माता यशोदा – श्रीमद्भगवद्गीता
माता यशोदाके सौभाग्यकी तुलना किसीसे भी नहीं हो सकती; क्योंकि भगवान् श्रीकृष्णने स्वयं उनका पुत्र बनकर उनके पवित्र स्तनोंका पान किया तथा उन्हें वात्सल्यसुखका अनुपम सौभाग्य प्रदान किया|
नन्दबाबा और यशोदा मैयाको कोई संतान न थी| वृद्धावस्थामें भगवान् ने स्वयं पुत्र बनकर नन्दरानीको पुत्रसुख दिया| भगवान् भक्तकी भावनाके अनुसार उसे सिद्धि प्रदान करते हैं| यशोदाजीने पूर्वजन्ममें धरारूपमें तपस्या करके भगवान् को पुत्ररूपमें प्राप्त करनेका वरदान प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण देवकी और वसुदेवके माध्यमसे जन्म लेनेके बाद सोती हुई यशोदाजीकी गोदमें पहुँच गये| नन्दभवनमें पुत्रोत्सवसे सम्पूर्ण व्रजवासी आनन्दसे थिरक उठे| एक बार भी जो नन्दरानीके नीलमणिको देख लेता उसका मन उसी चितचोरमें अटका रह जाता था| नन्दरानी आँखोंकी पुतलीकी भाँति अपने श्यामसुन्दरकी सुरक्षामें लगी रहतीं|
नन्दरानी यशोदाका यह बालक अद्भुत था| एक दिन कंसप्रेरित पूतनाने स्तनपान कराकर इसे मारना चाहा तो यह दूधके साथ उसके प्राणोंको भी पी गया| यशोदा मैयाके वात्सल्यके साथ श्रीकृष्ण भी धीरे-धीरे बढ़ने लगे| माता यशोदाने अपने नीलमणिका श्रृंगार करके उन्हें शकटसे नीचे पालनेमें पौढ़ा दिया तो शकटासुरका अन्त हुआ| व्योमासुरने जाल रचा तो वह भी यमलोक सिधारा| एक दिन यशोदाजी श्रीकृष्णको दूध पिला रही थीं, तबतक आगपर रखे हुए पद्मगन्धा गायके दूधमें उफान आया| यशोदाजी अपने नीलमणिको बैठाकर दूधको देखने गयीं| श्रीकृष्णको चञ्चलता सूझी, उन्होंने दहीकी मटकी ही फोड़ डाली| माखन बिखर गया, माता बड़ी कठिनाईसे अपने श्यामको मना पायी|
श्रीकृष्णने मिट्टी खायी, यह सुनकर यशोदाजी उनका मुख खुलवाकर देखने लगीं| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही उन्हें अपने लालचके मुखमें दिखायी दिया| यशोदाजी विस्मृत हो गयीं| श्रीकृष्णने वैष्णवीमायाका विस्तार किया और वह माताके विश्वदर्शनकी स्मृतिको बहा ले गयी| यशोदाजीके हृदयमें वात्सल्यका संचार हुआ और वे पुन: अपने सलोने श्यामको गोदमें लेकर दूध पिलाने लगीं| गोपियोंके यहाँ माखन-चोरीके उलाहनोंसे तो वे तंग ही आ चुकी थीं| एक दिन श्रीकृष्णने उनका भी दही-भाँड फोड़ दिया| जननीने श्रीकृष्णको डरानेके लिये उन्हें ऊखलमें बाँधा और यमलार्जुनका उद्धार हुआ| गोचारण, वत्सासुर और वकासुरका वध, कालिय-दमन, धेनुक-उद्धार, गोवर्धन-धारण आदि श्रीकृष्णकी अनेक लीलाओंको सुनकर यशोदाजी श्रीकृष्णकी दिव्य स्मृतिमें डूबी रहती थीं| अक्रूरके आगमनके साथ यशोदाजीके हृदयपर क्रूर वज्रका प्रहार हुआ और श्रीकृष्ण गोकुलसे मथुरा चले गये| श्रीकृष्ण-विरहमें जननी यशोदाजीकी जो दशा हुई उसका यथार्थ वर्णन करनेका साहस कोई नहीं कर सकता| जहाँसे श्रीकृष्ण रथपर बैठकर गये थे यशोदाजी वहाँ प्रतिदिन जातीं| उन्हें लगता कि अक्रूर अभी-अभी मेरे श्रीकृष्णको लेकर जा रहे हैं| वे चीत्कार कर उठतीं – ‘अरे! कोई मेरे श्रीकृष्णको रोक लो; अक्रूर उसे लिये जा रहे हैं|’ पशु-पक्षी और मनुष्य जो भी उनकी दृष्टिमें आता उसीसे वे देवकीको कृष्णकी सही देख-रेखके लिये संदेश भेजती थीं| माताको सान्त्वना देनेके लिये श्रीकृष्णने उद्धवको भेजा, लेकिन वे भी जननीके आँसू नहीं पोंछ पाये| कुरुक्षेत्रमें जब श्रीकृष्ण यशोदाजीसे मिले, तब राम-श्यामको हृदयसे लगाकर उनमें नव-जीवनका संचार हुआ| भगवान् श्रीकृष्णने अपनी लीला-संवरणके पूर्व ही जननी यशोदाको गोलोक भेज दिया| वात्सल्यप्रेमकी अनुपम उपासिका श्रीयशोदाजी धन्य हैं|