Homeधार्मिक ग्रंथमहाभारत के प्रमुख पात्रश्रीभीष्मपितामह – महाभारत

श्रीभीष्मपितामह – महाभारत

श्रीभीष्मपितामह

महात्मा भीष्म आदर्श पितृभक्त, आदर्श सत्यप्रतिज्ञ, शास्त्रोंके महान् ज्ञाता तथा परम भगवद्भक्त थे| इनके पिता भारतवर्षके चक्रवर्ती सम्राट् महाराज शान्तनु तथा माता भगवती गङ्ग थीं|

महर्षि वसिष्ठके शापसे ‘द्यौ’ नामक अष्टम वसु ही भीष्मके रूपमें इस धराधामपर अवतीर्ण हुए थे| बचपनमें इनका नाम देवव्रत था| एक बार इनके पिता महराज शान्तनु कैवर्तराजकी पालिता पुत्री सत्यवतीके अनुपम सौन्दर्यपर मुग्ध हो गये| कैवर्तराजने उनसे खा कि ‘मैं अपनी पुत्रीका विवाह आपसे तभी कर सकता हूँ, जब इसके गर्भसे उत्पन्न पुत्रको ही आप अपने राज्यका उत्तराधिकारी बनानेका वचन दें|’ महाराज शान्तनु अपने शीलवान् पुत्र देवव्रतके साथ अन्याय नहीं करना चाहते थे; अत: उन्होंने कैवर्तराजकी शर्तको अस्वीकार कर दिया, किंतु सत्यवतीकी आसक्ति और चिन्तामें वे उदास रहने लगे| जब भीष्मको महाराजकी चिन्ता और उदासीका कारण मालूम हुआ, तब इन्होंने कैवर्तराजके सामने जाकर प्रतिज्ञा की कि ‘आपकी कन्यासे उत्पन्न पुत्र ही राज्यका उत्तराधिकारी होगा|’ जब कैवर्तराजको इसपर भी संतोष नहीं हुआ तो इन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्यका पालन करनेका दूसरा प्रण किया| देवताओंने इस भीष्म-प्रतिज्ञाको सुनकर आकाशसे पुष्पवर्षा की और तभीसे देवव्रतका नाम भीष्म प्रसिद्ध हुआ| इनके पिताने इनपर प्रसन्न होकर इन्हें इच्छामृत्युका दुर्लभ वर प्रदान किया|

सत्यवतीके गर्भसे महाराज शान्तनुको चित्राङ्गद और विचित्रवीर्य नामके दो पुत्र हुए| महाराजकी मृत्युके बाद चित्रांगद राजा बनाये गये, किंतु गन्धर्वोंके साथ युद्धमें उनकी मृत्यु हो गयी| विचित्रवीर्य अभी बालक थे| उन्हें सिंहासनपर आसीन करके भीष्मजी राज्यका कार्य देखने लगे| विचित्रवीर्यके युवा होनेपर उनके विवाहके लिये काशिराजकी तीन कन्याओंका बलपूर्वक हरण करके भीष्मजीने संसारको अपने अस्त्र – कौशलका प्रथम परिचय दिया| काशीनरेश की बड़ी कन्या अम्बा शाल्वसे प्रेम करती थी, अत: भीष्मने उसे वापस भेज दिया; किंतु शाल्वने उसे स्वीकार नहीं किया| अम्बाने अपनी दुर्दशाका कारण भीष्मको समझकर उनकी शिकायत परशुरामजीसे की| परशुरामजीने भीष्मसे कहा कि ‘तुमने अम्बाका बलपूर्वक अपहरण किया है, अत: तुम्हें इससे विवाह करना होगा, अन्यथा मुझसे युद्धके लिये तैयार हो जाओ|’ परशुरामजीसे भीष्मका इक्कीस दिनोंतक भयानक युद्ध हुआ| अन्तमें ऋषियोंके करनेपर लोककल्याणके लिये परशुरामजीको ही युद्ध-विराम करना पड़ा| भीष्म अपने प्रणपर अटल रहे|

महाभारतके युद्धमें भीष्मको कौरवपक्षके प्रथम सेनानायक होनेका गौरव प्राप्त हुआ| इस युद्धमें भगवान् श्रीकृष्णने शस्त्र न ग्रहण करनेकी प्रतिज्ञा की थी| एक दिन भीष्मने भगवान् को शस्त्र ग्रहण करानेकी प्रतिज्ञा कर ली| इन्होंने अर्जुनको अपनी बाण-वर्षासे व्याकुल कर दिया| भक्तवत्सल भगवान् ने भक्तके प्राणकी रक्षाके लिये अपनी प्रतिज्ञाको भंग कर दिया और रथका टूटा हुआ पहिया लेकर भीष्मकी ओर दौड़ पड़े| भीष्म मुग्ध हो गये भगवान् की इस भक्तवत्सलतापर| अठारह दिनोंके युद्धमें दस दिनोंतक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्मने पाण्डवपक्षको व्याकुल कर दिया और अन्तमें शिखण्डीके माध्यमसे अपनी मृत्युका उपाय स्वयं बताकर महाभारतके इस अद्भुत योद्धाने शरशय्यापर शयन किया| शास्त्र और शस्त्रके इस सूर्यको अस्त होते हुए देखकर भगवान् श्रीकृष्णने इनके माध्यमसे युधिष्ठिरको धर्मके समस्त अङ्गोंका उपदेश दिलवाया| सूर्यके उत्तरायण होनेपर पीताम्बरधारी श्रीकृष्णकी छविको अपनी आँखोंमें बसाकर महात्मा भीष्मने अपने नश्वर शरीरका त्याग किया|