सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 10 शलोक 1 से 42
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 यथारूप हिन्दी, इंग्लिश व संस्कृत मे पीडीएफ के साथ
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 1
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥1॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiफिर से, हे महाबाहो, तुम मेरे परम वचनों को सुनो। क्योंकि तुम मुझे प्रिय हो इसलिय मैं तुम्हारे हित के लिये तुम्हें बताता हूँ। EnListen again, O the mighty-armed, to the mystic and compelling words I am about to speak because of my concern for the good of a beloved pupil.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 2
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः॥2॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiन मेरे आदि (आरम्भ) को देवता लोग जानते हैं और न ही महान् ऋषि जन क्योंकि मैं ही सभी देवताओं का और महर्षियों का आदि हूँ। EnNeither gods nor great sages know my origin, for I am the primal Source from which all of them have arisen.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 3
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।
असंमूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते॥3॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजो मुझे अजम (जन्म हीन) और अन-आदि (जिसका कोई आरम्भ न हो) और इस संसार का महान ईश्वर (स्वामि) जानता है, वह मूर्खता रहित मनुष्य इस मृत्यु संसार में सभी पापों से मुक्त हो जाता है। EnThe wise man among mortals, who knows my reality as the birthless, eternal, and supreme God of the entire world, is freed from all sins.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 4, 5
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः क्षमा सत्यं दमः शमः।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च॥4॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥5॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 4, 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiबुद्धि, ज्ञान, मोहित होने का अभाव, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों पर संयम, मन की सैम्यता (संयम), सुख, दुख, होना और न होना, भय और अभय, प्राणियों की हिंसा न करना (अहिंसा), एक सा रहना एक सा देखना (समता), संतोष, तप, दान, यश, अपयश – प्राणियों के ये सभी अलग अलग भाव मुझ से ही होते हैं। EnAll the manifold qualities with which beings are endowed: will, knowledge, freedom from delusion, forgiveness, truth, restraint of Senses and mind, happiness and unhappiness, creation and destruction, fear and fearlessness, as well as abstinence from the desire to harm, equanimity of mind, contentment, penance, charity, fame, and ignominy-are provided by none but me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 6
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः॥6॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiपुर्वकाल में उत्पन्न हुये सप्त (सात) महर्षि, चार ब्रह्म कुमार, और मनु – ये सब मेरे द्वारा ही मन से (योग द्वारा) उत्पन्न हुये हैं और उनसे ही इस लोक में यह प्रजा हुई है। EnThe seven great sages,1 the four who had been earlier than them, as well as Manu and others from whom all mankind has sprung, have all been shaped by the operation of my will.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 7
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः॥7॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमेरी इस विभूति (संसार के जन्म कर्ता) और योग ऍश्वर्य को सार तक जानता है, वह अचल (भक्ति) योग में स्थिर हो जाता है, इसमें कोई शक नहीं। EnThe one who knows the reality of my exalted magnificence and the might of my yog doubtless partakes of my nature by becoming one with me through meditation.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 8
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥8॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 8 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमैं ही सब कुछ का आरम्भ हूँ, मुझ से ही सबकुछ चलता है। यह मान कर बुद्धिमान लोग पूर्ण भाव से मुझे भजते हैं। EnAware of the reality that I am the source of all creation as also the motive that stirs it to effort, and possessed of faith and devotion, wise men remember and worship only me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 9
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च॥9॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमुझ में ही अपने चित्त को बसाऐ, मुझ में ही अपने प्राणों को संजोये, परस्पर एक दूसरे को मेरा बोध कराते हुये और मेरी बातें करते हुये मेरे भक्त सदा संतुष्ट रहते हैं और मुझ में ही रमते हैं। EnThey who anchor their minds on me, sacrifice their breath to me, and are contented with speaking only of my greatness among themselves, always dwell in me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 10
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥10॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 10 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiऍसे भक्त जो सदा भक्ति भाव से भरे मुझे प्रीति पूर्ण ढंग से भजते हैं, उनहें मैं वह बुद्धि योग (सार युक्त बुद्धि) प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा वे मुझे प्राप्त करते हैं। EnI bestow upon the devotees, who always remember me and adore me with love, that discipline of yog by learning which they attain to none but me.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 11
