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सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 6 शलोक 1 से 47

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 6 शलोक 1 से 47

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 1

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥1॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म के फल का आश्रय न लेकर जो कर्म करता है, वह संन्यासी भी है और योगी भी। वह नहीं जो अग्निहीन है, न वह जो अक्रिय है।

En The man who performs the ordained task without desiring its fruits, rather than the one who just gives up (lighting) the sacred fire or action, is a sanyasi and a yogi.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 2

यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव।
न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन॥2॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिसे सन्यास कहा जाता है उसे ही तुम योग भी जानो हे पाण्डव। क्योंकि सन्यास अर्थात त्याग के संकल्प के बिना कोई योगी नहीं बनता।

En Remember, O Arjun, that yog (selfless action) is the same as renunciation (knowledge), for no man can be a yogi without a total rejection of desire.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 3

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते॥3॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi एक मुनि के लिये योग में स्थित होने के लिये कर्म साधन कहा जाता है। योग मे स्थित हो जाने पर शान्ति उस के लिये साधन कही जाती है।

En Whereas selfless action is the means for the contemplative man who wishes to achieve yog, a total absence of will is the means for one who has attained to it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 4

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते।
सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते॥4॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 4 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जब वह न इन्द्रियों के विषयों की ओर और न कर्मों की ओर आकर्षित होता है, सभी संकल्पों का त्यागी, तब उसे योग में स्थित कहा जाता है।

En A man is said to have achieved yog when he is unattached to both sensual pleasure and action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 5

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥5॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सवयंम से अपना उद्धार करो, सवयंम ही अपना पतन नहीं। मनुष्य सवयंम ही अपना मित्र होता है और सवयंम ही अपना शत्रू।

En Since the Soul enshrined in a man is his friend as well as foe, it is binding on a man to lift himself by his own effort rather than degrade himself.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 6

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥6॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिसने अपने आप पर जीत पा ली है उसके लिये उसका आत्म उसका मित्र है। लेकिन सवयंम पर जीत नही प्राप्त की है उसके लिये उसका आत्म ही शत्रु की तरह वर्तता है।

En The Self is a friend to the man who has overcome his mind and senses, but he is an enemy to one who has failed to do so.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 7

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥7॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अपने आत्मन पर जीत प्राप्त किया, सरदी गरमी, सुख दुख तथा मान अपमान में एक सा रहने वाला, प्रसन्न चित्त मनुष्य परमात्मा मे बसता है।

En God is ever and inseparably present in the serene heart of the Self-abiding man who is unmoved by the contradictions of heat and cold, happiness and sorrow, and fame and infame.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 8

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः॥8॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 8 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ज्ञान और अनुभव से तृप्त हुई आत्मा, अ-हिल, अपनी इन्द्रीयों पर जीत प्राप्त कीये, इस प्रकार युक्त व्यक्ति को ही योगी कहा जाता है, जो लोहे, पत्थर और सोने को एक सा देखता है।

En The yogi, whose mind is quenched with knowledge-both divine and intuitive, whose devotion is steady and constant, who has conquered his senses well, and who makes no distinction between objects ostensibly as different as earth, rock, and gold, is said to have realized God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते॥9॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो अपने सुहृद को, मित्र को, वैरी को, कोई मतलब न रखने वाले को, बिचोले को, घृणा करने वाले को, सम्बन्धी को, यहाँ तक की एक साधू पुरूष को और पापी पुरूष को एक ही बुद्धि से देखता है वह उत्तम है।

En That man is indeed superior who view all with an equal mind: friends and foes, the antagonistic, indifferent, neutral or jealous, kinsmen, and the righteous as well as sinners.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 10

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः॥10॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 10 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योगी को एकान्त स्थान पर स्थित होकर सदा अपनी आत्मा को नियमित करना चाहिये। एकान्त मे इच्छाओं और घर, धन आदि मान्सिक परिग्रहों से रहित हो अपने चित और आत्मा को नियमित करता हुआ।

En The yogi, engaged in self-conquest, should devote himself to the practice of yog in loneliness in a secluded place, controlling his mind, body and senses, and rid of desire and acquisitiveness.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 11

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥11॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi उसे ऍसे आसन पर बैठना चाहिये जो साफ और पवित्र स्थान पर स्थित हो, स्थिर हो, और जो न ज़्यादा ऊँचा हो और न ज़्यादा नीचा हो, और कपड़े, खाल या कुश नामक घास से बना हो।

