अक्रूरजी – श्रीमद्भगवद्गीता

अक्रूरजी

अक्रूरजीका जन्म यदुवंशमें हुआ था| ये भगवान् श्रीकृष्णके परम भक्त थे| कुटुम्बके नाते ये वसुदेवजीके भाई लगते थे| इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण इन्हें चाचा कहते थे| कंसके अत्याचारोंसे पीड़ित होकर बहुत-से यदुवंशी इधर-उधर भाग गये थे, किंतु कंस इनपर विशेष विश्वास करता था| इसलिये ये किसी प्रकार उसके दरबारमें पड़े हुए थे|

जब भगवान् श्रीकृष्णको मरवानेके कंसके सभी प्रयास निष्फल हो गये, तब उसे एक नयी चाल सूझी| उसने धनुषयज्ञके बहाने श्रीकृष्ण-बलरामको गोकुलसे मथुरा बुलवानेका निश्चय किया| गोकुलसे श्रीकृष्ण-बलरामको लानेका दायित्व उसने अक्रूरजीको सौंपा| कंसकी आज्ञा पाकर अक्रूरजीकी प्रसन्नता ठिकाना न रहा| वे तो सदा भगवान् के दर्शनोंके लिये उत्कण्ठित रहा करते थे| भगवान् की कृपासे स्वत: ही ऐसा सुयोग उपस्थित हो गया|

प्रात:काल ही रथ सजाकर अक्रूरजीने मथुरासे नन्दगाँवकी ओर प्रस्थान कर दिया| रास्तेमें भगवान् श्रीकृष्णको लेकर वे नाना प्रकारकी सुखद कल्पनाएँ करने लगे| वे सोचने लगे – ‘आज मेरा जन्म सफल हो गया; क्योंकि आज मैं भगवान् के चरण-कमलोंका साक्षात् दर्शन करूँगा| कंसने आज मेरे ऊपर बहुत बड़ी कृपा की है| उसीके भेजनेसे मैं श्रीकृष्ण-बलरामके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त करूँगा| मैं उनके कुटुम्बका हूँ और उनका अत्यन्त हित चाहता हूँ| उनके सिवा मेरा कोई आराध्यदेव भी नहीं है| ऐसी स्थितिमें वे मुझे अवश्य ही अपना लेंगे| वे मुझे ‘चाचा अक्रूर’ कहकर सम्बोधित करेंगे, तब मेरा जीवन सफल हो जायगा|’ इस प्रकार भाँति-भाँतिकी मधुर कल्पनाएँ करते हुए अक्रूरजी वृन्दावनके समीप पहुँचे| वहाँ उन्होंने व्रज, अङ्कश, ध्वजा आदिसे विभूषित भगवान् श्रीकृष्णके चरणचिह्नोंको देखा| अक्रूरजी भावावेशमें रथसे कूद पड़े और व्रजकी उस पवित्र धूलमें लोटने लगे| आगे गोशालामें उन्हें सबसे पहले श्रीकृष्ण-बलरामके दर्शन हुए| भगवान् ने उन्हें छातीसे लगाया, उनकी कुशल पूछी और उन्हें घरमें ले जाकर उनका आतिथ्य-सत्कार किया|

दूसरे दिन श्रीकृष्ण और बलरामने अक्रूरजीके साथ रथद्वारा मथुराके लिये प्रस्थान किया| गोपियोंने उनका रथ घेर लिया| बड़ी कठिनाईसे भगवान् श्रीकृष्ण गोपियोंको समझाकर आगे बढ़े| थोड़ी दूर चलकर यमुनाके किनारे अक्रूरजी नित्यकर्मके लिये ठहरे| वे जैसे ही यमुनाजीमें डुबकी लगाये, उन्होंने जलमें भगवान् श्यामसुन्दरका चतुर्भुजरूपमें दर्शन किया| घबड़ाकर जब वे जलसे ऊपर आये तो दोनों भाइयोंको रथपर बैठे देखा| अक्रूरजीको ज्ञान हो गया कि जल, थल और नभमें कोई भी ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ श्रीकृष्ण विद्यमान न हों| भगवान् उन्हें देखकर हँस पड़े| अक्रूरजीने भगवान् को प्रणाम करके रथको मथुराकी ओर आगे बढ़ाया| मथुरा पहुँचकर भगवान् श्रीकृष्ण-बलराम रथसे उतर गये| अक्रूरजीने भगवान् से अपने घर पधारनेका आग्रह किया, किंतु भगवान् ने कंसकी मृत्युके बाद उनका आतिथ्य स्वीकार करनेका आश्वासन दिया| कंसकी मृत्युके बाद भगवान् श्रीकृष्णने अक्रूरके घर पधारकर उसे पवित्र किया| अक्रूरजी भगवान् के अन्तङ्ग और सुहृद् सखा थे| पाण्डवोंका समाचार लेनेके लिये भगवान् ने अक्रूरजीको ही हस्तिनापुर भेजा था| भगवान् जब मथुरापुरीको छोड़कर द्वारका गये, तब अक्रूरजी भी उनके साथ गये और अन्तमें भगवान् के साथ ही वे उनके पावन धामको प्रस्थान किये|