भगवान् वेदव्यास – महाभारत

भगवान् वेदव्यास

भगवान् वेदव्यास एक अलौकिक शक्तिसम्पन्न महापुरुष थे| इनके पिताका नाम महर्षि पराशर और माताका नाम सत्यवती था| इनका जन्म एक द्वीपके अन्दर हुआ था और वर्ण श्याम था, अत: इनका एक नाम कृष्णद्वैपायन भी है|

वेदोंका विस्तार करनेके कारण ये वेदव्यास तथा बदरीवनमें निवास करने कारण बादरायण भी कहे जाते हैं| इन्होंने वेदोंके विस्तारके साथ महाभारत, अठारह महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्रका भी प्रणयन किया| शास्त्रोंकी ऐसी मान्यता है कि भगवान् ने चौबीस अवतारोमें की जाती है| व्यासस्मृतिके नामसे इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है| भारतीय वाड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजीकी ऋणी है| संसारमें जबतक हिन्दू-जाति एवं भारतीय संस्कृति जीवित है, तबतक व्यासजीका नाम अमर रहेगा|

महर्षि व्यास त्रिकालदर्शी थे| जब पाण्डव एकचक्रा नगरीमें निवास कर रहे थे, तब व्यासजी उनसे मिलने आये| उन्होंने पाण्डवोंको द्रौपदीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनाकर कहा कि ‘यह कन्या विधाताके द्वारा तुम्हीं लोगोंके लिये बनायी गयी है, अत: तुम लोगोंको द्रौपदी-स्वयंवरमें सम्मिलित होनेके लिये अब पाञ्चालनगरीकी ओर जाना चाहिये|’ महाराज द्रुपदको भी इन्होंने द्रौपदीके पूर्वजन्मकी बात बताकर उन्हें द्रौपदीका पाँचों पाण्डवोंसे विवाह करनेकी प्रेरणा दी थी|

महाराज युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञके अवसरपर व्यासजी अपने शिष्योंके साथ इन्द्रप्रस्थ पधारे| वहाँ इन्होंने युधिष्ठिरको बताया कि – ‘आजसे तेरह वर्ष बाद क्षत्रियोंका महासंहार होगा, उसमें दुर्योधनके विनाशमें तुम्हीं निमित्त बनोगे|’ पाण्डवोंके वनवासकालमें भी जब दुर्योधन दु:शासन तथा शकुनिकी सलाहसे उन्हें मार डालनेकी योजना बना रहा था, तब व्यासजीने अपनी दिव्य दृष्टिसे उसे जान लिया| इन्होंने तत्काल पहुँचकर कौरवोंको इस दुष्कृत्यसे निवृत्त किया| इन्होंने धृतराष्ट्रको समझाते हुए कहा – ‘तुमने जुएमें पाण्डवोंका सर्वस्व छीनकर और उन्हें वन भेजकर अच्छा नहीं किया| दुरात्मा दुर्योधन पाण्डवोंको मार डालना चाहता है| तुम अपने लाडले बेटेको इस कामसे रोको, अन्यथा इसे पाण्डवोंके हाथसे मरनेसे कोई नहीं बचा पायगा|’

भगवान् व्यासजीने सञ्जयको दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे युद्ध-दर्शनके साथ उनमें भगवान् के विश्वरूप एवं दिव्य चतुर्भुजरूपके दर्शनकी भी योग्यता आ गयी| उन्होंने कुरुक्षेत्रकी युद्धभूमिमें भगवान् श्रीकृष्णके मुखारविन्दसे नि:सृत श्रीमभ्दगवद्रीताका श्रवण किया, जिसे अर्जुनके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं सुन पाया|

एक बार जब धृतराष्ट्र वनमें रहते थे, तब महाराज युधिष्ठिर अपने परिवारसहित उनसे मिलने गये| व्यासजी भी वहाँ आये| धृतराष्ट्रने उनसे जानना चाहा कि महाभारतके युद्धमें मारेगये वीरोंकी क्या गति हुई? उन्होंने व्यासजीसे एक बार अपने मरे हुए सम्बन्धियोंका दर्शन करानेकी प्रार्थना की| धृतराष्ट्रके प्रार्थना करनेपर व्यासजीने अपनी अलौकिक शक्तिके प्रभावसे गङ्गजीमें खड़े होकर युद्धमें मरे हुए वीरोंका आवाहन किया और युधिष्ठिर, कुन्ती तथा धृतराष्ट्रके सभी सम्बन्धियोंका दर्शन कराया| वैशम्पायनके मुखसे इस अद्भुत वृत्तान्तको सुनकर राजा जनमेजयके मनमें भी अपनी पिता महाराज परीक्षित् का दर्शन करने की लालसा पैदा हुई| व्यासजी वहाँ उपस्थित थे| उन्होंने महाराज परीक्षित् को वहाँ बुला दिया| जनमेजयने यज्ञान्त स्नानके समय अपने पिताको भी स्नान कराया| तदनन्तर महाराज परीक्षित् वहाँसे चले गये| अलौकिक शक्तिसे सम्पन्न तथा महाभारतके रचयिता महर्षि व्यासके चरणोंमें शत-शत नमन है|