Homeभक्त कबीर दास जी दोहावलीकाल की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित

काल की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित

काल की महिमा

काल की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या

1 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
कबीर टुक टुक चोंगता,
पल पल गयी बिहाय |

जिन जंजाले पड़ि रहा,
दियरा यमामा आय ||

व्याख्या: ऐ जीव ! तू क्या टुकुर टुकुर देखता है ? पल पल बीताता जाता है, जीव जंजाल में ही पड़ रहा है, इतने में मौत ने आकर कूच का नगाड़ा बजा दिया |

2 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
जो उगै सो आथवै,
फूले सो कुम्हिलाय |

जो चुने सो ढ़हि पड़ै,
जनमें सो मरि जाय ||

व्याख्या: उगने वाला डूबता है, खिलने वाला सूखता है | बनायी हुई वस्तु बिगड़ती है, जन्मा हुआ प्राणी मरता है |

3 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
कबीर मन्दिर आपने,
नित उठि करता आल |

मरहट देखी डरपता,
चौड़े दीया डाल ||

व्याख्या: नित्ये उठकर जो आपने मन्दिर में आनंद करते थे, और श्मशान देखकर डरते थे, वे आज मैदान में उत्तर – दक्षिण करके डाल दिये गये |

4 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
कबीर गाफिल क्यों फिरै,
क्या सोता घनघोर |

तेरे सिराने जम खड़ा,
ज्यूँ अँधियारे चोर ||

व्याख्या: ऐ मनुष्य ! क्यों असावधानी में भटकते और मोर की घनघोर निद्रा में सोते हो ? तेरे सिराहने मृत्यु उसी प्रकार खड़ी है जैसे अँधेरी रात में चोर |

5 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
आस – पास जोधा खड़े,
सबै बजावै गाल |

मंझ महल सेले चला,
ऐसा परबल काल ||

व्याख्या: आस – पास में शूरवीर खड़े सब डींगे मारते रह गये | बीच मन्दिर से पकड़कर ले चला, काल ऐसा प्रबल है |

6 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
बेटा जाये क्या हुआ,
कहा बजावे थाल |

आवन जावन होय रहा,
ज्यों कीड़ी का नाल ||

व्याख्या: तेरे पुत्र का जन्म हुआ है, तो क्या बहुत अच्छा हुआ है ? और प्रसंता में तू क्या थाली बजा रहा है ? ये तो चींटियों को पंक्ति के समान जीवों का आना जाना लगा है |

7 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
बालपन भोले गया,
और जुवा महमंत |

वृद्धपने आलस गयो,
चला जरन्ते अन्त ||

व्याख्या: बालपन तो भोलेपन में बीत गया, और जवानी मदमस्ती में बीत गयी | बुढ़ापा आलस्य में खो गया, अब अन्त में चिता पर जलने के लिये चला |

8 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
घाट जगाती धर्मराय, गुरुमुख ले पहिचान |
छाप बिना गुरु नाम के, साकट रहा निदान ||

व्याख्या: घाट की चुंगी लेने वाला धर्मराज (वासना) है, वह गुरुमुख को पहचान लेता है | गुरु – ज्ञानरूपी चिन्ह बिना, अन्त के साकट लोग यम के हाथ में पड़ गये |

9 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
सब जग डरपै काल सों,
ब्रह्मा विष्णु महेश |

सुर नर मुनि औ लोक सब,
सात रसातल सेस ||

व्याख्या: ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सुर, नर, मुनि और सब लोक, साल रसातल तथा शेष तक जगत के सरे लोग काल के डरते हैं |

10 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
काल फिरै सिर ऊपरै,
हाथों धरी कमान |

कहैं कबीर घु ज्ञान को,
छोड़ सकल अभिमान ||

व्याख्या: हाथों में धनुष बांड लेकर काल तुम्हारे सिर ऊपर घूमता है, गुरु कबीर जी कहते है कि सम्पूर्ण अभिमान त्यागकर, स्वरुप ज्ञान ग्रहण करो |

11 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
जाय झरोखे सोवता,
फूलन सेज बिछाय |

सो अब कहँ दीसै नहीं,
छिन में गये बिलाय ||

व्याख्या: ऊँची अटारी की खिड़कियों पर फूलों की शैया बिछाकर जो सोते थे वे देखते देखते विनिष्ट हो गये | अब सपने में भी नहीं दिखते |

सेवक की