लखनऊ, 28 अगस्त। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, कानपुर रोड कैम्पस के मेधावी छात्र श्रेयांश पाठक को अमेरिका की पेस यूनिवर्सिटी द्वारा 80,000 अमेरिकी डालर की स्काॅलरशिप से नवाजा गया है।
डा. (श्रीमती) भारती गांधी का बालकों की शिक्षा, अध्यापिकाओं का प्रशिक्षण, महिलाओं का उत्थान और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के प्रति समर्पण एवं संघर्ष सर्वविदित है।
लखनऊ, 27 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, आर.डी.एस.ओ. कैम्पस की कक्षा-9 की प्रतिभाशाली छात्रा श्रेया सोलंकी ने हीरो मोटोकार्प प्रा. लि. के तत्वावधान में आयोजित पेंटिंग एवं क्विज प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार अर्जित कर विद्यालय का गौरव बढ़ाया है।
लखनऊ, 25 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, अलीगंज (प्रथम कैम्पस) का कक्षा-11 का छात्र विनायक पटेल अमेरिका में आयोजित ग्लोबल यंग लीडर्स कान्फ्रेन्स (जी.वाई.एल.सी.) में ‘ग्लोबल स्काॅलर’ के रूप में अपने विद्यालय एवं देश का प्रतिनिधित्व करेगा।
लखनऊ, 25 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, स्टेशन रोड कैम्पस द्वारा ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ का भव्य आयोजन सी.एम.एस. कानपुर रोड आॅडिटोरियम में उल्लासपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ।
लखनऊ, 22 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल के कम्युनिटी रेडियो एवं मदर सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में रेडियो कार्यक्रम ‘बचपन एक्सप्रेस’ का प्रसारण किया जा रहा है।
लखनऊ, 17 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर ऑडिटोरियम में आयोजित विश्व एकता सत्संग में बोलते हुए बहाई धर्मानुयायी, प्रख्यात शिक्षाविद् व सी.एम.एस. संस्थापिका–निदेशिका डा. (श्रीमती) भारती गाँधी ने कहा कि विश्व सरकार के गठन से ही विश्व मानवता का कल्याण सुनिश्चित किया जा सकता है।
लखनऊ, 15 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, अलीगंज (प्रथम कैम्पस) द्वारा ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ का भव्य आयोजन आज सी.एम.एस. गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) ऑडिटोरियम में किया गया।
लखनऊ, 11 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल के तत्वावधान में विश्व का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव (आई.सी.एफ.एफ.-2019) आगामी 4 से 9 अप्रैल तक सी.एम.एस. कानपुर रोड ऑडिटोरियम में आयोजित किया जा रहा है।
लखनऊ, 8 मार्च। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) एवं राजेन्द्र नगर (प्रथम कैम्पस) द्वारा ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ का भव्य आयोजन आज सम्पन्न हुआ।
लखनऊ, 24 फरवरी। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, महानगर कैम्पस द्वारा ‘एनुअल मदर्स डे एवं डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ का भव्य आयोजन आज सी.एम.एस. गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) ऑडिटोरियम में किया गया।
लखनऊ, 24 फरवरी। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, कम्युनिटी रेडियो के तत्वावधान में रेडियो कार्यक्रम सीरीज़ ‘बचपन एक्सप्रेस’ की शुरूआत बड़े धूमधाम से सी.एम.एस. गोमती नगर कैम्पस स्थित रेडियो स्टूडियो में हुई।
लखनऊ, 24 फरवरी। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर ऑडिटोरियम में आयोजित विश्व एकता सत्संग में बोलते हुए बहाई धर्मानुयायी, प्रख्यात शिक्षाविद् व सी.एम.एस. संस्थापिका–निदेशिका डा. (श्रीमती) भारती गाँधी ने कहा कि पारिवारिक एकता से ही विश्व एकता की राहें खुलेंगी, इसलिए बच्चों को प्रारम्भ से ही शान्ति, एकता, प्रेम व सदाचारों की शिक्षा देना आवश्यक है।
(1) मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं :- देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का कहना था कि इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं। इसलिए हमें मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजने चाहिए। हर इंसान में किसी न किसी तरह की रचनात्मकता जरूर होती है। इसलिए हमें लगातार अपनी रचनात्मकता को निखारने की कोशिश करनी चाहिए,
(1) भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद 2 वर्ष 11 माह तथा 18 दिन की कड़ी मेहनत एवं गहन विचार-विमर्श के बाद भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।
हम सब अच्छे जीवन, सफलता और शुभ-श्रेयस्कर होने की कामना करते हैं लेकिन जीवन तो उतार और चढ़ाव का खेल है।
धूप और छांव की तरह जीवन में कभी दुःख ज्यादा तो कभी सुख ज्यादा होते हैं। जिन्दगी की सोच का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि जिन्दगी में जितनी अधिक समस्याएं होती हैं, सफलताएं भी उतनी ही तेजी से कदमों को चुमती हैं।
संपूर्ण विश्व में ‘सार्वभौमिक बाल दिवस’ 20 नवंबर को मनाया गया। उल्लेखनीय है कि इस दिवस की स्थापना वर्ष 1954 में हुई थी।
‘दुर्घटना’ एक ऐसा शब्द है जिसे पढ़ते ही कुछ दृश्य आंखांे के सामने आ जाते हैं, जो भयावह होते हैं, त्रासद होते हैं, डरावने होते हैं।
केन्द्रीय मंत्री अनन्त कुमार का अचानक अनन्त की यात्रा पर प्रस्थान करना न केवल भाजपा बल्कि भारतीय राजनीति के लिए दुखद एवं गहरा आघात है।
केरल के विख्यात सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश एवं पूजा करने रास्ता खोलकर सुप्रीम कोर्ट ने नारी की अस्मिता एवं अस्तित्व को एक नयी पहचान दी है।
पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का ही पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है, मानव मात्र का पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है,
पेट्रोल डीजल की कीमतें नई ऊंचाई पर और डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर होने से आर्थिक स्तर पर आम भारतीयों का दम-खम सांसें भरने लगा है,
(1) प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है :-
विश्व भर में जो धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़ा हो रहा है, उसके पीछे एकमात्र कारण हमारा अज्ञान है। प्रायः लोग कहते हैं कि प्रभु का स्मरण करने के अलग-अलग धर्म के अलग-अलग रास्ते हैं किन्तु मंजिल एक है। सभी धर्मों के पवित्र ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर हमारा मानना है कि प्रभु को स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है। प्रभु की इच्छा व आज्ञा को जानना तथा उस पर दृढ़तापूर्वक चलते हुए प्रभु का कार्य करना ही प्रभु को स्मरण करने का एकमात्र रास्ता है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल की स्कूल प्रेयर बहुत गहरी है – हे ईश्वर, तुने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू तथा तेरी पूजा करूँ। हमारा जीवन केवल दो कामों के लिए (पहला) प्रभु की शिक्षाओं को भली प्रकार जानने तथा (दूसरा) उसकी पूजा (अर्थात प्रभु का कार्य ) करने के लिए हुआ है। सभी पवित्र ग्रन्थों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरूग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस की शिक्षायें एक ही परमात्मा की ओर से आयी हैं तथा हमें उसी एक परमात्मा का कार्य करने की प्रेरणा भी देती हैं। हम मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा कहीं भी बैठकर पूजा, इबादत, प्रेयर, पाठ करें, उसको सुनने वाला परमात्मा एक ही है। इस प्रकार हम सब एक है, ईश्वर एक है तथा धर्म एक है।
‘विश्व शांति के हम साधक हैं जंग न होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। हम जंग न होने देंगे..।’
परमात्मा ने दो तरह की योनियाँ बनायी हैं – पहला पशु योनियाँ तथा दूसरा मानव योनि। हिन्दु शास्त्रों के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में अगिनत वर्षों तक कष्टमय जीवन बीताने के बाद मानव योनि में जन्म बड़े सौभाग्य से मिलता है।
(1) शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के वैश्विक निःशस्त्रीकरण के प्रयास:- संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने वर्ष 1978 के स्पेशल सेशन में सदस्य देशों को शस्त्रों की बढ़ती होड़ के खतरों पर अंकुश लगाने तथा जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 24 से 30 अक्टूबर तक को वैश्विक निःशस्त्रीकरण सप्ताह मनाने की घोषणा की।
