बँगलिया मेरी एसी बनवइयौ सांई नाथ
बँगलिया मेरी एसी बनवइयौ सांई नाथ-2
जिसमें सारी उमर कटजाय जिसमें सारा बुढ़ापा कटजाय
बँगलिया मेरी एसी बनवइयौ सांई नाथ
जहां बनाऊँ कुटी में सांई वहीं धाम तेरा होवे
तेरे चरण की धूल उठाऊँ फिर दीवार बनाकर के
लता-पता से बँगला छाना सांई ज़रा दया करके
दरवाज़े पर श्रद्धा लिखना2लिखना सबूरी किवाड़
बँगलिया मेरी एसी बनवैयौ सांई नाथ
उस बँगले के अन्दर सांई तेरा इक मन्दिर होवे
मन्दिर अन्दर मेरे सांई की इक सुन्दर मूरत होवे
मन भावों का हार बनाऊँ तब इच्छा पूरी होवे
साँझ सवेरे उन भावों का तुमको हार पहनाऊँ
बँगलिया मेरी……………
भक्तिभाव से भरा हुआ उस बँगले में कुनबा होवे
शमा तात्या हों संग में और भगत म्हालसापति होवे
भक्तमंडली वहां विराजेऔर लक्ष्मी माई होवे
चारों पहर की होय आरती नित-नित दर्शन होय
बँगलिया मेरी एसी बनवैयौ सांई नाथ……।
गुरूवार के रोज़ वहां सांई तेरा भंडारा होवे
हलुआ पूरी और खिचड़ी का भोग वहां लगता होवे
सांई के हाथों हांडी में भी कुछ पकता होवे
सांई प्रेम से भोग लगावें जूठन मोहे मिल जाय
बँगलिया मेरी…………………
चैत मास में नौंवी के दिन उर्स भरे मेला होवे
यशुदा नन्दन पालने झूलें राम जनम सुन्दर होवे
क्वार मास में मने दशहरा तब उत्सव पूरा होवे
सांई नाथ कि चले पालकी मौं भी नाचूँ गाऊँ
बँगलिया मेरी एसी बनवैयौ सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कटजाय जिसमें सारा बुढ़ापा कटजाय
बँगलिया मेरी एसी बनवैयौ सांई नाथ
Spiritual & Religious Store – Buy Online
Click the button below to view and buy over 700,000 exciting ‘Spiritual & Religious’ products
700,000+ Products