नहीं अधमाई। अर्थात दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है तथा दूसरों का बुरा करने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। पवित्र ग्रन्थों में जो लिखा है उसकी गहराई में जाकर उसे जानना तथा उसके अनुसार अपना कार्य-व्यवसाय करना भगवान की पूजा है। हम प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा के अनुसार चलनेे की जरा भी कोशिश नहीं करते हैं बस भगवान की आरती उतारते हैं। एक गीत की प्रेरणादायी पंक्तियां हैं – धीरे-धीरे मोड़ तू इस मन को इस मन को। जप-तप, तीर्थ, गंगा स्नान सब होते बेकार जब तक मन में भरे रहते विकार। जीत लिया मन फिर ईश्वर नहीं दूर, जान-बुझ कर इंसा क्यों मजबूर। निरन्तर अभ्यास से कुछ भी नहीं है असम्भव।
(2) हम भी आज रावण की तरह पूजा करने वाले बन गये हंै:
रावण भी धर्म के नाम पर पाखण्ड करता था। वह रोजाना घण्टों बहुत पूजा करता था। चारों वेदों का ज्ञाता था उसे चारों वेद कठस्थ थे। लेकिन कभी भी उसने प्रभु इच्छाओं को जानकर उस पर चलने का प्रयास नहीं किया। परायी स्त्री सीता पर कुदृष्टि डाली। हम भी आज रावण की तरह पूजा, इबादत तथा प्रार्थना करने वाले बन गये हंै। पूजा, इबादत तथा प्रार्थना वह है जो गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अजावेस्ता, किताबे अकदस आदि-आदि पवित्र पुस्तकों में बतायी गयी है। अर्थात परमात्मा की शिक्षाओं को जानना और उस पर दृढ़तापूर्वक चलना। हे आत्मा के पुत्र मेरा प्रथम परामर्श यह है कि एक शुद्ध, दयालु एव ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण कर। ताकि पुरातन, अमिट एवं श्रेष्ठता का साम्राज्य तेरा हो। एक कर दे हृदय अपने सेवकों के हे प्रभु, निज महान उद्देश्य उन पर कर प्रकट मेरे प्रभु! हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवसाय रोजाना परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बने।
(3) धर्म के नाम पर नफरतें दिमाग में भरी पड़ी हंै:
धर्म की अज्ञानता के कारण चारों तरफ मारामारी है। बालक को उसके धर्म की शिक्षा के साथ सभी धर्मो की शिक्षाओं का ज्ञान भी देना चाहिए। बालक को दिव्य लोक से जोड़ दे। दिव्य लोक से जुड़कर वह देवदूत की तरह पवित्र बन जायेगा। धर्म के नाम पर जो नफरतें दिमाग में भरी पड़ी है। उसे उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के द्वारा दूर करना है। आज की विषम परिस्थितियों में बच्चों का भविष्य क्या होगा? यह स्थिति बड़ी दुखदायी दिखाई देती है। शैतानी सभ्यता जन्म लेती जा रही है। यह चिन्ता का विषय है। सच्ची शिक्षा क्या है? दिमाग में कूड़े-करकट की तरह सूचनाओं का ढेर भरना शिक्षा नहीं है। जो ज्ञान अंदर भरा पड़ा है उसे लोक कल्याण की भावना से बाहर निकालने का प्रशिक्षण देना सच्ची शिक्षा है।
(4) क्या अनैतिक तथा विकृत व्यक्ति भी अपनी आत्मा का विकास कर सकता है? हाँ!
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली एक सतत् प्रक्रिया है। माता-पिता, शिक्षक तथा समाज द्वारा दी गई गलत शिक्षा के कारण यदि किसी व्यक्ति का जीवन अनैतिक तथा विकृत हो जाये तब भी क्या ‘मनुष्य’ अपनी चिन्तनशील बुद्धि से विचार करके अपने चिन्तन और दृष्टिकोण में कभी भी परिवर्तन कर सकता है? हाँ! उद्देश्यपूर्ण शिक्षा एवं अध्यात्म के द्वारा ‘विचारवान मनुष्य’ अपनी आत्मा का विकास कर सकता है। उद्देश्यपूर्ण शिक्षा और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उद्देश्यपूर्ण शिक्षा का एक ही काम है मनुष्य को ‘प्रभु की इच्छा’ का ज्ञान कराकर सही मायने में शिक्षित करना’। क्योंकि जिस व्यक्ति को प्रभु की इच्छा या प्रभु की शिक्षाओं का ज्ञान नहीं होता वह अशिक्षित ही है। अतः माता-पिता तथा शिक्षकों को भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ ‘बाल्यावस्था से ही बालक को प्रभु इच्छाओं और आज्ञाओं का ज्ञान भी कराना चाहिये’ ताकि मानव जीवन संतुलित रूप से विकसित हो सके।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