En At a clean spot he should devise a seat of kush-grass or deer-skin covered with a piece of cloth, which is neither too high nor too low.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 12

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये॥12॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 12 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi वहाँ अपने मन को एकाग्र कर, चित्त और इन्द्रीयों को अक्रिय कर, उसे आत्म शुद्धि के लिये ध्यान योग का अभ्यास करना चाहिये।

En He should then sit on it and practise yog, concentrating his mind and restraining the senses, for self-purification.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 13

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्॥13॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अपनी काया, सिर और गर्दन को एक सा सीधा धारण कर, अचल रखते हुऐ, स्थिर रह कर, अपनी नाक के आगे वाले भाग की ओर एकाग्रता से देखते हुये, और किसी दिशा में नहीं देखना चाहिये।

En Holding his body, head, and neck firmly erect, his eyes should concentrate on the tip of the nose, looking neither right nor left.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 14

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः॥14॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi प्रसन्न आत्मा, भय मुक्त, ब्रह्मचार्य के व्रत में स्थित, मन को संयमित कर, मुझ मे चित्त लगाये हुऐ, इस प्रकार युक्त हो मेरी ही परम चाह रखते हुऐ।

En Abiding in continence, fearless, serene at heart, alert and restrained in mind, he should surrender himself firmly to me.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 15

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति॥15॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इस प्रकार योगी सदा अपने आप को नियमित करता हुआ, नियमित मन वाला, मुझ मे स्थित होने ने कारण परम शान्ति और निर्वाण प्राप्त करता है।

En The yogi with a restrained mind who thus meditates on me incessantly at last attains to the sublime peace that dwells in me.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 16

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥16॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे अर्जुन, न बहुत खाने वाला योग प्राप्त करता है, न वह जो बहुत ही कम खाता है। न वह जो बहुत सोता है और न वह जो जागता ही रहता है।

En This yog, O Arjun, is neither achieved by one who eats too much or too little, nor by one who sleeps too much or too little.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 17

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥17॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो नियमित आहार लेता है और नियमित निर-आहार रहता है, नियमित ही कर्म करता है, नियमित ही सोता और जागता है, उसके लिये यह योगा दुखों का अन्त कर देने वाली हो जाती है।

En Yog, the destroyer of all grief, is achieved only by those who regulate their food and recreation, who strive according to their capacity, and who sleep in moderation.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 18

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥18॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जब सवंयम ही उसका चित्त, बिना हलचल के और सभी कामनाओं से मुक्त, उसकी आत्मा मे विराजमान रहता है, तब उसे युक्त कहा जाता है।

En A man is said to be endowed with yog when, restrained by the practice of selfless action and contented with Self, his mind is freed from all desires.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 19

यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥19॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जैसे एक दीपक वायु न होने पर हिलता नहीं है, उसी प्रकार योग द्वारा नियमित किया हुआ योगी का चित्त होता है।

En An analogy is (usually) drawn between the lamp whose flame does not flicker because there is no wind and the fully restrained mind of a yogi engaged in contemplation of God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 20

यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति॥20॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जब उस योगी का चित्त योग द्वारा विषयों से हट जाता है तब वह सवयं अपनी आत्मा को सवयं अपनी आत्मा द्वारा देख तुष्ठ होता है।

En In the state in which even the yog-restrained mind is dissolved by a direct perception of God, he (the worshipper) rests contented in his Self.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 21

सुखमात्यन्तिकं यत्तद् बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्।
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः॥21॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi वह अत्यन्त सुख जो इन्द्रियों से पार उसकी बुद्धि मे समाता है, उसे देख लेने के बाद योगी उसी मे स्थित रहता है और सार से हिलता नहीं।

En After knowing God, he (the yogi ) dwells for ever and unwavering in the state in which he is blessed with the eternal, sense-transcending joy that can be felt only by a refined and subtle intellect; and…
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 22

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥22॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi तब बड़े से बड़ा लाभ प्राप्त कर लेने पर भी वह उसे अधिक नहीं मानता, और न ही, उस सुख में स्थित, वह भयानक से भयानक दुख से भी विचलित होता है।

En In this state, in which he believes that there can be no greater good than the ultimate peace he has found in God, he is unshaken by even the direst of all griefs.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 23

तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा॥23॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi दुख से जो जोड़ है उसके इस टुट जाने को ही योग का नाम दिया जाता है। निश्चय कर और पूरे मन से इस योग मे जुटना चाहिये।