द्वितीय विष्व युद्ध की विभीषिका से व्यथित होकर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने 1945 में विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई।
(1) हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक नए भारत के निर्माण का:-
1942 में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक संकल्प लिया था, ‘भारत छोड़ो’ का और 1047 में वह महान संकल्प सिद्ध हुआ, भारत स्वतंत्र हुआ। हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक स्वच्छ, गरीबी मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकवाद मुक्त, सम्प्रदायवाद मुक्त तथा जातिवाद मुक्त नए भारत के निर्माण का। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के।
मेरा जन्म केरल के एक छोटे-से गांव वायनाड में हुआ था। मेरे पिता काॅफी के एक बगीचे में दैनिक मजदूरी का काम करते थे। तमाम पिछड़े गांवों की तरह मेरे गांव में भी सिर्फ एक ही प्राइमरी स्कूल था। हाई स्कूल करने के लिए बच्चों को गांव से चार किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता था। बचपन में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था, इसलिए स्कूल के बाद मैं पिता के पास बगीचे में चला जाता था। पढ़ाई से बेरूखी के कारण मैं कक्षा छह में फेल हो गया।
1. आलस्य से हम सभी परिचित हैं। काम करने का मन न होना, समय यों ही गुजार देना, आवश्यकता से अधिक सोना आदि को हम आलस्य की संज्ञा देते हैं और यह भी जानते हैं कि आलस्य से हमारा बहुत नुकसान होता है। फिर भी आलस्य से पीछा नहीं छूटता, कहीं-न-कहीं जीवन में यह प्रकट हो ही जाता है। आलस्य करते समय हम अपने कार्यों, परेशानियों आदि को भूल जाते हैं और जब समय गुजर जाता है तो आलस्य का रोना रोते हैं, स्वयं को दोष देते हैं, पछताते हैं। सच में आलस्य हमारे जीवन में ऐसे कोने में छिपा होता है, ऐसे छद्म वेश में होता है, जिसे हम पहचान नहीं पाते, ढूँढ़ नहीं पाते, उसे भगा नहीं पाते; जबकि उससे ज्यादा घातक हमारे लिए और कोई वृत्ति नहीं होती।
अमेरिका के अखबार द क्रिश्चियन साइंस माॅनिटर के अनुसार अफ्रीका महादेश समृद्धि की तरफ तेज कदमों से बढ़ रहा है। अफ्रीका महाद्वीप में 54 देश समाहित हैं और जिनमें करीब एक अरब बीस करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। तेल और खनिज पदार्थों के प्रचुर भंडार वाली अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाएं अब भी अपने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से कोसों दूर हैं। इस महादेश ने वर्ष 2017 में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का लक्ष्य तय किया है। अगर यह काम संपन्न हो गया, तो इससे पूरे अफ्रीका में वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की आवाजाही काफी तेजी से बढ़ेगी। व्यापार, कृषि और वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में बढ़ते कदम अक्सर सुर्खिया नहीं बनते। लेकिन अफ्रीकी के मामले में उनकी भी अहम भूमिका है।
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है और पूरा हस्तलिखित है। इसमें 48 आर्टिकल, 12 अनुसूची और 94 संशोधन हैं। संविधान सभा के सभी 283 सदस्यों के संविधान पर हस्ताक्षर हैं जो 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया था। संविधान को तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद और ड्राफ्ंिटग कमेटी के चेयरमैन डा. बी.आर. अम्बेडकर थे उन्हें संविधान का पितामह तथा जनक भी कहा जाता है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर के दिन राष्ट्रीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है वर्ष 1949 में 26 नवम्बर को संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को स्वीकृत किया गया था, जो 26 जनवरी, 1950 को प्रभाव में आया। हमारा संविधान हमारी संस्कृति तथा सभ्यता के अनुरूप है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में विश्व एकता, विश्व शान्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने के लिए प्रत्येक नागरिक तथा देश को कार्य करने के लिए बाध्य करता है।
राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने आधारभूत नवाचार और उत्कृष्ट पारम्परिक ज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले 55 लोगों को सम्मानित किया। श्री मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित नवप्रवर्तन उत्सव के दौरान इन सभी लोगों को सम्मानित किया। इनमें से सबसे प्रमुख गुजरात के 82 वर्षीय भंजीभाई मथुकिया को कृषि से संबंधित कई नए तरीके विकसित करने के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया। इस मेले में हिस्सा लेने वाले वैज्ञानिक नहीं हैं लेकिन वे ऐसे खोजकर्ता हैं जिन्होंने अपनी खुद की जरूरत या अपने आसपास की समस्या के निदान के लिए अनोखी खोजें कर डाली। जैसे बिना बिजली से चलने वाली फ्रिज, क्ले वाटर फिल्टर, गर्मी में उगने वाले सेब की किस्म, मरीजों के नहाने के लिए कुर्सी, कूड़ा उठाने वाली मशीन आदि। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की तरफ से आयोजित नवप्रवर्तन उत्सव में 55 से भी ज्यादा जमीनी इनोवेटरों ने हिस्सा लिया और अपने उत्पादों को उन्होंने यहां प्रदर्शित भी किया।
किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में ‘माँ’ की ही मुख्य भूमिका:
कोई भी बच्चा सबसे ज्यादा समय अपनी माँ के सम्पर्क में रहता है और माँ उसे जैसा चाहे बना देती है। इस सम्बन्ध में एक कहानी मुझे याद आ रही है जिसमें एक माता मदालसा थी वो बहुत सुन्दर थी। वे ऋषि कन्या थी। एक बार जंगल से गुजरते समय एक राजा ने ऋषि कन्या की सुन्दरता पर मोहित होकर उनसे विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर उन ऋषि कन्या ने उस राजा से कहा कि ‘‘मैं आपसे शादी तो कर लूगी पर मेरी शर्त यह है कि जो बच्चे होगे उनको शिक्षा मैं अपने तरीके से दूगी।’’ राजा उसकी सुन्दरता से इतनी ज्यादा प्रभावित थे कि उन्होंने ऋषि कन्या की बात मान ली। शादी के बाद जब बच्चा पैदा हुआ तो उस महिला ने अपने बच्चे को सिखाया कि बुद्धोजी, शुद्धोजी और निरंकारी जी। मायने तुम बुद्ध हो। तुम शुद्ध हो और तुम निरंकारी हो। आगे चलकर यह बच्चा महान संत बन गया। उस जमाने में जो बच्चा संत बन जाते थे उन्हें हिमालय पर्वत पर भेज दिया जाता था। इसी प्रकार दूसरे बच्चे को भी हिमालय भेज दिया गया। राजा ने जब देखा कि उसके बच्चे संत बनते जा रहंे हैं तो उन्होंने रानी से प्रार्थना की कि ‘महारानी कृपा करके एक बच्चे को तो ऐसी शिक्षा दो जो कि आगे चलकर इस राज्य को संभालें।’ इसके बाद जब बच्चा हुआ तो महारानी ने उसे ऐसी शिक्षा दी कि वो राज्य को चलाने वाला बन गया। बाद में हिमालय पर्वत से आकर उसके दोनों भाईयों ने अच्छे सिद्धांतों पर राज्य को चलाने में अपने भाई का साथ दिया|
विश्व की साहसी महिलायें हर क्षेत्र में मिसाल कायम कर रही हैं। कुछ ऐसी बहादुर तथा विश्वास से भरी बेटियों से रूबरू होते हैं, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए सराहनीय तथा अनुकरणीय मिसाल पेश की है। देश में डीजल इंजन ट्रेन चलाने वाली पहली महिला मुमताज काजी हो या पश्चिम बंगाल में बाल और महिला तस्करी के खिलाफ आवाज उठाने वाली अनोयारा खातून। ऐसी कई आम महिलाएं हैं जो भले ही बहुत लोकप्रिय न हो लेकिन उन्हें इस साल नारी शक्ति पुरस्कार के लिए चुना गया। राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को 30 महिलाओं को पुरस्कृत किया। पुरस्कार पाने वालों में नागालैण्ड की महिला पत्रकार बानो हारालू भी शामिल है जो नागालैण्ड में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही है। उत्तराखण्ड की दिव्या रावत ग्रामीणों के साथ मशरूम की खेती को विकसित करने की भूमिका निभा रही है। छत्तीसगढ़ पुलिस में कांस्टेबल स्मिता तांडी ने 2015 में जीवनदीप समूह बनाया जो गरीबों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आर्थिक मदद करता है।
(1) क्या ‘असाधारण’ व्यक्तियों तथा ‘साधारण व्यक्तियों’ के द्वारा आत्मा के विकास में कोई फर्क है? हाँ!
