एकादशी माहात्म्य – एकादशियों का माहांत्म्य
श्री सूतजी बोले-हे ऋषि-मुनियो! द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्री कृष्ण से कहा-हे सर्वेश्वर| एकादशी के व्रत की विधि, माहात्म्य एवं उनसे प्राप्त होने वाले पुण्यलाभ, मनवांछित फल आदि के बारे में सविस्तार बताने की कृपा करें|
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा-हे पाण्डवश्रेष्ठ! एकादशियाँ महान् पुण्यलाभ व मनवांछित फल देने वाली होती हैं| श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों को भी इसका अनुष्ठान करना चाहिये| कुछ विशेष नक्षत्रों का योग होने पर ये तिथियाँ जया, विजया, जयन्ती तथा पापनाशिनी – इन चार नामों से प्रसिद्ध हैं| ये चारों एकादशियाँ सभी पापों का नाश करने वाली होती हैं| इसलिये संसारी मनुष्य को इनका व्रत अवश्य करना चाहिये| जब शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुनर्वसु’ नक्षत्र हो, तो वह उत्तम तिथि ‘जया’ कहलाती है| विधिपूर्वक इसका व्रत करके मनुष्य निश्चय ही पाप से मुक्त हो जाता है| जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘श्रवण’ नक्षत्र हो, तो यह उत्तम तिथि ‘विजया’ के नाम से प्रसिद्ध होती है| मनुष्यों द्वारा इसमें किया हुआ दान और ब्राह्मणभोजन सहस्रों गुना फल देने वाला होता है तथा हवन और उपवास तो सहस्र गन से भी अधिक फल देने वाला होता है| जब शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘रोहिणी नक्षत्र हो तो यह तिथि ‘जयन्ती’ कहलाती है| यह सब पापों को हरने वाली होती है| इस तिथि को पूजित होने पर भगवान विष्णु निश्चय ही मनुष्य के सब पापों को धो डालते हैं|
जब कभी शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘पुष्य’ नक्षत्र हो, तो उसे ‘पापनाशिनी’ कहते हैं| जो व्यक्ति एक वर्ष तक प्रतिदिन तिल दान करता है तथा जो केवल ‘पापनाशिनी’ एकादशी को उपवास करता है, उन दोनों का पुण्य समान होता है| उस तिथि को व्रत रखने पर श्री विष्णु भगवान् प्रसन्न होते हैं| उस दिन प्रत्येक पुण्यकर्म का अनन्त फल माना गया है| एकादशी के इस व्रत को करने से स्त्री-पुरुष के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं| पुष्य नक्षत्र में पड़ने वाली एकमात्र पापनाशिनी एकादशी का व्रत करके मनुष्य एक हजार एकादशियों के व्रत जैसा लाभ प्राप्त कर सकता है| उस दिन स्नान, दान, जप-तप, स्वाध्याय और देवपूजा आदि जो-कुछ भी किया जाता है, उसका अक्षय फल माना गया है| इसलिये सभी स्त्री-पुरुषों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार इसका व्रत करना चाहिये|