त्यागमूर्ति महाराज उशीनर – महाभारत
महाराज उशीनर त्याग और शरणागतवत्सलताके अनुपम आदर्श थे| उनके राज्यमें प्रजा अत्यन्त सुखी तथा धन-धान्यसे सम्पन्न थी| सभी लोग धर्माचरणमें रत थे|
एक समयकी बात है कि इन्द्रने उनकी धर्मनिष्ठाकी परीक्षा करनेका निश्चय किया| इसके लिये इन्द्रने बाज और अग्निने कबूतरका रूप बनाया| कबूतर बाजके डरसे भयभीत होकर महाराज उशीनरकी गोदमें छिप गया| उन्होंने जब कबूतरको अपनी गोदमें आया देखा तो उसे धीरज देते हुए कहा – ‘कपोत! अब तुझे किसीका डर नहीं है| मैं तुझे अभय देता हूँ| मेरे पास आ जानेपर अब कोई तुझे पकड़नेका विचार भी मनमें नहीं ला सकता| मैं यह काशीका राज्य और अपना जीवनतक तेरी रक्षाके लिये निछावर कर दूँगा| तुम भयको अपने मनसे निकाल दो|’
इतनेमें ही बाज भी वहाँ पहुँच गया| उसने कहा – ‘राजन्! यह कबूतर मेरा भोजन है| इसके मांस और रक्तपर मेरा अधिकार है| यह मेरी भूख मिटाकर मेरी तृप्ति कर सकता है| मुझे भूखकी ज्वाला जला रही है, अत: आप इस कबूतरको छोड़ दीजिये| मैं बड़ी दूरसे इसके पीछे उड़ता हुआ आ रहा हूँ| मेरे नाखून और परोंसे यह काफी घायल हो चुका है| आप इसे बचानेकी चेष्टा न कीजिये| अपने देशमें रहनेवाले मनुष्योंकी रक्षाके लिये आप राजा बनाये गये हैं| भूख-प्याससे तड़फते हुए पक्षीको रोकनेका आपको कोई अधिकार नहीं है| यदि धर्मकी रक्षाके लिये आप कबूतरकी रक्षा करते हों तो मुझ भूखे पक्षीपर भी आपको दृष्टि डालनी चाहिये| देवताओंने सनातन कालसे कबूतरको बाजका भोजन नियत कर रखा है| आज आपने मुझे भोजनसे वञ्चित कर दिया है, इसलिये मैं जी नहीं सकूँगा| मेरे न रहनेपर मेरे स्त्री-बच्चे भी नष्ट हो जायँगे| इस प्रकार आप इस कबूतरको बचाकर कई प्राणियोंकी जानके घातक बनेंगे| जो धर्म दूसरे धर्मका बाधक हो वह धर्म नहीं कुधर्म है| आप धर्म-अधर्मके निर्णयपर दृष्टि रखकर ही स्वधर्मके आचरणका निश्चय करें| यदि आपको कबूतरपर बड़ा स्नेह है तो आप मुझे कबूतरके बराबर अपना ही मांस तराजूपर तौलकर दे दीजिये|’
राजाने कहा ‘बाज! तुमने ऐसी बात कहकर मुझपर बड़ा अनुग्रह किया है| तुम अपनी तृप्तिके लिये मुझसे इच्छानुसार मांस ले सकते हो|’ ऐसा कहकर राजा उशीनर अपना मांस काटकर तराजूपर रखने लगे| यह समाचार सुनकर रानियाँ अत्यन्त दु:खी हुईं और हाहाकार करती हुई बाहर निकल आयीं| सेवकों, मन्त्रियों एवं रानियोंके रोनेसे वहाँ कोलाहल मच गया| राजाका वह साहसपूर्ण कार्य देखकर पृथ्वी काँप उठी, चारों ओर बादलोंकी घटा घिर आयी| महाराज उशीनर इन सारी घटनाओंसे निर्लिप्त होकर अपनी पिंडलियों, भुजाओं और जाँघोंसे मांस काट-काटकर तराजू भर रहे थे| राजाका मांस समाप्त हो गया, फिर भी कबूतरका पलड़ा भारी ही रहा| अब राजा मांस काटनेका काम बन्द करके स्वयं तराजूके पलड़ेपर बैठ गये|
अचानक दृश्य बदल गया| इन्द्र और अग्नि अपने वास्तविक स्वरूपमें आ गये| देवताओंने राजा उशीनरके ऊपर अमृत-वृष्टि कि| उनका शरीर दिव्य हो गया| इतनेमें ही आकाशसे एक दिव्य विमान उतरा| इन्द्रने महाराज उशीनरसे कहा – ‘राजन्! हम आपकी परीक्षा लेनेके लिये आये थे| संसारके इतिहासमें आप-जैसा त्यागवीर कोई नहीं है| आप अपनी परीक्षामें सफल हुए| अब आप इस विमानमें बैठकर स्वर्ग पधारें|’ जो मनुष्य अपने शरणागत प्रणियोंकी रक्षा करता है, वह परलोकमें अक्षय सुखका अधिकारी होता है| सत्य पराक्रमी राजर्षि उशीनर अपने अपूर्व त्यागसे तीनों लोकोंमें विख्यात हो गये|