(अ) समाज में कुछ ‘असाधारण’ तथा बिरले लोग ही’ ऋषि-मुनियों तथा महापुरूषों के रूप में विकसित हुए हैं जिन्होंने अपनी आत्मा के विकास के लिए कोई ‘नौकरी या व्यवसाय’ नहीं किया। इन महापुरूषों ने पर्वतों, कन्धराओं, गुफाओं तथा घास-फूस की झोपड़ियों या साधारण परिस्थितियांे में रहकर तथा समाज में अत्यन्त सादा एवं सरल जीवन जीकर और व्यापक ‘समाज के लिए उपयोगी बनकर’ समाज की महत्ती सेवा की और इस प्रकार अपनी आत्मा का विकास किया।
थामस एल्वा एडिसन प्राइमरी स्कूल मे पढ़ते थे। एक दिन घर आए और मां को एक कागज देकर कहा, टीचर ने दिया है। उस कागज को पढ़कर माँ की आँखों में आंसू आ गए। एडिसन ने पूछा क्या लिखा है? आँसू पोंछकर माँ ने कहा- इसमें लिखा है- ‘‘आपका बच्चा जीनियस है। हमारा स्कूल छोटे स्तर का है और शिक्षक बहुत प्रशिक्षित नहीं हैं, इसे आप स्वयं शिक्षा दें। कई वर्षों बाद माँ गुजर गई। तब तक एडिसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन चुके थे। एक दिन एडिसन को अलमारी के कोने में एक कागज का टुकड़ा मिला। उन्होंने उत्सुकतावश उसे खोलकर पढ़ा। ये वही कागज था, जिसमें लिखा था- आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर कमजोर है, उसे अब स्कूल न भेजें। एडिसन घंटों रोते रहे, फिर अपनी डायरी में लिखा- एक महान माँ ने बौद्धिक तौर पर कमजोर बच्चे को सदी का महान वैज्ञानिक बना दिया।
सरकार के 500 और 1000 रूपये के नोटबंदी के फैसले को लेकर देश भर में बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गई हैं। कही रोष है तो कई इस फैसले के साथ नजर आ रहे है। इस बीच इंडिया के विस्फोटक बल्लेबाज रहे वीरेंद्र सहवाग ने लोगों को संदेश दिया है ‘‘शहीद हनुमनथप्पा ने 6 दिन, -45 डिग्री सेल्सियस बर्फ के अंदर 35 फीट दबे रहने के बाद भी बचाए जाने की उम्मीद में काट दिए। निश्चित तौर पर हम सभी लोग भी अपने देश को बनाने के लिए कुछ घंटे बैंक की लाइन में लग सकते हैं। बैंक एटीएम के बाहर खड़े लोगों की मदद के लिए बढ़े हाथ भी देश भक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करने के सराहनीय आयाम हैं। भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान विराट कोहली ने केंद्र के इस बड़े कदम की जमकर सराहना की। इसे भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे बड़ा कदम बताया। कोहली ने मजाकिया अंदाज में कहा कि वे तो सोच रहे थे कि पुराने नोटों पर अपने प्रशंसकों को आटोग्राफ देे दें। देश के लिए अपना जीतोड़ तथा सर्वोत्तम खेल प्रदर्शन देने वाले खिलाड़ियों की आवाज हमें अवश्य सुननी चाहिए।
कुछ बच्चे अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण कुछ न कुछ पूछते हीं रहते हैं- यह क्या है, ऐसा क्यों होता है, आदि-आदि। अगर इन प्रश्नों का सही उत्तर उन्हें मिल जाये तो उन्हें अधिक सोचने का मौका मिलता है। माता-पिता को ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके विपरीत माता-पिता झिड़की देकर अथवा डांट-डपट कर बच्चों के मनोभावों का दमन करते हैं और बाल चिकित्सकों के अनुसार बच्चे के मन को कुंठित करने का एक तरीका यह भी है कि उसकी स्वाभाविक जिज्ञासा को दबाने के लिए उसे झिड़किया दी जाएं और उसे डराया धमकाया जाए।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के खैर के गांव सूरजमल निवासी अमित को किडनी खराब होने का पता उस वक्त चला जब फौज की भर्ती में दौड़ के दौरान अचानक उसका बीपी बढ़ गया। जांच कराने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो गई है। आर्थिक रूप से कमजोर अमित हो आॅपरेशन के लिए साढ़े आठ लाख रूपये की जरूरत थी। अमर उजाला-फाउंडेशन की पहल पर अमित को आर्थिक मदद की गयी। ये अभियान था किडनी ट्रांसप्लांट करा कर 20 वर्षीय युवा अमित की जिंदगी बचाने का। जिसमें अमर उजाला फाउंडेशन की अपील पर लोगों से सवा सात लाख रूपये की बड़ी मदद उसको मिली है। अमित का किडनी ट्रांसप्लांट 11 मार्च 2017 को दिल्ली के प्रतिष्ठित सर गंगाराम हास्पिटल में सफलतापूर्वक हुआ। अमित और उसे किडनी देने वाली उसकी मां अब पूरी तरह स्वस्थ हैं।
मोहम्मद साहब के 12 दिसम्बर को तथा ईशु के 25 दिसम्बर जन्म के इस पवित्र माह में हम उनकी महान आत्मा को नमन करते हैं। इन दोनों महान आत्माओं ने भारी कष्ट सहकर अपना सारा जीवन लोक कल्याण के लिए जिया। मोहम्मद साहब ने कहा था कि हे खुदा, सारी खिल्कत को बरकत दे। अर्थात हे खुदा, सारे संसार का भला कर। उन्होंने यह भी कहा था कि गरीब का पसीना सुखने के पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए। वहीं ईशु ने मानव जाति के लिए अपना बलिदान करके उनको सुली पर चढ़ाने वाले कठोर हृदय के लोगों में करूणा का सागर बहा दिया था। ईशु ने सुली चढ़ाने वालों के लिए प्रभु से उन्हें माफ कर देने की प्रार्थना की थी। हे प्रभु, ये अपराधी नहीं वरन् ये अज्ञानी है। प्रभु ने ईशु की प्रार्थना सुनकर सुली देने वालों को माफ कर दिया। वे सभी रो-रोकर कहने लगे कि हमने अपने रक्षक को ही सुली पर लटका दिया। ईशु का सन्देश है कि जो ईश्वर की राह पर ध्येयपूर्वक सहन करते हैं परमात्मा उनका इनाम बढ़ा देता है। आज संसार में सबसे अधिक लोग ईशु तथा मोहम्मद साहब को मानने वाले हैं। ईश्वर को मानव सेवा मंे जानना और मानव मात्र से प्यार करना मेरे जीवन का उद्देश्य है!
डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर 6 दिसंबर को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश का ऐलान प्रदेश सरकार ने किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में घोषित वार्षिक अवकाश 42 हो गए हैं। इन 42 वार्षिक अवकाशों में से 17 छुट्टियां ऐसी हैं जो जातीय आधार पर घोषित की गई हैं। प्रति छुट्टी होने वाले राजस्व के नुकसान का आकलन भी अब तक किसी ने नहीं किया। शायद वजह राजनीतिक ही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जातियों के आधार पर चल रही उत्तर प्रदेश में छुट्टियों की घोषणा सरकारें हथियार की तरह करती रही हैं। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार एक अनुसार हर जाति को खुश करने के लिए समय-समय पर छुट्टियां घोषित होती रहती हैं और इसका नुकसान आम जनता को होता है। इससे न केवल सरकारी कामकाज ठप होता है बल्कि प्रदेश की अर्थ व्यवस्था पर भी असर दिखता है। अंततः इसकी भरपाई जनता अपनी जेब से करती है।
उत्तर प्रदेश के शामली के जैन मोहल्ला निवासी श्री नीरज गोयल वर्ष 2010 में मुंडेट कलां प्राथमिक विद्यालय नंबर एक में बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हुए। प्राथमिक सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही जेहन में शिक्षा के नाम खानापूरी का विचार आता है। मिड डे मील और वजीफे के बीच शिक्षा की बदहाली सामने आती है। शिक्षा को इस बदहाली से निकालने के लिए श्री नीरज गोयल अब शामली के मोहल्ला बरखंडी स्थित प्राथमिक विद्यालय नंबर दस के प्रधानाध्यापक के रूप में इस प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। उनके स्कूल में छात्र संख्या के नाम पर खानापूरी नहीं होती है। वह अभिभावकों को प्रेरित करते हैं और शिक्षा की गुणवत्ता बनाने के लिए भरसक प्रयास करते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए उन्होंने अभियान चला रखा है। उन्होंने मोहल्ला चैपाल नामांकन भ्रमण के नाम से कार्यक्रम चलाया। स्कूल की छुट्टी के बाद नीरज गोयल मोहल्लों में पहुंचते और वहां ठेले वाले, सब्जी बेचने वाले, रिक्शा चलाकर गुजर बसर करने वाले परिवारों के बीच जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं। रात में मोहल्लों में बैठक कर उन्हें शिक्षा का महत्व बताते हैं। इसी का असर है कि विद्यालय में नामांकन 300 हुआ और ज्यादातर बच्चे रोज स्कूल भी आते हैं। वह बच्चों को हर कदम पर अपनेपन का अहसास कराते हैं। ताकि उन्हें किसी तरह की कोई कमी महसूस न हो।
(1) जब-जब राम ने जन्म लिया तब-तब पाया वनवास:
आज से 7500 वर्ष पूर्व राम जन्म अयोध्या में हुआ। राम ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उन्होंने अपने शरीर के पिता राजा दशरथ के वचन को निभाने के लिए हँसते हुए 14 वर्षो तक वनवास का दुःख झेला। लंका के राजा रावण ने अपने अमर्यादित व्यवहार से धरती पर आतंक फैला रखा था। राम ने रावण को मारकर धरती पर मर्यादाओं से भरे ईश्वरीय समाज की स्थापना की। कृष्ण का जन्म 5000 वर्ष पूर्व मथुरा की जेल में हुआ। कृष्ण के जन्म के पहले ही उनके मामा कंस ने उनके माता-पिता को जेल में डाल दिया था। राजा कंस ने उनके सात भाईयों को पैदा होते ही मार दिया। कंस के घोर अन्याय का कृष्ण को बचपन से ही सामना करना पड़ा। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर की इच्व्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की। बचपन से लेकर ही कृष्ण का सारा जीवन संघर्षमय रहा किन्तु धरती और आकाश की कोई भी शक्ति उन्हें प्रभु के कार्य के रूप में धरती पर न्याय आधारित साम्राज्य स्थापित करने से नहीं रोक सकी। जब-जब अवतार मानव जाति का कल्याण करने के लिए राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह के रूप में धरती पर आते हैं तब-तब हम उनको वनवास, जेल, सूली आदि देकर तरह-तरह से बहुत कष्ट देते हैं। अज्ञानतावश हमने परमात्मा को विभिन्न धर्मो के पूजा-स्थलों मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरूद्वारे में बांट दिया है।
पाकिस्तान के प्रति भारत अपना मानवीय कर्तव्य निभाने से कभी पीछे नहीं रहता। एक बार फिर भारत ने पाकिस्तानी बच्ची के साथ पवित्र रिश्ता निभाकर यह साबित भी कर दिया है। नोएडा के सेक्टर 12 में स्थित फोर्टिस अस्पताल ने लिवर की बीमारी से पीड़ित पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के हैदराबाद की रहने वाली सात वर्षीय अनाबिया के माता-पिता के पास इलाज के पूरे पैसे न होने के बावजूद आर्गन ट्रांसप्लांट कर उसे नई जिंदगी दी है। फोर्टिस अस्पताल के डाॅ. विवेक विज ने मानवीय फर्ज निभाने की मिसाल प्रस्तुत की है। यह पहल चिकित्सा जगत को अधिक से अधिक मानवीय बनने की सीख देती है। धरती में पलने वाला प्रत्येक जीवन अनमोल है। हमें किसी भी कीमत पर जीवन को बचाने के लिए सदैव आगे आना चाहिए। डाॅ. विवेक विज जैसे चिकित्सकों के मानवीय प्रयासों पर ही मानव जाति की उम्मीद और विश्वास टिका है।
भूख तथा गरीबी हटाने में काला धन सबसे बड़ी बाधा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मानव समाज एवं मानव जीवन में सुचिता लाने के लिए 500 तथा 1000 के नोट्स पर 8 नवम्बर की रात्रि को प्रतिबन्ध लगाकर गरीबी, आतंकवाद, काला धन, नकली नोट तथा भ्रष्टाचार के स्त्रोत पर जबरदस्त प्रहार करके एक सशक्त तथा भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र का निर्माण करने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। पिछले ढाई वर्षों में सवा सौ करोड़ देशवासियों के सहयोग से आज भारत ने ग्लोबल इकोनामी में एक ‘ब्राइट स्पाॅट’ अर्थात चमकता सितारा के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसा नहीं है कि यह दावा सरकार कर रही है, बल्कि यह आवाज इंटरनेशनल मोनेटरी फंड और वल्र्ड बैंक से गूंज रही है। एक तरफ तो विश्व में हम आर्थिक गति में तेजी से बढ़ने वाले विश्व के देशों में सबसे आगे हैं। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की ग्लोबल रैकिंग में दो साल पहले भारत करीब-करीब सौवंे नंबर पर था। ढेर सारे कदम उठाने के बावजूद हम 76वें नंबर पर पहुंच पाए हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि भ्रष्टाचार और कालेधन का जाल कितने व्यापक रूप से देश में बिछा है।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, स्वयंसेवी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।। (भावार्थ – 1. जिस प्रकार कौआ ने मटके में मनोयोगपूर्वक एक-एक कंकड़ डालकर अपनी प्यास बुझाने में सफलता प्राप्त की, 2. बगले की तरफ केवल अपने लक्ष्य पर पूरी एकाग्रता, 3. कुत्ते की तरह सर्तक होकर सोना, 4. हल्का सुपाच्य भोजन करना तथा 5. अपने कार्य स्वयं करने वाला। ये विद्यार्थी के पांच गुण हैं।)
डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व सम्मोहक तथा बहुपक्षीय था। उनका महत्त्व रामेश्वरम् के एक अनजान ग्रामीण लड़के से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा तक सीमित नहीं थी। वह बचपन से ही मानवीयता तथा आध्यात्मिकता से प्रेरित रहे। उन्होंने अपने जीवन में सपनों को साकार करने का प्रयत्न किया और सफलता ने उनका दामन नहीं छोड़ा। ‘मिसाइल पुरुष’ नाम से प्रख्यात् डाॅ0 कलाम सन् 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाना चाहते थे। वह हमेशा आकाश की ऊँचाईयों तक पहुँचने के इच्छुक रहे। वे समाज के सभी वर्गों के साथ-साथ विशेषरूप से बच्चों के मस्तिष्क को प्रज्वलित करने के लिए जीवनपर्यन्त प्रयत्नशील रहे।
मानव सभ्यता के नव निर्माण के लिए आते हैं दिव्य अवतार:-
यह पृथ्वी करोड़ों वर्ष पुरानी है। इस पृथ्वी का जीवन करोड़ों वर्ष का है क्योंकि जब से सूरज का जीवन है तब से मनुष्य का जीवन है। भारत की सभ्यता सबसे पुरानी है। आज मनुष्य का जीवन बहुत ही सुनियोजित एवं वैज्ञानिक ढंग से चल रहा है। यहाँ पर जो प्रथम मानव उत्पन्न हुआ वो बिठूर में गंगा जी के घाट के पास उत्पन्न हुआ। बिठूर में गंगा जी के पास एक छड़ी लगी हुई है जो कि यह इंगित करती है कि मनु और शतरूपा यही पर उत्पन्न हुए थे। मनुष्य चाहे पहले कंदराओं में रहता हो चाहे कृषि युग में रहता हो या किसी अन्य युग में सभी युगों में कोई न कोई मार्गदर्शक मानव सभ्यता का नव निर्माण करने के लिए आये।
(1) मानव जीवन अनमोल उपहार है:-
आज के युग तथा आज की परिस्थितियों में विश्व मंे सफल होने के लिए बच्चों को टोटल क्वालिटी पर्सन (टी0क्यू0पी0) बनाने के लिए स्कूल को जीवन की तीन वास्तविकताओं भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षायें देने वाला समाज के प्रकाश का केन्द्र अवश्य बनना चाहिए। टोटल क्वालिटी पर्सन ही टोटल क्वालिटी मैनेजर बनकर विश्व में बदलाव ला सकता है। उद्देश्यहीन तथा दिशाविहीन शिक्षा बालक को परमात्मा के ज्ञान से दूर कर देती है। उद्देश्यहीन शिक्षा एक बालक को विचारहीन, अबुद्धिमान, नास्तिक, टोटल डिफेक्टिव पर्सन, टोटल डिफेक्टिव मैनेजर तथा जीवन में असफल बनायेगी। तुलसीदास जी कहते है – ‘‘बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि पावा।। अर्थात बड़े भाग्य से, अनके जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। इसलिए हम इसी पल से सजग हो जाएं कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाये। हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेने के बाद अपनी आत्मा का विकास करने के लिए एक सुअवसर के रूप में मानव जन्म मिला है। यदि मानव जीवन में रहकर भी हमने अपनी आत्मा का विकास नहीं किया तो पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेकर उसके कष्ट भोगने होंगे। यह स्थिति कौड़ी में मानव जीवन के अनमोल उपहार को खोने के समान है। यह सिलसिला जन्म-जन्म तक चलता रहता है।
बराक ओबामा को एक नए सर्वेक्षण में अमेरिकी इतिहास का 12वां सबसे अच्छा राष्ट्रपति चुना गया है। ओबामा अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति रहे हैं। इस सर्वेक्षण में अब्राहम लिंकन को पहले, जार्ज वार्शिगटन को दूसरे तथा फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट को तीसरे स्थान पर रखा गया है। इस सर्वेक्षण में विभिन्न मुद्दों के आधार पर सबसे अच्छे राष्ट्रपतियों की सूची बनाई गई। इन मुद्दांे में नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता, नैतिक प्राधिकार, अंतर्राष्ट्रीय रिश्ते और सबके लिए समान न्याय सुनिश्चित करने की कोशिश शामिल है। ओबामा ने खासकर सबसे अधिक समान न्याय की कोशिश वाले पैमाने पर उच्च अंक हासिल किए। हमें उम्मीद है कि अमेरिका के महान राष्ट्रपतियों की समान न्याय सुनिश्चित करने की कोशिशों को वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आगे बढ़ायेंगे। विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका के नये राष्ट्रपति के रूप में दुनिया की एक न्यायपूर्ण तथा लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था बनाने में योगदान करेंगे।
1. एक बार एक व्यक्ति ने परमात्मा से प्रार्थना की- ‘परमात्मा! कृपया मुझसे वार्तालाप कीजिए।’ प्रार्थना करते समय पेड़ पर एक चिड़िया चहचहाने और गाने लगी, पर व्यक्ति ने उसे नहीं सुना। वह प्रार्थना करता रहा- ‘प्रभु! कृपया मुझसे वार्तालाप कीजिए।’ सहसा, बादल गरज उठे और आसमान में बिजली कौंध उठी, पर व्यक्ति ने उसे भी नजरअंदाज कर दिया। उस रात व्यक्ति फिर से प्रार्थना करने बैठ गया। वह कहने लगा- ‘प्रभु! कृपया मुझे अपने दर्शन दीजिए।’ आसमान में एक सितारा तेजी से चमकने लगा। तब भी व्यक्ति ने उसे नहीं देखा। व्यक्ति व्याकुल हो उठा और चिल्लाने लगा-‘प्रभु ! मुझे चमत्कार दिखाइए।’ उस रात उसके पड़ोसी के घर एक बालक का जन्म हुआ और उसने अपने जीवन की पहली चीख-पुकार की, पर व्यक्ति ने उस पर भी ध्यान नहीं दिया। अगले दिन व्यक्ति बाहर गया। चलते-चलते वह मूक रूप से प्रार्थना करने लगा- ‘प्रभु! मुझे स्पर्श कीजिए और मुझे यह बताइए कि आप मेरे संग हैं।’ सहसा एक तितली आदमी की बांह पर आ बैठी, पर व्यक्ति ने उसे हटा दिया।