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता॥11॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiउन पर अपनी कृपा करने के लिये मैं उनके अन्तकरण में स्थित होकर, अज्ञान से उत्पन्न हुये उनके अँधकार को ज्ञान रूपी दीपक जला कर नष्ट कर देता हूँ। EnTo extend my grace to them, I dwell in their innermost being and dispel the gloom of ignorance by the radiance of knowledge.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 12, 13
अर्जुन उवाच (Arjun Said):
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्॥12॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे॥13॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 12, 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप ही परम ब्रह्म हैं, आप ही परम धाम हैं, आप ही परम पवित्र हैं, आप ही दिव्य शाश्वत पुरुष हैं, आप ही हे विभु आदि देव हैं, अजम हैं। सभी ऋषि, देवर्षि नारद, असित, व्याल, व्यास जी आपको ऍसे ही बताते हैं। यहाँ तक की स्वयं आपने भी मुझ से यही कहा है। EnIt has been so said by even divine sages such as Narad, Asit, the sage Deval, and the great saint Vyas – that you are the radiant Being, supreme goal, and absolutely unblemished, because all of them believe you to be the Supreme Spirit who is the primeval, birthless, and all-pervasive God of all gods; and now you tell me the same.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 14
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः॥14॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे केशव, आपने मुझे जो कुछ भी बताया उस सब को मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन, आप के व्यक्त होने को न देवता जानते हैं और न ही दानव। EnI believe, O Keshav, all that you have told me and which, O Lord, is known to neither demons nor gods, to be true.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 15
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते॥15॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiस्वयं आप ही अपने आप को जानते हैं हे पुरुषोत्तम। हे भूत भावन (जीवों के जन्म दाता)। हे भूतेश (जीवों के ईश)। हे देवों के देव। हे जगतपति। EnWhich, O Supreme Lord, O Creator and God of all beings, O God of gods and master of the world, is known to you alone.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 16
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि॥16॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप जिन जिन विभूतियों से इस संसार में व्याप्त होकर विराजमान हैं, मुझे पुरी तरहं (अशेष) अपनी उन दिव्य आत्म विभूतियों का वर्णन कीजिय (आप ही करने में समर्थ हैं)। EnSo you alone are capable of enlightening me well on your glories by which you pervade and dwell in all the worlds.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 17
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया॥17॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे योगी, मैं सदा आप का परिचिन्तन करता (आप के बारे में सोचता) हुआ किस प्रकार आप को जानूं (अर्थात किस प्रकार मैं आप का चिन्तन करूँ)। हे भगवन, मैं आपके किन किन भावों में आपका चिन्तन करूँ। EnHow should I, O Yogeshwar, know you by incessant contemplation and in what forms, O Lord, should I worship you?सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 18
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन।
भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्॥18॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे जनार्दन, आप आपनी योग विभूतियों के विस्तार को फिर से मुझे बताइये, क्योंकि आपके वचनों रुपी इस अमृत का पान करते (सुनते) अभी मैं तृप्त नहीं हुआ हूँ। EnAnd, O Janardan, tell me again the power of your yog and your exalted magnificence, for I am not yet sated by the honey of your utterances.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 19
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे॥19॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमैं तुम्हें अपनी प्रधान प्रधान दिव्य आत्म विभूतियों के बारे में बताता हूँ क्योंकि हे कुरु श्रेष्ठ मेरे विसतार का कोई अन्त नहीं है। EnThe Lord (then) said, I shall now tell you of the power of my glories, for there is no end to my diverse manifestations.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 20
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥20॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमैं आत्मा हूँ, हे गुडाकेश, सभी जीवों के अन्तकरण में स्थित। मैं ही सभी जीवों का आदि (जन्म), मध्य और अन्त भी हूँ। EnI am, O Gudakesh, the Self that dwells within all beings, as also their primeval beginning, middle, and end.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 21
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥21॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआदित्यों (अदिति के पुत्रों) में मैं विष्णु हूँ। और ज्योतियों में किरणों युक्त सूर्य हूँ। मरुतों (49 मरुत नाम के देवताओं) में से मैं मरीचि हूँ। और नक्षत्रों में शशि (चन्द्र)। EnI am Vishnu among the twelve sons of Aditi4, the sun among lights, the god Mareechi among winds, and the sovereign moon among planets.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 22
