म्हांरो अरजी
तुम सुणो जी म्हांरो अरजी।
भवसागर में बही जात हूं काढ़ो तो थांरी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी॥
मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थांरी मरजी॥
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