भाग्यवती यज्ञपत्नी – श्रीमद्भगवद्गीता
वृन्दावनके संनिकट कुछ याज्ञिक ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे| भगवान् श्रीकृष्णने अपने सखाओंको उनके पाससे भोजनके लिये कुछ अन्न माँगनेके लिये भेजा| याज्ञिकोंने उन्हें अन्न देना अस्वीकार कर दिया|
फिर भगवान् ने उन्हें याज्ञिक ब्राह्मणोंकी पत्नियोंके पास भेजा| याज्ञिक ब्राह्मणोंकी पत्नियाँ भगवान् श्रीकृष्णका संदेश सुनकर थालोंमें भोजनकी विविध सामग्रियाँ सजाकर बड़े उत्साह और भक्तिके साथ उनके स्वागतके लिये चल दीं|
जब सभी याज्ञिकोंकी पत्नियाँ भगवान् श्रीकृष्णके पास जा रही थीं, तब एक याज्ञिक भोजन कर रहा था| वह अत्यन्त क्रोधी और कृपण था| उसकी पत्नीने अपने पतिसे कहा – ‘नाथ! सभी यज्ञपत्नियाँ भगवान् श्यामसुन्दरके दर्शनके लिये जा रही हैं| आप मुझे भी जानेकी अनुमति प्रदान करें|’
ब्राह्मणने कहा – ‘तू कैसी पत्नी है कि पतिको भोजन करते हुए छोड़कर कृष्णके दर्शनके लिये लालायित है| तेरा स्वामी तो मैं हूँ| मुझे छोड़कर तुम्हारा यह नया स्वामी कौन है?’
ब्राह्मणीने कहा – ‘आप मेरे शरीरके स्वामी हैं| आत्माके स्वामी तो श्रीकृष्ण ही हैं| मैं उनके दर्शनके लिये अवश्य जाऊँगी|’
ब्राह्मण खाना-पीना भूल गया| ब्राह्मणीका उत्तर सुनकर वह अभिमानी ब्राह्मण जल उठा| क्रोधित होकर उसने दृढ़ताके साथ कहा – ‘अच्छी बात है, देखता हूँ तू मेरी आज्ञाके बिना कैसे जाती है|’ यह कहकर उस क्रोधी ब्राह्मणने अपनी पत्नीके हाथ-पैरोंको रस्सियोंसे बाँध दिया और स्वयं पहरेपर बैठ गया|
उसकी पत्नीने कहा – ‘शरीरपर आपका अधिकार है, उसे आपने बाँध ही लिया है| प्राण और आत्मा तो उन्हीं श्यामसुन्दरके हैं| उनपर अन्य किसीका अधिकार नहीं है| शरीर न सही मेरे प्राण और आत्माके साथ ही उनका मिलाप होगा|’ यह कहकर उसने आँखें मूँद लीं| जिस मालिनको श्यामसुन्दरने निहाल कर दिया था, वही मालिन मथुरामें इन ब्राह्मणोंके यहाँ फूल-माला देने आया करती थी| वह प्रतिदिन विप्रपत्नियोंसे श्यामसुन्दरके अनुपम सौन्दर्यकी चर्चा किया करती थी| उसके मुखसे विप्रपत्नीने श्यामसुन्दरके स्वरूपका जैसा वर्णन सुना था, उसी रूपका वह आँखें मूँदकर ध्यान करने लगी| उसने ध्यानमें देखा, नीलमणिके समान भगवान् श्रीकृष्णके शरीरकी आभा है| उनके मुखपर काली-काली घुँघराली अलकें अटक रही हैं| उनके गलेमें सुन्दर पुष्पोंकी माला एवं अन्य आभूषण लटक रहे हैं| भगवान् की कमरमें सुन्दर रेशमी पीली धोती है और कन्धोंपर सुन्दर दुपट्टा है| उनके हाथमें मुरली सुशोभित है| मन्द-मन्द-मुसकराते हुए भगवान् उसकी ओर अत्यन्त प्रेमसे देख रहे हैं| इस प्रकार ध्यान करते-करते ब्राह्मणीके श्वास रुक गये| ब्राह्मणीके शरीरसे प्राण निकलकर भगवान् के चरणोंमें प्रविष्ट हो गये| उसके नेत्रोंके कोरोंसे अश्रु ढुलक पड़े| ब्राह्मणीकी आत्मा श्रीकृष्णसे मिलकर एकाकार हो गयी और उसका प्राणहीन शरीर ब्राह्मणके पास पड़ा रह गया| यज्ञपत्नी-जैसा सौभाग्य ऋषि-मुनियोंके लिये भी दुलर्भ है|