पाकिस्तान में सिंध प्रांत की मशहूर दरगाह लाल शाहबाज कलंदर को आत्मघाती हमले से दहल गई। हमले में 100 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। आतंकवाद का संरक्षण देने वाला पाकिस्तान स्वयं आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित है। वहीं प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सूफी अल्पसंख्यक समुदाय पर हुए इस हमले की निंदा की है। पाकिस्तानी अखबार द न्यूज इंटरनेशनल के अनुसार लाल शाहबाज कलंदर जैसी सूफी दरगाह पर हमले से सब सकते में हैं। पवित्र दरगाह उस वक्त निशाना बनी, जब वहाँ भारी तादाद में बच्चे और औरतें भी मौजूद थे। यानी मकसद साफ था कि ज्यादा से ज्यादा जानें जाएं। वैसा ही हुआ भी। आतंकी हमलों की कड़ी में इस ताजा घटना ने कई सवाल उठाए हैं। सबसे बड़ा सवाल पाकिस्तानी खुफिया तंत्र की विफलता का है, जिसे इतनी बड़ी दरगाह के टारगेट होने की भनक तक नहीं हुई। घटना के बाद आतंकवादियों पर हुई ताबड़तोड़ कार्यवाही भी सवालों के घेरे में है कि आखिर जिन्हें निशाना बनाया गया, वे यदि निशाने पर थे, तो पहले ही कार्यवाही क्यों न हुई? जरूरत बहुत गहराई तक पड़ताल की है।
असंभव के विरूद्ध चलने का नियम यह नहीं कि हम यह ठान लें कि एकाएक हम कोई बड़ा काम गुजरेंगे। आॅस्ट्रेलिया के निक वुजिसिक जन्म से ही उनके दोनों हाथ और पैर नहीं हैं। पैर की जगह निकली कुछ उगंलियों की मदद से उन्होंने लिखना सीखा। अकाउंटिंग व फाइनेंस में डिग्री ली और फिर एक कंपनी खोली- एटिट्यूड इज एटिट्यूड। आज वह एक सफल प्रेरक वक्ता है। वे तैराकी करते हैं, फुटबाल भी खेलते हैं। अगर हम किसी असंभव लक्ष्य पर जी-जान से जुटते हैं, तो उसे खोकर भी हम बहुत कुछ जीवन में सीखते हैं। मानव योनि में जन्म लेना ही जीवन का सबसे बड़ा प्रेम, आनंद तथा खुशी है। साथ ही इस मानव शरीर में इस क्षण सांस का चलना सबसे बड़ा आश्चर्य है। किसी समस्या का कारण हमारे अंदर ही होता है तथा उसका समाधान का कारण भी हमारे अंदर ही है। आवश्यकता केवल अपने अंदर की शक्ति को पहचाने की है। जीवन में आने वाली बाधायें सबसे बड़ी शिक्षक हैं।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल भर पहले जब पश्चिम एशिया का दौरा किया था। जिनपिंग ने अपनी इस यात्रा के पड़ावों में रियाद और तेहरान के अलावा काहिरा में अरब लीग की बैठक मंे भी वह शामिल हुए थे। चीन अभी तक अपने व्यापारिक हितों के जरिये ही अपनी विदेश नीति को शक्ल देता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अखाड़े में उतरने के पीछे दरअसल उसकी आर्थिक मजबूरियां हैं। दलील यह दी गई कि चीन पश्चिम एशिया के तेल व गैस पर बड़े पैमाने पर निर्भर है और इनकी अबाध आपूर्ति के लिए इस क्षेत्र की स्थिरता जरूरी है। यह स्थिरता अब तक अमेरिका की निगरानी की वजह से कायम रही है, और अब चूंकि अमेरिका वहां ग्लोबल पुलिस वाले की भूमिका निभाने को इच्छुक नहीं है, तो चीन को शायद यह लगता है कि उसे अपने आर्थिक हितों के लिए अपनी राजनीतिक उदासीनता छोड़नी ही पड़ेगी। चीन ने कहा कि वह वैश्वीकरण के लक्ष्यों की रक्षा करेगा। वहीं अमेरिका के नये राष्ट्रपति ने साफ कर दिया कि उनका एजेण्डा वैश्वीकरण विरोधी और अमेरिका फस्र्ट का है। चीन ने अब तक किसी जटिल अंतर्राष्ट्रीय मसले को सुलझाने की इच्छा या क्षमता का प्रदर्शन नहीं किया है।
(1) जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए:
लोक कल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर सफल जीवन जीने के लिए प्रत्येक मनुष्य को ईश्वरीय ज्ञान रूपी शक्ति का प्रत्येक पल भरपूर सदुपयोग करना चाहिए। हम जैसा सोचते हैं हम अपने जीवन को वैसा ही बना भी लेते हैं। हमारा अवचेतन मन हमारी सोच या विचार को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में हमारा उत्साह हमारी सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। इसलिए हमें जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए। मनुष्य जीवन के महत्व के बारे में किसी ने सही ही कहा है कि – प्रभु कार्य करके पा लो प्रभु का प्यार कहीं लुट न जायें यह खजाना। कल किसने देखा है प्रभु कार्य इसी क्षण आज कर लो। प्रभु कार्य रस जीवन में भर लो। देखो प्रभु कार्य करने यह मौका नहीं आयेगा दुबारा। कहीं समय का पक्षी चुग न जाये दाना। कहीं लुट न जायें सांसों का खजाना। गुजरा हुआ समय फिर वापिस नहीं आता है। समय की गति को कोई रोक नहीं पायेगा। समय के साथ ही नहीं चलना वरन् समय को आगे बढ़कर बढ़ाना है।
हमें अपनी आत्मा का दीया जलाना है!
एक कमरे में अंधेरा था। जब उसमें एक व्यक्ति गया तो उसे यह पता ही नहीं था कि उस कमरे मंे क्या-2 रखा है। उस कमरे में कही कुर्सी रखी है तो कहीं मेज रखी है। तो वह टक्टर खाता हुआ, धक्का खाता हुआ, टो-टोकर चलता रहता है। लेकिन जैसे ही किसी ने उस कमरे में लाइट की स्वीच आॅन की उस व्यक्ति को कमरे में रखी हुई सभी चीजें दिखाई देने लगती है। इस प्रकार बल्ब के रूप में भौतिक दीया जो जलता है उससे हम यह प्रेरणा लेते हैं कि हमारा जो आत्मा का दीया है वो जले ताकि हमें दिखाई दे कि दुनिया है क्या? इसके लिए परमपिता परमात्मा समय-समय पर अपने दिव्य शिक्षकों को इस पृथ्वी पर अपना दिव्य ज्ञान देने के लिए भेजते रहते हैं।
(1) धार्मिक है लेकिन नहीं है नैतिक बहुत बड़ा आश्चर्य है?
धर्म के नाम पर हम रोजाना जो भी घण्टों पूजा-पाठ करते है वे भगवान को याद करने के लिए कम भगवान को भुलाने के ज्यादा होते हैं। धर्म के नाम पर सारे विश्व में एक-दूसरे का खून बहाया जा रहा है। मानव इतिहास में विश्व में धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा लड़ाइयाँ तथा युद्ध हुए हैं। रामायण में लिखा है परहित सरिस धर्म नही भाई, परपीड़ा नहीं अधमाई। अर्थात दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है तथा दूसरों का बुरा करने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। पवित्र ग्रन्थों में जो लिखा है उसकी गहराई में जाकर उसे जानना तथा उसके अनुसार अपना कार्य-व्यवसाय करना भगवान की पूजा है। हम प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा के अनुसार चलनेे की जरा भी कोशिश नहीं करते हैं बस भगवान की आरती उतारते हैं। एक गीत की प्रेरणादायी पंक्तियां हैं – धीरे-धीरे मोड़ तू इस मन को इस मन को। जप-तप, तीर्थ, गंगा स्नान सब होते बेकार जब तक मन में भरे रहते विकार। जीत लिया मन फिर ईश्वर नहीं दूर, जान-बुझ कर इंसा क्यों मजबूर। निरन्तर अभ्यास से कुछ भी नहीं है असम्भव।