En It is a duty to practise this yog, untouched by miseries of the world, with vigour and determination, and without a sense of ennui.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 24

संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥24॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi शुरू होने वालीं सभी कामनाओं को त्याग देने का संकल्प कर, मन से सभी इन्द्रियों को हर ओर से रोक कर।

En Abandoning all desire, lust, and attachment, and pulling in by an exercise of the mind the numerous senses from all sides,
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 25

शनैः शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत्॥25॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi धीरे धीरे बुद्धि की स्थिरता ग्ररण करते हुऐ मन को आत्म मे स्थित कर, कुछ भी नहीं सोचना चाहिये।

En His intellect should also rein in the mind firmly and make it contemplate nothing except God and, thus step by step, he should proceed towards the attainment of final liberation.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 26

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥26॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 26 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जब जब चंचल और अस्थिर मन किसी भी ओर जाये, तब तब उसे नियमित कर अपने वश में कर लेना चाहिये।

En Doing away with the causes that make the inconstant and fickle wander among worldly objects, he should devote his mind to God alone.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 27

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्॥27॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 27 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ऍसे प्रसन्न चित्त योगी को उत्तम सुख प्राप्त होता है जिसका रजो गुण शान्त हो चुका है, जो पाप मुक्त है और ब्रह्म मे समा चुका है।

En The most sublime happiness is the lot of the yogi whose mind is at peace, who is free from evil, whose passion and moral blindness have been dispelled, and who has become one with God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 28

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते॥28॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अपनी आत्मा को सदा योग मे लगाये, पाप मुक्त हुआ योगी, आसानी से ब्रह्म से स्पर्श होने का अत्यन्त सुख भोगता है।

En Thus constantly dedicating his Self to God, the immaculate yogi experiences the eternal bliss of realization..
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 29

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥29॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योग से युक्त आत्मा, अपनी आत्मा को सभी जीवों में देखते हुऐ और सभी जीवों मे अपनी आत्मा को देखते हुऐ हर जगह एक सा रहता है।

En The worshipper, whose Self has achieved the state of yog and who sees all with an equal eye, beholds his own Self in all beings and all beings in his Self.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 30

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥30॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 30 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो मुझे हर जगह देखता है और हर चीज़ को मुझ में देखता है, उसके लिये मैं कभी ओझल नहीं होता और न ही वो मेरे लिये ओझल होता है।

En From the man, who sees me as the Soul in all beings and all beings in me (Vasudev), I am not hidden and he is not hidden from me.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 31

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते॥31॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 31 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सभी भूतों में स्थित मुझे जो अन्नय भाव से स्थित हो कर भजता है, वह सब कुछ करते हुऐ भी मुझ ही में रहता है।

En The even-minded yogi (who has known the unity of the individual Soul and the Supreme Spirit ) who adores me (Vasudev), the Soul in all beings, abides in me no matter whatever he does.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 32

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः॥32॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 32 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे अर्जुन, जो सदा दूसरों के दुख सुख और अपने दुख सुख को एक सा देखता है, वही योगी सबसे परम है।

En The worshipper, O Arjun, who perceives all things as identical and regards happiness and sorrow as identical, is thought to be the most accomplished yogi.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 33

अर्जुन उवाच (Arjun Said):

योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥33॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 33 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे मधुसूदन, जो आपने यह समता भरा योग बताया है, इसमें मैं स्थिरता नहीं देख पा रहा हूँ, मन की चंचलता के कारण।

En Since the mind is so restless, I cannot see, O Madhusudan, that it can dwell steadily and long in the Way of Knowledge which you have expounded to me as equanimity.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 34

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥34॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 34 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे कृष्ण, मन तो चंचल, हलचल भरा, बलवान और दृढ होता है। उसे रोक पाना तो मैं वैसे अत्यन्त कठिन मानता हूँ जैसे वायु को रोक पाना।

En For l find restraining the mind as difficult as restraining the wind, because it is (equally) restless, turbulent, and mighty.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 35

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥35॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 35 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बेशक, हे महाबाहो, चंचल मन को रोक पाना कठिन है, लेकिन हे कौन्तेय, अभ्यास और वैराग्य से इसे काबू किया जा सकता है।

En The mind is, O the mighty-armed, doubtlessly fickle and hard to restrain, but it is disciplined, O son of Kunti, by perseverance of effort and renunciation.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 36