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥22॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiवेदों में मैं साम वेद हूँ। देवताओं में इन्द्र। इन्द्रियों में मैं मन हूँ। और जीवों में चेतना। EnI am also the Sam among the Ved, Indr among gods, the mind among senses, and the consciousness in beings.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 23
रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥23॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiरुद्रों में मैं शंकर (शिव जी) हूँ, और यक्ष एवं राक्षसों में कुबेर हूँ। वसुयों में मैं अग्नि (पावक) हूँ। और शिखर वाले पर्वतों में मैं मेरु हूँ। EnI am Shankar among Rudr,5 Kuber6 among demons and yaksh,7 fire among Vasu,8 and the Sumeru among lofty mountains.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 24
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः॥24॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे पार्थ तुम मुझे पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति जानो। सेना पतियों में मुझे स्कन्ध जानो और जलाशयों में सागर। EnBe it known to you, Parth, that I am among priests the Chief Priest Brihaspati, Skand9 among martial chiefs, and the ocean among seas.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 25
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥25॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमहर्षीयों में मैं भृगु हूँ, शब्दों में मैं एक ही अक्षर ॐ हूँ। यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूँ और न हिलने वालों में हिमालय। EnI am Bhrigu among the great saints (maharshi), OM among words, the yagya of intoned prayers (jap-yagya) among yagya, and the Himalaya among stationary objects.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 26
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥26॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 26 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiसभी वृक्षों में मैं अश्वत्थ हूँ, और देव ऋर्षियों में नारद। गन्धर्वों में मैं चित्ररथ हूँ और सिद्धों में भगवान कपिल मुनि। EnI am Ashwath (the Peepal) among trees, Narad among divine sages, Chitrarath among Gandharv, and the sage Kapil among men of attainment.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 27
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्॥27॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 27 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiसभी घोड़ों में से मुझे तुम अमृत के लिये किये सागर मंथन से उत्पन्न उच्चैश्रव समझो। हाथीयों का राजा ऐरावत समझो। और मनुष्यों में मनुष्यों का राजा समझो। EnKnow (also) that I am the nectar-born Uchchaishrav among horses, Airawat among pachyderms, and king among men.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 28
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः॥28॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiशस्त्रों में मैं वज्र हूँ। गायों में कामधुक। प्रजा की बढौति करने वालों में कन्दर्प (काम देव) और सर्पों में मैं वासुकि हूँ। EnI am Vajr among weapons, Kamdhenu among cows, Kamdev for procreation, and Vasuki, the king of snakes.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 29
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥29॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiनागों में मैं अनन्त (शेष नाग) हूँ और जल के देवताओं में वरुण। पितरों में अर्यामा हूँ और नियंत्रित करने वालों में यम देव। EnI am Sheshnag among the nag (snakes), the god Varun among beings of water, Aryama among ancestors, and Yamraj among rulers.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 30
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्॥30॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 30 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiदैत्यों में मैं भक्त प्रह्लाद हूँ। परिवर्तन शीलों में मैं समय हूँ। हिरणों में मैं उनका इन्द्र अर्थात शेर हूँ और पक्षियों में वैनतेय (गरुड)। EnI am Prahlad among daitya (demons), unit of time for reckoners, the lion (mrigendr) among beasts, and Garud among birds.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 31
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी॥31॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 31 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiपवित्र करने वालों में मैं पवन (हवा) हूँ और शस्त्र धारण करने वालों में भगवान राम। मछलियों में मैं मकर हूँ और नदीयों में जाह्नवी (गँगा)। EnI am the wind among powers that refine, Ram among armed warriors, the crocodile among fishes, and the sacred Bhagirathi Ganga27 among rivers.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 32
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्॥32॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 32 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiसृष्टि का आदि, अन्त और मध्य भी मैं ही हूँ हे अर्जुन। सभी विद्याओं मे से अध्यात्म विद्या मैं हूँ। और वाद विवाद करने वालों के वाद में तर्क मैं हूँ। EnI am, O Arjun , the beginning and end and also the middle of created beings, the mystic knowledge of Self among sciences, and the final arbiter among disputants.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 33
