श्रीकृष्णसखा उद्धव – श्रीमद्भगवद्गीता
उद्धवजी वृष्णवंशियोंमें एक प्रधान पुरुष थे| ये साक्षात् बृहस्पतिजीके शिष्य और परम बुद्धिमान् थे| मथुरा आनेपर भगवान् श्रीकृष्णने इन्हें अपनी मन्त्री और अन्तरङ्ग सखा बना लिया|
एक दिन भगवान् श्रीकृष्णने अपने प्रिय सखा उद्धवको एकान्तमें बुलाकर कहा – ‘उद्धवजी! आप नन्दबाबा, यशोदा मैया और गोपियोंके लिये मेरा संदेश लेकर व्रजमें जायँ| वे लोग मेरे विरहके दु:खसे अत्यन्त दु:खी हैं|’ वास्तवमें भगवान् श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा उद्धवको व्रज और व्रजकी गोपियोंके लोकोत्तर प्रेमका दर्शन कराना चाहते थे|
जब उद्धवजी व्रजमें पहुँचे, तब उनसे मिलकर नन्दबाबाको विशेष प्रसन्नता हुई| उन्होंने उनको गले लगाकर अपना स्नेह प्रदर्शित किया| आतिथ्य-सत्कारके बाद नन्दबाबाने उनसे वसुदेव-देवकी तथा श्रीकृष्ण-बलरामकी कुशल-क्षेम पूछा| उद्धवजी नन्दबाबा और यशोदा मैयाके हृदयमें श्रीकृष्णके प्रति दृढ़ अनुरागका दर्शन कर आनन्दमग्न हो गये| जब गोपियोंको ज्ञात हुआ कि उद्धवजी भगवान् श्रीकृष्णका संदेश लेकर आये हैं, तब उन्होंने एकान्तमें मिलनेपर उनसे श्यामसुन्दरका समाचार पूछा| उद्धवजीने कहा – ‘गोपियो! भगवान् श्रीकृष्ण सर्वव्यापी हैं| वे तुम्हारे हृदय तथा समस्त जड़-चेतनमें व्याप्त हैं| उनसे तुम्हारा वियोग कभी हो ही नहीं सकता| उनमें भगवद्बुद्धि करके तुम्हें सर्वत्र व्यापक श्रीकृष्णका साक्षात्कार करना चाहिये|’
गोपियोंने कहा – ‘उद्धवजी! हम जानती हैं कि संसारमें किसीकी आशा न रखना ही सबसे बड़ा सुख है, फिर भी हम श्रीकृष्णके लौटनेकी आशा छोड़नेमें असमर्थ हैं| उनके शुभागमनकी आशा ही तो हमारा जीवन है| यहाँका एक-एक प्रदेश, एक-एक धूलिकण श्यामसुन्दरके चरणचिह्नोंसे चिह्नित है| हम किसी प्रकार मरकर भी उन्हें नहीं भूल सकती हैं|’ गोपियोंके अलौकिक प्रेमको देखकर उद्धवजीके ज्ञानका अहङ्कार गल गया| वे कहने लगे – ‘मैं तो इन गोपकुमारीयोंकी चरणरजकी वन्दना करता हूँ| इनके द्वारा गायी गयी श्रीहरिकथा तीनों लोकोंको पवित्र करती है| पृथ्वीपर जन्म लेना तो इन गोपाङ्गनाओंका ही सार्थक है| मेरी तो प्रबल इच्छा है कि मैं इस व्रजमें कोई वृक्ष, लता अथवा तृण बन जाऊँ, जिससे इन गोपियोंकी पदधूलि मुझे पवित्र करती रहे|’
भगवान् ने जब द्वारकापुरीका निर्माण किया, तब उद्धवजी उनके साथ द्वारका आये| भगवान् श्रीकृष्ण इन्हें सदैव अपने साथ रखते थे तथा राज्यकार्यमें इनसे सहयोग लिया करते थे| स्वधाम पधारनेके पूर्व भगवान् श्रीकृष्णने उद्धवजीको तत्त्वज्ञानका उपदेश दिया और उन्हें बदरिकाश्रक जाकर रहनेकी आज्ञा दी| भगवान् के स्वधाम पधारनेपर उद्धवजी मथुरा आये| यहीं उनकी विदुरजीसे भेंट हुई| अपने एक स्वरूपसे भगवान्के आज्ञानुसार उद्धवजी बदरिकाश्रम चले गये और दूसरे सूक्ष्मरूपसे गोवर्धनके पास लता-गुल्मोंमें छिपकर निवास करने लगे| महर्षि शाण्डिल्यके उपदेशसे व्रजनाभने जब गोवर्धनके संनिकट संकीर्तन-महोत्सव किया, तब उद्धवजी लताकुञ्जोंसे प्रकट हो गये| उन्होंने श्रीकृष्णकी रानियोंको एक महीनेतक श्रीमद्भागवतकी कथा सुनायी तथा अपने साथ सबको नित्यव्रजभूमिमें ले गये| भगवान् श्रीकृष्णने कहा है – ‘मेरे इस लोकसे लीला-संवरणके बाद उद्धव ही मेरे ज्ञानकी रक्षा करेंगे, वे गुणोंमें मुझसे तनिक भी कम नहीं है| वे यहाँ अधिकारियोंको उपदेश करनेके लिये रहेंगे|’