सहजता की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
सहजता की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
सहज न चीन्हैं कोय |
जिन सहजै विषया तजै,
सहज कहावै सोय ||
व्याख्या: सहज – सहज सब कहते हैं, परन्तु उसे समझते नहीं जिन्होंने सहजरूप से विषय – वासनाओं का परित्याग कर दिया है, उनकी निर्विश्ये – स्थिति ही सहज कहलाती है|
में सोई मीठा जान |
कड़वा लगै नीमसा,
जामें ऐचातान ||
व्याख्या: ऐ बोधवान! जो कुछ सहज में आ जाये उसे मीठा (उत्तम) समझो| जो छीना – झपटी से मिलता है, वे तो विवेकियों को नीम सा कड़वा लगता है|
सहज न चीन्हैं कोय |
पाँचों राखै पारतों,
सहज कहावै साय ||
व्याख्या: सहज सहक सब कहते हैं परन्तु सहज क्या है इसको नहीं जानते| विषयों में फैली हुई पाँचो ज्ञान इंद्रियों को जो अपने स्वाधीन रखता है, यह इन्द्रियजित अवस्था ही सहज अवस्था है|
सब निर गंगा होय |
ज्ञानी आतम राम है,
जो निर्मल घट होय ||
व्याख्या: उनके लिए काशी की भूमि या अन्ये भूमि व गंगा नदी या अन्ये नदियां सब बराबर हैं जो ह्रदय को पवित्र बनाकर ज्ञानी स्वरुप राम में स्थित हो गया|
अति की भली न चुप |
अति का भला न बरसना,
अति की भली न धूप ||
व्याख्या: बहुत बरसना भी ठीक नहीं होता है, और बहुत धूप होना भी लाभकर नहीं| इसी प्रकार बहुत बोलना अच्छा नहीं, बिलकुल चुप रहना भी अच्छा नहीं|