Homeभक्त व संतराजा बली (Raja Bali)

राजा बली (Raja Bali)

सद्पुरुष कहते हैं, पुरुष को तपस्या करने से राज मिलता है, पर राज प्राप्ति के बाद उसको नरक भोगना पड़ता है, ‘तपो राज तथा राजो नरक’ इसका मूल भावार्थ यह है कि राज प्राप्ति के पश्चात मनुष्य अहंकारी हो जाता है|

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अहंकार के साथ कुछ लालच भी आता है| इसलिए फिर कुछ बात नहीं सूझती| उसके कर्म ऐसे हो जाते हैं कि प्रभु उसको फिर सत्य मार्ग पर लगाने के लिए कोई कौतुक रचता है| ऐसा युगों से होता आया है जैसे कि राजा बली की कथा है| भाई गुरदास जी ने भी लिखा है :-

बलि राजा घरि आपणे अंदरि बैठा जग करावै |
बावन रूपी आइआ चारि बेद मुखि पाठ सुणावै |
राजे अंदरि सदिया मंग सुआमी जो तुधु भावै |
अछल छलनि तुधु आइआ सुक्र प्रोहत कहि समझावै |
करों अढाई धरति मंगि पिछहुं दे त्रिहु लोअ न भावै |
दोइ करवा करि तिन लोअ बलि राजा लै मगर मिणावै |
बलि छलि आपु छलाईअनु होइ दिआलु मिलै गल लावै |
दिता राजु पताल दा होइ अधीन भगति जस गावै |
होइ दरवान महां सुखु पावै |३|

बली नाम का एक प्रतापी राजा था| उसके दादा प्रहलाद ने तपस्या की और अमर राज प्राप्त किया| बली का पिता विरोचन भी नेक पुरुष था| बली बड़ा दानी था, कोई भी उसके पास आता तो वह उसे खाली न जाने देता| स्वयं को राजा जनक या हरीशचन्द्र कहलाता| उसने अपने राज में यज्ञ किये तथा अत्यंत दान दिया, उसे अहंकार हो गया कि मेरे जैसा कौन दानी होगा? ब्राह्मणों को दान देकर संतुष्ट कर दिया है|

परमात्मा ने देखा कि एक अच्छे भले आदमी को अहंकार हो गया है, इसका अहंकार अवश्य चकनाचूर करना चाहिए| यह विचार करके भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा बली के दरबार में पहुंच गया| राजा ने आदर से कहा-हे स्वामी! आज्ञा दीजिए, मैं आपकी इस समय क्या सेवा करूं|

बावन (छोटा ब्राहमण रूप) भगवान बोले-हे राजन! मैं तो एक निर्धन ब्राह्मण हूं| मेरा कोई घर नहीं है| केवल एक इच्छा है कि आप कृपा करके मुझे सिर्फ ढ़ाई कदम धरती दे दें ताकि मैं वहां बैठ कर प्रभु का जाप कर लिया करूं आप से और क्या मांगना है| मुझे बस यही चाहिए, आपके द्वार पर बैठा रहूंगा|

यह सुन कर राजा बली हंसा तथा सम्बोधन करके कहने लगा-हे ब्राह्मण! तुम्हारा कद तो छोटा है, पर बली राजा को मजाक बहुत बड़ा करने आ गए हो| राज्य में खुले वन पड़े हैं, अनगिनत धरती पर लोगों ने आश्रम बनाए हैं, क्या तुम्हें किसी ने बैठने नहीं दिया| मेरे राज में मेरी धरती पर तो हर एक को छूट है, वह आश्रम बनाए धरती को जोते, मैं तो कुछ नहीं कहता| यदि मांगना था तो गाय, अनाज, वस्त्र, हीरे-मोती मांगते| यह क्या मांगा है? तुम ब्राह्मण हो यदि कोई और होता तो मरवा देता|

बावन चुप रहा, वह खड़ा मुस्कराता ही रहा| राजा बली बातें करता रहा|

राजा बली का मंत्री बहुत सूझवान था| वह समझ गया कि यह कोई खेल है| प्रभु स्वयं ही कोई परीक्षा लेने आए हैं| उसने राजा से कहा-राजन! यह बावन ब्राह्मण जिसने थोड़ी-सी ढाई कदम भूमि की मांग की है, वास्तव में कोई विष्णु अवतार लगता है|

‘आपको छलने के लिए आया है| कोई अद्भुत खेल न करें| जरा सावधानी से रहना चाहिए| इसकी यह बात नहीं माननी चाहिए| क्षमा मांग लेना ठीक है|’

पर राजा बली को अहंकार ने घेरा हुआ था, उसने एक न सुनी तथा कहा “जाओ ढाई कदम भूमि जहां से लेनी है, अधिकार कर लो| फिर कभी मजाक करने न आना|”

राजा बली की यह बात सुन कर बावन अवतार दरबार से बाहर आया तथा अपना शरीर इतना बढ़ा लिया कि दो कदमों में उसने बली राजा की सारी धरती सहित ब्रह्मांड माप लिया तथा आधी पूरी करने के लिए उसके सिर पर पैर आ रखा| बली राजा को होश आया, पर समय निकल गया था| बली को बावन ने पैर से धकेल कर पाताल में भेज दिया तथा कहा, ‘यहां राज करो| यह कह कर जब भगवान रूप बावन चला तो बली ने कहा, ‘मैं तो यहां राज करूंगा पर आप ने भी तो वचन दिया है कि द्वार के आगे रहोगे| अब वचन से न फिरो और बैठो|’ इस बात में भगवान भी छले गए| बापन रूप धारण कर बली के द्वार के आगे बैठ गया| बली पातालपुरी में भक्ति करने लगा|

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