Homeधार्मिक ग्रंथश्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख पात्रपरम भाग्यवती गोपियाँ – श्रीमद्भगवद्गीता

परम भाग्यवती गोपियाँ – श्रीमद्भगवद्गीता

परम भाग्यवती गोपियाँ

परम भाग्यवती गोपियोंके सौभाग्यका वर्णन करना मन, वाणी और बुद्धिकी सीमासे परे हैं| जिस प्रकार भगवान् का लीला-शरीर और उनकी लीलाएँ प्राकृत नहीं हैं, उसी प्रकार गोपीप्रेम भी प्रकृतिकी सीमासे परे है|

भगवान् की प्रेम-लीलाकी सहयोगिनी कुछ गोपिकाएँ तो नित्यसिद्धा हैं| बहुत-सी गोपिकाएँ अपनी महान् साधनाके फलस्वरूप भगवान् की वाञ्छित सेवा करनेके लिये गोपीरूपमें अवतीर्ण हुई थीं| उनकी लालसा इतनी अनन्य थी, उनकी लगन इतनी सच्ची थी कि प्रेमरसमय भगवान् ने उन्हें सुख पहुँचानेके लिये माखनचोरी, चीरहरण और रासलीलाकी दिव्य लीलाएँ कीं| इन गोपियोंमें कुछ पूर्वजन्मकी देवकन्याएँ थीं, कुछ श्रुतियाँ थीं और कुछ तपस्वी ऋषि थे| 

गोपियोंका तन, मन तथा धन-सभी कुछ प्राणप्रियतम श्रीकृष्णका था| वे संसारमें जीती थीं श्रीकृष्णके लिये, घरमें रहती थीं श्रीकृष्णके लिये और श्रीकृष्णके लिये ही गृहके कार्य करती थीं| रातमें वे जागकर प्रात:काल होनेकी बाट देखतीं! उनका मन श्रीकृष्णमें लगा रहता| प्रात:काल वे दही मथकर, माखन निकालकर छीकेपर रखतीं कि कहीं श्रीकृष्ण आकर लौट न जायँ| श्रीकृष्णकी प्रतीक्षामें एक क्षण भी उन्हें युगोंके समान प्रतीत होता था| व्रजवासी गोपियोंकी लालसा पूरी करनेके लिये भगवान् श्रीकृष्ण उनके घर जाते थे और चुरा-चुराकर माखन खाते थे| यह वास्तवमें चोरी नहीं थी| भक्तवत्सल भगवान् इसी तरहसे गोपियोंकी पूजा स्वीकार करके उन्हें प्रसन्न करते थे|

जो गोपियाँ श्रीकृष्णचन्द्रकी आयुकी थीं, उनके मनमें श्रीकृष्णको प्रतिरूपमें प्राप्त करनेकी अभिलाषा थी| वे भगवती महामाया कात्यायनीदेवीकी बालुकामयी प्रतिमा बनाकर विविध उपचारोंसे उनकी पूजा करतीं और उनसे प्रार्थना करती थीं – ‘माता! नन्दनन्दको हमारा पति बना दो, हम तुम्हें नमस्कार करती हैं|’ आखिर गोपियोंकी साधना पूर्ण हुई और शरत्पूर्णिमाकी धवल-रात्रिमें उन्हें महारासका निमन्त्रण मिला| भगवान् श्रीकृष्णकी बाँसुरी एक-एक गोपीका नाम लेकर पुकारने लगी| गोपियोंका मन तो श्रीकृष्णके पास ही था; शरीर भी वंशीध्वनिके पीछे दौड़ पड़ा| जो जहाँ जिस अवस्थामें थीं, वहींसे दौड़ पड़ीं| वंशीध्वनिसे आकर्षित होकर झुण्ड-की-झुण्ड गोपसुन्दरियाँ एकत्र हो गयीं| पहले तो उनकी कठिन प्रेम-परीक्षा हुई; किंतु उसमें सब-की-सब उत्तीर्ण हुईं| गोपियोंके प्रेमके मूल्यमें विश्वात्मा श्रीकृष्ण उनके हाथों बिक गये| गोपसुन्दरियाँ श्रीकृष्णको हृदयसे आलिङ्गन करके कृतार्थ हो गयीं| महारासने गोपसुन्दरियोंके सम्पूर्ण मनोरथोंको पूर्ण कर दिया|

सहसा एक दिन श्रीकृष्णचन्द्र मथुरा चले गये| प्रियतमके विरहमें गोपियोंके प्राण तो श्रीकृष्णके साथ चले गये और व्रजभूमिमें उनके छायामात्र रह गयी| कुछ दिनोंके बाद उद्धव श्रीकृष्णका संदेश लेकर आये, पर वे भी गोपियोंके प्रेमसागरमें डूब गये| वास्तवमें श्रीकृष्ण-वियोगकी लीला तो प्रेमकी परिपुष्टिके लिये हुई थी| यदि यह लीला न होती तो प्रेमकी अन्तिम परिणति भगवान् की प्रेमाधीनताको प्रकट होनेका अवसर नहीं मिलता| कुरुक्षेत्रकी भूमिमें गोपसुन्दरियों तथा श्रीकृष्णचन्द्रका पुनर्मिलन हुआ| प्रियतमसे मिलकर उनकी वियोगान्गि शान्त हो गयी| जब भगवान् के लीला-संवरणका अवसर आया, तब गोलोक विहारीके साथ गोपियाँ भी अन्तर्हित हो गयीं|