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः॥33॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 33 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiअक्षरों में अ मैं हूँ। मैं ही अन्तहीन (अक्षय) काल (समय) हूँ। मैं ही धाता हूँ (पालन करने वाला), मैं ही विश्व रूप (हर ओर स्थित हूँ)। EnI am the vowel akar among the letters of the alphabet, dwandwa among compounds, the eternal Mahakal amidst mutable time, and also the God who holds and sustains all.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 34
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥34॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 34 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiसब कुछ हर लेने वीली मृत्यु भी मैं हूँ और भविष्य में उत्पन्न होने वाले जीवों की उत्पत्ति भी मैं ही हूँ। नारीयों में कीर्ति (यश), श्री (धन संपत्ति सत्त्व), वाक शक्ति (बोलने की शक्ति), स्मृति (यादाश्त), मेधा (बुद्धि), धृति (स्थिरता) और क्षमा मैं हूँ। EnI am the death that annihilates all, the root of the creations to be, and Keerti among women-the embodiment of the feminine qualities of accomplishing action (keerti) vitality, speech, memory, awareness (medha), patience and forgiveness.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 35
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥35॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 35 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiगाये जाने वाली श्रुतियों (सामों) में मैं बृहत्साम हूँ और वैदिक छन्दों में गायत्री। महानों में मैं मार्ग-शीर्ष हूँ और ऋतुयों में कुसुमाकर (फूलों को करने वाली अर्थात वसन्त)। EnAnd I am the Sam Ved among scriptural hymn, the Gayatri among metrical compositions, the ascendant Agrahayan among months, and the spring among seasons.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 36
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्॥36॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 36 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiछल करने वालों का जुआ मैं हूँ और तेजस्वियों का तेज मैं हूँ। मैं ही विजय (जीत) हूँ, मैं ही सही निश्चय (सही मार्ग) हूँ। मैं ही सात्विकों का सत्त्व हूँ। EnI am the deceit of cheating gamblers, the glory of renowned men, the victory of conquerors, the determination of the resolved, and the virtue of the pious.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 37
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥37॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 37 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiवृष्णियों में मैं वासुदेव हूँ और पाण्डवों में धनंजय (अर्जुन)। मुनियों में मैं भगवान व्यास मुनि हूँ और सिद्ध कवियों में मैं उशना कवि (शुक्राचार्य) हूँ। EnI am Vasudev among the descendants of Vrishni, Dhananjay among the Pandav, Vedvyas among sages, and Shukracharya among poets.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 38
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्॥38॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 38 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiदमन (लागू) करने वालों में दण्ड नीति मैं हूँ और विजय की इच्छा रखने वालों में न्याय (नीति) मैं हूँ। गोपनीय बातों में मौनता मैं हूँ और ज्ञानियों का ज्ञान मैं हूँ। EnAnd I am the oppression of tyrants, the wise conduct of those who aspire to succeed, silence among secrets, and also the knowledge of enlightened men.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 39
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥39॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 39 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजितने भी जीव हैं हे अर्जुन, उन सबका बीज मैं हूँ। ऍसा कोई भी चर अचर (चलने या न चलने वाला) जीव नहीं है जो मेरे बिना हो। EnAnd, O Arjun, I am also the seed from which all beings have sprung up, because there is nothing animate or inanimate which is without my maya.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 40
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया॥40॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 40 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमेरी दिव्य विभूतियों का कोई अन्त नहीं है हे परन्तप। मैने अपनी इन विभूतियों की विस्तार तुम्हें केवल कुछ उदाहरण देकर ही बताया है। EnWhat I have told you, O Parantap, is only a brief abstract of my countless glories.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 41
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्॥41॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 41 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजो कुछ भी (प्राणी, वस्तु आदि) विभूति मयी है, सत्त्वशील है, श्री युक्त हैं अथवा शक्तिमान है, उसे तुम मेरे ही अंश के तेज से उत्पन्न हुआ जानो। EnKnow that whatever is possessed of glory, beauty, and strength has arisen from my own splendour.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 शलोक 42
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥42॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 शलोक 42 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiऔर इस के अतिरिक्त बहुत कुछ जानने की तुम्हें क्या आवश्यकता है हे अर्जुन। मैंने इस संपूर्ण जगत को अपने एक अंश मात्र से प्रवेश करके स्थित कर रखा है। EnOr, instead of knowing anything more, O Arjun, just remember that I am here and I bear the whole world with just a fraction of my power.