सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 7 शलोक 1 से 30
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 7 शलोक 1 से 30
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 1
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु॥1॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मुझ मे लगे मन से, हे पार्थ, मेरा आश्रय लेकर योगाभ्यास करते हुऐ तुम बिना शक के मुझे पूरी तरह कैसे जान जाओगे वह सुनो। En Listen, O Parth, to how by taking refuge in me and practising yog with devotion, you shall know me beyond any doubt as the all-perfect Soul in all beings.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 2
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते॥2॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मैं तुम्हे ज्ञान और अनुभव के बारे सब बताता हूँ, जिसे जान लेने के बाद और कुछ भी जानने वाला बाकि नहीं रहता। En I shall fully teach you this knowledge as well as the allpervasive action that results from realization of God (vigyan), after which there remains nothing better in the world to know.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 3
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः॥3॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हजारों मनुष्यों में कोई ही सिद्ध होने के लिये प्रयत्न करता है। और सिद्धि के लिये प्रयत्न करने वालों में भी कोई ही मुझे सार तक जानता है। En Hardly does one man among thousands strive to know me and hardly does one among the thousands who strive for this know my essence.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 4
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥4॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 4 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार – यह भिन्न भिन्न आठ रूपों वाली मेरी प्रकृति है। En I am the creator of all nature with its eight divisionsearth, water, fire, wind, ether, mind, intellect, and ego.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 5
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥5॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यह नीचे है। इससे अलग मेरी एक और प्राकृति है जो परम है – जो जीवात्मा का रूप लेकर, हे महाबाहो, इस जगत को धारण करती है। En This nature, O the mighty-armed, is the lower, insensate nature, but against it there is my conscious, living nature which animates the whole world.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 6
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा॥6॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यह दो ही वह योनि हैं जिससे सभी जीव संभव होते हैं। मैं ही इस संपूर्ण जगत का आरम्भ हूँ औऱ अन्त भी। En Know that all beings arise from these two natures and that I am both the creator and the end of whole world.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 7
मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥7॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मुझे छोड़कर, हे धनंजय, और कुछ भी नहीं है। यह सब मुझ से वैसे पुरा हुआ है जैसे मणियों में धागा पुरा होता है। En There is, O Dhananjay, not even one object other than me, and the whole world is linked up with me like the pearls of a necklace.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 8
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु॥8॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 8 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मैं पानी का रस हूँ, हे कौन्तेय, चन्द्र और सूर्य की रौशनी हूँ, सभी वेदों में वर्णित ॐ हूँ, और पुरुषों का पौरुष हूँ। En O Arjun, I am that which makes water liquescent, the radiance in the sun and the moon, the sacred syllable OM, the word’s echo (Shabd)5 in the ether, and I am also the manliness in men.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 9
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥9॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi पृथवि की पुन्य सुगन्ध हूँ और अग्नि का तेज हूँ। सभी जीवों का जीवन हूँ, और तप करने वालों का तप हूँ। En I am the fragrance in the earth, the flame in fire, the Soul that animates all beings, and the penance of ascetics.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 10
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्॥10॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 10 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे पार्थ, मुझे तुम सभी जीवों का सनातन बीज जानो। बुद्धिमानों की बुद्धि मैं हूँ और तेजस्वियों का तेज मैं हूँ। En Since I am also the intellect in wise men and the magnificence of men of glory, know you, O Arjun, that I am the eternal fountainhead of all beings.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 11
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ॥11॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बलवानों का वह बल जो काम और राग मुक्त हो वह मैं हूँ। प्राणियों में वह इच्छा जो धर्म विरुद्ध न हो वह मैं हूँ हे भारत श्रेष्ठ। En I am, O the best of Bharat, the selfless power of the strong and I, too, am th aspiration for realization in all beings that is never hostile to God.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 12
ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि॥12॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 12 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो भी सत्तव, रजो अथवा तमो गुण से होता है उसे तुम मुझ से ही हुआ जानो, लेकिन मैं उन में नहीं, वे मुझ में हैं। En And know that although all the properties of nature tamas, rajas and sattwa) have arisen from me, they neither dwell in me nor do I dwell in themसम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 13
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्॥13॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इन तीन गुणों के भाव से यह सारा जगत मोहित हुआ, मुझ अव्यय और परम को नहीं जानता। En Since the whole world is deluded by feelings resulting from the operation of the three properties, it is unaware of my imperishable essence that is beyond them.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 14
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥14॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi गुणों का रूप धारण की मेरी इस दिव्य माया को पार करना अत्यन्त कठिन है। लेकिन जो मेरी ही शरण में आते हैं वे इस माया को पार कर जाते हैं। En This divine three-propertied yog-maya of mine is most difficult to overcome, but they who seek refuge in me get over the illusion and achieve salvation.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 15
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥15॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बुरे कर्म करने वाले, मूर्ख, नीच लोग मेरी शरण में नहीं आते। ऍसे दुष्कृत लोग, माया द्वारा जिनका ज्ञान छिन चुका है वे असुर भाव का आश्रय लेते हैं। En The ignorant and unwise are the most despicable of men and doers of wickedness, because deluded by maya and having demoniacal qualities they do not worship me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 16