1. प्रभु के इस विश्वस्त सेवक का नाम है- दुःख:-
प्रभु जब किसी को अपना मानते हैं, उसे गहराइयों से प्यार करते हैं तो उसे अपना सबसे भरोसेमंद सेवक प्रदान करते हैं और उसे कहते हैं कि तुम हमेशा मेरे प्रिय के साथ रहो, उसका दामन कभी न छोड़ो। कहीं ऐसा न हो कि हमारा प्रिय भक्त अकेला रहकर संसार की चमक-दमक से भ्रमित हो जाए, ओछे आकर्षण की भूलभुलैयों में भटक जाए अथवा फिर सुख-भोगों की कँटीली झाड़ियों में अटक जाए। प्रभु के इस विश्वस्त सेवक का नाम है- दुःख। सचमुच वह ईश्वर के भक्त के साथ छाया की तरह लगा रहता है।’’
शिक्षा के लिए समर्पित लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के पूर्व हेड डाॅ. जगमोहन सिंह वर्मा (72) की देह अब मेडिकल स्टूडंेट्स के काम आएगी। प्रो. जगमोहन सिंह का निधन 30 जनवरी 2017 को सुबह हो गया। पत्नी श्रीमती कुसुम लता सिंह ने बताया कि डाॅ. जगमोहन सिंह ने 31 अगस्त 2016 को देहदान के लिए पंजीकरण कराया था। उनकी आखिरी इच्छा थी कि जो शरीर जिंदगी भर घर परिवार और बच्चों को शिक्षित करने के काम आया, वो प्राण त्यागने के बाद मेडिकल छात्रों के काम आ सके, ताकि वे कुछ नया सीख सकें। डाॅ. जगमोहन सिंह के इस मानवीय जज्बे को लाखों सलाम। हमारा विचार है कि जीते जी रक्त दान। मरणोपरान्त नेत्र दान तथा देह दान का हमारा संकल्प होना चाहिए। किसी के काम जो आये उसे इंसान कहते हैं, पराया दर्द अपनाये उसे इंसान कहते हैं।
(1) जीवन-मृत्यु के पीछे परमपिता परमात्मा का महान उद्देश्य छिपा है:
इस सत्य को जानना चाहिए कि शरीर से अलग होने पर भी आत्मा तब तक प्रगति करती जायेगी जब तक वह परमात्मा से एक ऐसी अवस्था में मिलन को प्राप्त नहीं कर लेती जिसे सदियों की क्रान्तियाँ और दुनिया के परिवर्तन भी बदल नहीं सकते। यह तब तक अमर रहेगी जब तक प्रभु का साम्राज्य, उसकी सार्वभौमिकता और उसकी शक्ति है। यह प्रभु के चिह्नों और गुणों को प्रकट और उसकी प्रेममयी कृपा और आशीषों का संवहन करेगी। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह कहते हंै कि हमें यह जानना चाहिए कि प्रत्येक श्रवणेंद्रीय, अगर सदैव पवित्र और निर्दोष बनी रही हो तो अवश्य ही प्रत्येक दिशा से उच्चरित होने वाले इन पवित्र शब्दों को हर समय सुनेगी। सत्य ही, हम ईश्वर के हैं और उसके पास ही वापस हो जायेंगे। मनुष्य की शारीरिक मृत्यु के रहस्यों और उसकी असली वतन अर्थात दिव्य लोक की अनन्त यात्रा को प्रकट नहीं किया गया है। माता के गर्भ में बच्चे के शरीर में परमात्मा के अंश के रूप में आत्मा प्रवेश करती है। जिसे लोग मृत्यु कहते हैं, वह देह का अन्त है। शरीर मिट्टी से बना है वह मृत्यु के पश्चात मिट्टी में मिल जाता है। परमात्मा से उनके अंश के रूप में आत्मा संसार में मानव शरीर में आयी थी मृत्यु के पश्चात आत्मा शरीर से निकलकर अपने असली वतन (दिव्य लोक) वापिस लौट जाती है। मृत्यु संसार से अपने ‘असली वतन’ जाने की वापिसी यात्रा है!
झारखंड में रामगढ़ के रजप्पा टाउनशिप में पिछले 30 साल से झाडू लगाने वाली सुमित्रा देवी का नौकरी का आखिरी दिन था। विदाई समारोह में शामिल होने के लिए उसके तीन अफसर बेटे शामिल हुए। उसके तीन बेटों में सीवान (बिहार) के डीएम महेंद्र कुमार, रेलवे के चीफ इंजीनियर वीरेन्द्र कुमार व रेलवे के चिकित्सक धीरेन्द्र कुमार हैं। बेटों ने मां के संघर्ष की कहानी से सबको अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि जिस नौकरी के दम पर उनकी मां ने उन्हें पढ़ाया-लिखााया, आज उसके विदाई समारोह में वे उनके साथ हैं। सुमित्रा देवी ने कहा कि यह नौकरी इसलिए नही छोड़ी कि इसी की कमाई से उनके बेटे पढ़-लिखकर आगे बढ़ सके और आज उन्हें गर्व का एहसास करा रहे हैं। सुमित्रा के जज्बे को लाखों सलाम जो पूरी जिंदगी झाडू लगाती रही, लेकिन उसने अपने तीनों बेटों को साहब बना दिया। इसे कहते है यदि कोई मनुष्य अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अच्छा इंसान बनाने का संकल्प कर ले तो फिर कुछ भी असंभव नहीं रहता। कुदरत चारों ओर से हमारा हौसला बढ़ाती है। सफलता कोई मंजिल नहीं वरन् सफलता ही रास्ता है। संग्राम जिन्दगी है लड़ना इसे पड़ेगा, जो लड़ नहीं सकेगा आगे नहीं बढ़ेगा।
लोग 500 और 1000 रूपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने को सरकार के स्मार्ट अभियान की तरह देख रहे हैं लेकिन लोग ब्लैक मनी को सफेद करने के लिए ओवर स्मार्ट तरीके खोजने की कोशिश भी कर रहे हैं। कहीं यह कोशिश ऐसे लोगों पर भारी न पड़ जाए। नोटबंदी की घोषणा के बाद अचानक चुनाव सुधार का एजेंडा हावी हो गया है। चुनाव सुधार के हिमायती मोदी सरकार से तुरंत चुनाव में काले धन के उपयोग को रोकने की मांग कर रहे हैं। 16 नवंबर को संसद सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी वर्तमान सत्र में चुनाव में स्टेट फंडिग पर बहस करने की बात कही। मौका देखते हुए चुनाव आयोग ने सुधार के प्रस्ताव फिर सरकार को दिए हैं। अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या श्री नरेंद्र मोदी इस मोर्चे पर भी सख्त फैसला लेंगे? स्टेट फंडिग का प्रस्ताव के मायने हैं – राजनीतिक दलों को काॅरपोरेट डोनेशन बंद करे, नेशनल इलेक्शन फंड के तहत सभी राजनीतिक दलों को स्टेट फंडिग करें, साथ ही सरकार चुनाव में लड़ने के लिए कुछ जरूरी सामानों को सब्सिडी के रूप में दे, जिससे बेनामी रास्तों से होने वाले खर्च पर अंकुश लगे। आई.टी.आई. के तहत राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के बारे में जानने का लोकतंत्र के अभिभावक जनता को पूरा हक है। देश के लिए अपना-अपना करो सुधार तभी मिटेगा भ्रष्टाचार
(1) आज हमारे नन्हें-मुन्नों को संस्कार कौन दे रहा है?
