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भगवान् श्रीकृष्ण – महाभारत

भगवान् श्रीकृष्ण

महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्षको प्रदान करनेवाला कल्पवृक्ष है| यह विविध कथारूपी रत्नोंका तथा अज्ञानके अन्धकारको विनष्ट करनेवाला सूर्य है| इस ग्रन्थके मुख्य विषय तथा इस महायुद्धके महानायक भगवान् श्रीकृष्ण हैं|

नि:शस्त्र होते हुए भी भगवान् श्रीकृष्ण ही महाभारतके प्रधान योद्धा हैं| इसलिये सम्पूर्ण महाभारत भगवान् वासुदेवके ही नाम, रूप, लीला और धामका संकीर्तन है| नारायणके नामसे इस ग्रन्थके मङ्गलाचरणमें व्यासजीने सवर्प्रथम भगवान् श्रीकृष्णकी ही वन्दना की है|

महाभारतके आदिपर्वमें भगवान् श्रीकृष्णका प्रथम दर्शन द्रौपदी-स्वयंवरके अवसरपर होता है| जब अर्जुनके लक्ष्यवेध करनेपर द्रौपदी उनके गलेमें जयमाला डालती है तब कौरवपक्षके लोग तथा अन्य राजा मिलकर द्रौपदीको पानेके लिये युद्धकी योजना बनाते हैं| उस समय भगवान् श्रीकृष्णने उनको समझाते हुए कहा कि ‘इन लोगोंने द्रौपदीको धर्मपूर्वक प्राप्त किया है, अत: आप लोगोंको अकारण उत्तेजित नहीं होना चाहिये|’ भगवान् श्रीकृष्णको धर्मका पक्ष लेते हुए देखकर सभी लोग शान्त हो गये और द्रौपदीके साथ पाण्डव सकुशल अपने निवासपर चले गये|

धर्मराज युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें जब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि यहाँ सर्वप्रथम किसकी पूजा की जाय तो उस समय महात्मा भीष्मने कहा कि ‘वासुदेव ही इस विश्वके उत्पत्ति एवं प्रलयस्वरूप हैं और इस चराचर जगत्का अस्तित्व उन्हींसे है| वासुदेव ही अव्यक्त प्रकृति, सनातन कर्ता और समस्त प्राणियोंके अधीश्वर हैं, अतएव वे ही प्रथम पूजनीय हैं|’ भीस्मके इस कथनपर चेदिराज शिशुपालने श्रीकृष्णकी प्रथम पूजाका विरोध करते हुए उनकी कठोर निन्दा की और भीष्मपितामहको भी खरी-खोटी सुनायी| भगवान् श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक उसकी कठोर बातोंको सहते रहे और जब वह सीमा पार करने लगा, तब उन्होंने सुदर्शन चक्रके द्वारा उसका सिर धड़से अलग कर दिया| सबके देखते-देखते शिशुपालके शरीरसे एक दिव्य तेज निकला और भगवान् श्रीकृष्णमें समा गया| इस अलौकिक घटनासे यह सिद्ध होता है कि कोई कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, भगवान्के हाथों मरकर वह सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है|

पाण्डवोंके एकमात्र रक्षक तो भगवान् श्रीकृष्ण ही थे, उन्हींकी कृपा और युक्तिसे ही भीमसेनके द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिरका राजसूययज्ञ सम्पन्न हुआ| राजसूययज्ञका दिव्य सभागार भी मयदानवने भगवान् श्रीकृष्णके आदेशसे ही बनाया| द्यूतमें पराजित हुए पाण्डवोंकी पत्नी द्रौपदी जब भरी सभामें दु:शासनके द्वारा नग्न की जा रही थी, तब उसकी करुण पुकार सुनकर उस वनमालीने वस्त्रावतार धारण किया| शाकका एक पत्ता खाकर भक्तभयहारी भगवान् ने दुर्वासाके कोपसे पाण्डवोंकी रक्षा की|

युद्धको रोकनेके लिये श्रीकृष्ण शान्तिदूत बने, किंतु दुर्योधनके अहंकारके कारण युद्धारम्भ हुआ और राजसूययज्ञके अग्रपूज्य भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुनके सारथि बने| संग्रामभूमिमें उन्होंने अर्जुनके माध्यमसे विश्र्वको गीतारूपी दुलर्भ रत्न प्रदान किया| भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्र्वत्थामा – जैसे महारथियोंके दिव्यास्त्रोंसे उन्होंने पाण्डवोंकी रक्षा की| युद्धका अन्त हुआ और युधिष्ठिरका धर्मराज्य स्थापित हुआ| पाण्डवोंका एकमात्र वशंधर उत्तराका पुत्र परीक्षित् अश्र्वत्थामाके ब्रह्मास्त्रके प्रभावसे मृत उत्पन्न हुआ, किंतु भगवान् श्रीकृष्णकी कृपासे ही उसे जीवनदान मिला| अन्तमें गान्धारीके शापको स्वीकार करके महाभारतके महानायक भगवान् श्रीकृष्णने उद्दण्ड यादवकुलके परस्पर गृहयुद्धमें संहारके साथ अपनी मानवी लीलाका संवरण किया|