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥16॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे अर्जुन, चार प्रकार के सुकृत लोग मुझे भजते हैं। मुसीबत में जो हैं, जिज्ञासी, धन आदि के इच्छुक, और जो ज्ञानी हैं, हे भरतर्षभ। En Four kinds of devotees, O the best of Bharat, worship me : the ones who desire material rewards, the distressed and those men of knowledge who aspire to know me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 17
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः॥17॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi उनमें से ज्ञानी ही सदा अनन्य भक्तिभाव से युक्त होकर मुझे भजता हुआ सबसे उत्तम है। ज्ञानी को मैं बहुत प्रिय हूँ और वह भी मुझे वैसे ही प्रिय है। En To the wise man of knowledge who worships me, the one God, with steady love and devotion, I am the dearest and so is he to me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 18
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्॥18॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यह सब ही उदार हैं, लेकिन मेरे मत में ज्ञानी तो मेरा अपना आत्म ही है। क्योंकि मेरी भक्ति भाव से युक्त और मुझ में ही स्थित रह कर वह सबसे उत्तम गति – मुझे, प्राप्त करता है। En Although they are all generous because they worship me with devotion, the wise man of realization is- I believeidentical with me, his supreme goal.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 19
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥19॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बहुत जन्मों के अन्त में ज्ञानमंद मेरी शरण में आता है। वासुदेव ही सब कुछ हैं, इसी भाव में स्थिर महात्मा मिल पाना अत्यन्त कठिन है। En The great Soul is indeed most rare who worhips me with the knowledge, acquired at the end of many births, that I (Vasudev) am the only reality.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 20
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया॥20॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इच्छाओं के कारण जिन का ज्ञान छिन गया है, वे अपने अपने स्वभाव के अनुसार, नीयमों का पालन करते हुऐ अन्य देवताओं की शरण में जाते हैं। En Driven by the properties of their nature, they who fall from knowledge desire worldly pleasures and, in imitation of the prevailing customs, worship other gods instead of theone single God.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 21
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥21॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो भी मनुष्य जिस जिस देवता की भक्ति और श्रद्धा से अर्चना करने की इच्छा करता है, उसी रूप (देवता) में मैं उसे अचल श्रद्धा प्रदान करता हूँ। En It is I who bestow steadiness on the faith of covetous worshippers according to the nature of the gods they worship.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 22
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्॥22॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi उस देवता के लिये (मेरी ही दी) श्रद्धा से युक्त होकर वह उसकी अराधना करता है और अपनी इच्छा पूर्ती प्राप्त करता है, जो मेरे द्वारा ही निरधारित की गयी होती है। En Possessing this strengthened faith, the worshipper devotes himself to his chosen deity with devotion and, through this undoubtedly achieves the enjoyment of desired pleasures which are also appointed by my laws.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 23
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि॥23॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अल्प बुद्धि वाले लोगों को इस प्रकार प्रप्त हुऐ यह फल अन्तशील हैं। देवताओं का यजन करने वाले देवताओं के पास जाते हैं लेकिन मेरा भक्त मुझे ही प्राप्त करता है। En But the rewards of these deluded men are finite because they only attain to the gods they worship, whereas the man who worships me howsoever he does it – realizes me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 24
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥24॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मुझ अव्यक्त (अदृश्य) को यह अवतार लेने पर, बुद्धिहीन लोग देहधारी मानते हैं। मेरे परम भाव को अर्थात मुझे नहीं जानते जो की अव्यय (विकार हीन) और परम उत्तम है। En Wanting in wisdom and oblivious of the reality that I am immaculate and beyond the friend and senses, men regard my manifestation as a physical incarnation.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 25
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥25॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अपनी योग माया से ढका मैं सबको नहीं दिखता हूँ। इस संसार में मूर्ख मुझ अजन्मा और विकार हीन को नहीं जानते। En Hidden behind my yog-maya, I am not perceived by all and this ignorant man does not know me, the birthless and immutable God.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 26
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन॥26॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 26 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे अर्जुन, जो बीत चुके हैं, जो वर्तमान में हैं, और जो भविष्य में होंगे, उन सभी जीवों को मैं जानता हूँ, लेकिन मुझे कोई नहीं जानता। En I know, O Arjun, all beings that have been (or will be) in the past, present, and future, but no one knows me (without true devotion).सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 27
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप॥27॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 27 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे भारत, इच्छा और द्वेष से उठी द्वन्द्वता से मोहित हो कर, सभी जीव जन्म चक्र में फसे रहते हैं, हे परन्तप। En All beings in the world fall into ignorance, O Bharat, because of the contradictions of attachment and repugnance, and of happiness and sorrow.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 28
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः॥28॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi लेकिन जिनके पापों का अन्त हो गया है, वह पुण्य कर्म करने वाले लोग द्वन्द्वता से निर्मुक्त होकर, दृढ व्रत से मुझे भजते हैं। En But they who worship me in every way are selflessly engaged in good deeds, free from sin and delusion, arising from the conflicts of attachment and repulsion, and of firm intent.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 29
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्॥29॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बुढापे और मृत्यु से छुटकारा पाने के लिये जो मेरा आश्रय लेते हैं वे उस ब्रह्म को, सारे अध्यात्म को, और संपूर्ण कर्म को जानते हैं। En Only they who strive for liberation from the cycle of birth and death by finding shelter under me succeed in knowing God, spiritual wisdom and all action.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 7 शलोक 30
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः॥30॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 शलोक 30 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi वे सभी भूतों में, दैव में, और यज्ञ में मुझे जानते हैं। मृत्युकाल में भी इसी बुद्धि से युक्त चित्त से वे मुझे ही जानते हैं। En They who know me as the presiding Spirit in all beings (adhibhut) and gods (adhidaiv), and in yagya (adhiyagya), and whose minds are fixed on me, know me at the end.