वर्तमान समय मंे परिवार शब्द का अर्थ केवल हम दो हमारे दो तक ही सीमित हुआ जान पड़ता हैं। परिवार में दादी-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, आदि जैसे शब्दों को उपयोग अब केवल पुराने समय की कहानियों को सुनाने के लिए ही किया जाता है। अब दादी और नानी के द्वारा कहानियाँ सुनाने की घटना पुराने समय की बात जान पड़ती है। अब बच्चे टी0वी, डी0वी0डी0, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि के साथ बड़े हो रहे हैं। परिवार में बच्चों को जो संस्कार पहले उनके दादा-दादी, माँ-बाप तथा परिवार के अन्य बड़ेे सदस्यों के माध्यम से उन्हें मिल रहे थे, वे संस्कार अब उन्हें टी0वी0 और सिनेमा के माध्यम से मिल रहे हैं।
भारत में भ्रष्टाचार उन्मूलन और पारदर्शिता के भले ही कड़े कदम उठाए गए हों, लेकिन रिश्वतखोरी कम नहीं हुई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में रिश्वत के मामले में भारत शीर्ष पर है। रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में दो तिहाई अर्थात 67 प्रतिशत से ज्यादा भारतीयों को सरकारी सेवाओं के बदले किसी न किसी रूप में रिश्वत देनी पड़ती है। चीन में 73 प्रतिशत लोगों ने कहा कि तीन वर्षों में उनके देश में रिश्वत का चलन बढ़ा है। रिश्वत देने की दर जापान में सबसे कम 0.2 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में केवल तीन प्रतिशत पाई गई। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अध्यक्ष श्री जोस उगाज के कहना है कि सरकारों को भ्रष्टाचार रोधी कानूनों को हकीकत में बदलने के प्रयास करने चाहिए। करोड़ों लोग रिश्वत देने के लिए बाध्य हैं और इसका सबसे बुरा असर गरीबों पर पड़ता है। किसी महापुरूष ने कहा है कि अपना अपना करो सुधार तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।
प्रसिद्ध स्पेस वैज्ञानिक एम. अन्नादुरई के अनुसार मेरा जन्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के एक छोटे-से गांव में 1958 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा मैंने अपने गांव के स्कूल में ही पाई। बचपन में सातवीं क्लास तक मेरे घर में बिजली नहीं थी। हम पांच भाई-बहन थे और मेरे पिता महीने में मात्र 120 रूपये कमाते थे, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत तथा ईमानदारी पर ही उम्मीद की। बचपन से पिता ही मेरे सबसे प्रभावी गुरू रहे हैं। वह स्कूल में मेरे शिक्षक तो थे ही, घर में भी यही सिखाते थे कि रोज अपने जीवन में थोड़ा सुधार करो, कुछ नया जोड़ो। चंद्रयान के बाद उन्होंने मुझे पूछा था कि आगे क्या योजना है, फिर मंगलयान के बाद भी उन्होंने यही सवाल किया। किसी भी नवाचार की शुरूआत एक सामान्य विचार से होती है, पर उसे सावधानी से विकसित करने की जरूरत होती है। अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं कि आत्मविश्वास और नवोन्मेषी दृष्टि सफलता के लिए बहुत जरूरी है। हमें एम. अन्नादुरई जैसे महान स्पेस वैज्ञानिक से जीवन के हर पल में कुछ नया जोड़ने की कला सीखनी चाहिए।
यह एक शैक्षिक जगत की अच्छी खब़र है कि अब काॅलेज बीटेक छात्रों को मुफ्त में पीजी और पीएचडी कराएंगे और नौकरी की गारंटी देंगे। पढ़ने के दौरान छात्रवृत्ति भी दी जाएगी। योजना इसी साल से शुरू हो जाएगी। इंजीनियरिंग संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने नई योजना तैयार की है। वहीं दूसरी ओर अगले महीने से चुनिंदा शहरों के लोग पासपोर्ट बनवाने के लिए डाकघरों में आवेदन कर सकेंगे। यह विदेश मंत्रालय की महत्वकांक्षी योजना के अन्तर्गत किया जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी सारी दुनिया में घूम-घूमकर अपनी प्रतिभा का सर्वोच्च प्रदर्शन करना चाहती हैं। युवा पीढ़ी को देशों की सीमाओं से आजाद करना चाहिए।
क्या इस सृष्टि के रचनाकार परमपिता परमात्मा का अस्तित्व है?
आज मानव जाति अनेक समस्याओं, कुरीतियों तथा मूढ़ मान्यताओं से पीड़ित तथा घिरा हुआ है। मनुष्य परमात्मा के दर्शन भौतिक आंखों से करना चाहता है। आज धर्म का स्थान बाहरी कर्म-काण्डों ने ले लिया है। हम सभी जानते हैं कि अध्यात्म भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व है। अध्यात्म अनुभव का क्षेत्र है और इसकी प्रक्रियाओं व वैज्ञानिक प्रयोगों को प्रत्यक्ष दिखाया नहीं जा सकता, जैसे- हम वायु को देख नहीं सकते, केवल अनुभव कर सकते हैं, ठीक उसी तरह अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रयोग स्थूलजगत में देखे नहीं जा सकते, केवल उनके परिणामों को देखा जा सकता है।
राजस्थान के बाड़मेर के रहने वाले ओमप्रकाश डूडी का चयन एमबीबीएस में हुआ था। वह पढ़ाई के लिए महाराष्ट्र के शोलापुर मेडिकल कालेज पहुंचे। यहां अपनी सहपाठी स्नेहा से उनका मिलना हुआ और दोनों में प्यार हो गया। 2006 में डा0 ओम की तबीयत खराब हुई तथा डाक्टरों ने कहा कि उनकी किडनियां खराब हैं। 2007 में ओम की किडनी का ट्रांसप्लांट हुआ जो उसकी मां ने दी थी। स्नेहा ने 2009 में डा. ओम से लव मैरिज कर ली। पति की दूसरी किडनी खराब होने के कारण डाॅ0 स्नेहा ने तय किया कि अब अपने सुहाग पर आए संकट के लिए वह खुद आगे आएंगी। स्नेहा ने 6 फरवरी 2017 को अपने पति डाॅ0 ओमप्रकाश को किडनी दे दी। स्नेहा की एक किडनी ओम के शरीर में है। यह पति-पत्नी के प्यार के एक अनुकरणीय मिसाल है।
मानव जीवन का उद्देश्य प्रभु को प्राप्त करना और प्रभु शिक्षाओं पर चलना है:
जिस प्रकार से किसी भी देश को चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार से मनुष्य को अपना निजी जीवन चलाने के लिए व अपना सामाजिक जीवन चलाने के लिए धर्म की आवश्यकता है। अगर वह इसमें सही प्रकार से सामंजस्य करता है तो वह आध्यात्मिक कहलाता है। अध्यात्म का मतलब यह नहीं होता कि दुनियाँ से बिलकुल दूर जाकर के जंगल में पहाड़ों की कन्दराओं में जाकर बैठ जाओं। धर्म का मतलब होता है अपने जीवन को इस प्रकार से संचालित करना कि मानव अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। मानव जीवन का उद्देश्य है प्रभु को प्राप्त करना और उसकी शिक्षाओं पर चलना। इस प्रकार जैसे-जैसे हमारे जीवन में धर्म आता जायेंगा वैसे-वैसे हम आध्यात्मिक होते जायेंगे।
(1) आध्यात्मिक संतुष्टि की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती:
परमात्मा को समर्पित करके, एकाग्रचित्त होकर तथा पवित्र हृदय से अपनी नौकरी या व्यवसाय करने से निरन्तर गजब की आध्यात्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक संतुष्टि का स्वाद तो ‘‘गूँगे व्यक्ति का गुड़’’ खाने के समान है। गूँगा व्यक्ति गुड़ के स्वाद को तो महसूस कर सकता है लेकिन उसे अपनी वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता। गुड़ खाने वाले गूँगे व्यक्ति के आत्मिक सुख को उसके हाव-भाव तथा उसके हँसते हुए चेहरे से ही जाना जा सकता है। ईश्वरीय गुणों को ग्रहण तथा प्रस्फूटित करने के लिए निरन्तर प्रयास तथा अनंत धैर्य चाहिए। ईश्वर को हम लोग बाहर ढूंढ़ते हैं जबकि ईश्वर तो हमारे पवित्र हृदय में वास करता है। हम संसार में सेवा भावना से वास करें किंतु उससे प्रभावित न हों तो हमें परमात्मा द्वारा रचित उसकी इस सृष्टि में उनका दिव्य स्वरूप दिखाई देगा। इसलिए हमें अपने अन्दर के ईश्वरीय गुणों की सुगन्ध को प्रस्फुटित होने देना चाहिए। गुणों की यह सुगन्ध ही हमें स्थायी तृप्ति प्रदान करती है।
सरकारी बजट में विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक ध्यान रखा जाता है फिर भी बजट में शिक्षा व्यवस्था का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः अधिकांश देशों में शिक्षा का बजट रक्षा से कम होता है, यदि शिक्षा का बजट रक्षा से ज्यादा हो और सही ढंग से इसका प्रयोग हो तो रक्षा की तो जरूरत ही न पड़े। बजट ऐसा हो कि जिससे प्रत्येक युवा को नौकरी या व्यापार शुरू करने में दौड़-भाग न करनी पड़े, क्योंकि इससे व्यक्ति का मनोबल क्षीण होता है। शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। युद्ध के विचार सबसे पहले मानव के मस्तिष्क में पैदा होते हैं। मानव के मस्तिष्क में शान्ति के विचार डालने होंगे। शान्ति के विचार देने के सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। आज संसार में जो भी मारामारी हो रही है उसके लिए आज की शिक्षा दोषी है। सारे विश्व के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से शान्ति की शिक्षा मिलनी चाहिए।