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः॥36॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 36 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मेरे मत में, आत्म संयम बिना योग प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। लेकिन अपने आप को वश मे कर अभ्यास द्वारा इसे प्राप्त किया जा सकता है।

En It is my firm conviction that while the attainment of yog is most difficult for a man who fails to restrain his mind, it is easy for him who is his own master and active in the performance of the required action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 37

अर्जुन उवाच (Arjun Said):

अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति॥37॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 37 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे कृष्ण, श्रद्धा होते हुए भी जिसका मन योग से हिल जाता है, योग सिद्धि को प्राप्त न कर पाने पर उसको क्या परिणाम होता है।

En What is the end, O Krishn, of the acquiescent worshipper whose inconstant mind has strayed from selfless action and who has, therefore, been deprived of perception which is the final outcome of yog?
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 38

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि॥38॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 38 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi क्या वह दोनों पथों में असफल हुआ, टूटे बादल की तरह नष्ट नहीं हो जाता। हे महाबाहो, अप्रतिष्ठित और ब्रह्म पथ से विमूढ हुआ।

En Is it, O the mighty-armed, that this deluded man with no haven to turn to is destroyed like scattered clouds, deprived of both Self-realization and worldly pleasures?
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 39

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः।
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते॥39॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 39 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे कृष्ण, मेरे इस संशय को आप पूरी तरह मिटा दीजीऐ क्योंकि आप के अलावा और कोई नहीं है जो इस संशय को छेद पाये।

En You, O Krishn, are the most capable of fully resolving this doubt of mine because I cannot think of anyone else who can do it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 40

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति॥40॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 40 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे पार्थ, उसके लिये विनाश न यहाँ है और न कहीं और ही। क्योंकि, हे तात, कल्याण कारी कर्म करने वाला कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।

En This man, O Parth, is destroyed neither in this world nor in the next because, my brother, one who performs good deeds never comes to grief.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 41

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते॥41॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 41 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योग पथ में भ्रष्ट हुआ मनुष्य, पुन्यवान लोगों के लोकों को प्राप्त कर, वहाँ बहुत समय तक रहता है और फिर पवित्र और श्रीमान घर में जन्म लेता है।

En The righteous man who deviates from the path of yog achieves celestial merits and pleasures for countless years after which he is reborn in the house of a virtuous and noble man (or fortunate and thriving man).
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 42

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्॥42॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 42 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi या फिर वह बुद्धिमान योगियों के घर मे जन्म लेता है।  ऍसा जन्म मिलना इस संसार में बहुत मुश्किल है।

En Or he is admitted to the family (kul) of discerning yogi and such a birth is truly the most rare in the world.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 43

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन॥43॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 43 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi वहाँ उसे अपने पहले वाले जन्म की ही बुद्धि से फिर से संयोग प्राप्त होता है। फिर दोबारा अभ्यास करते हुऐ, हे कुरुनन्दन, वह सिद्धि प्राप्त करता है।

En He naturally bears with him into his new birth the noble impressions (sanskar) of yog from his previous existence, and by dint of this he strives well for perfection (that comes from the realization of God).
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 44

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते॥44॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 44 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi पुर्व जन्म में किये अभ्यास की तरफ वह बिना वश ही खिच जाता है। क्योंकि योग मे जिज्ञासा रखने वाला भी वेदों से ऊपर उठ जाता है।

En Although he is lured by objects of sense, the merits of his previous life indeed draw him towards God and his aspiration for yog enables him to go beyond the material rewards promised by the Ved.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 45

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्॥45॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 45 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अनेक जन्मों मे किये प्रयत्न से योगी विशुद्ध और पाप मुक्त हो,  अन्त में परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।

En The yogi, who has purified his heart and mind through several births by intense meditation and thus rid himself of all sins, attains to the ultimate state of realizing God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 46

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन॥46॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 46 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योगी तपस्वियों से अधिक है, विद्वानों से भी अधिक है, कर्म से जुड़े लोगों से भी अधिक है, इसलिये हे अर्जुन तुम योगी बनो।

En Since yogi is superior to men who do penance, or men who follow the path of discrimination, or men who desire the fruits of action, O Kurunandan, you should be a doer of selfless action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 6 शलोक 47

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥47॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 6 शलोक 47 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi और सभी योगीयों में जो अन्तर आत्मा को मुझ में ही बसा कर श्रद्धा से मुझे याद करता है, वही सबसे उत्तम है।

En Among all yogi I think that one the best who is dedicated to me and who, abiding in the Self, always adores me.
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