उठ जाग – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
उठ जाग घुराड़े मार नहीं,
एह सौण तेरे दरकार नहीं| टेक|
कित्थे हैं सुलतान सिकन्दर,
मौत न छडिआ पीर पगम्बर,
सबमें छड़-छड़ गए अडम्बर,
कोई एथे पायेदार नहीं|
जो कुछ करसैं सो कुझ पासैं,
नहीं तां ओड़क पच्छो तासैं,
सुंजी कूंज वांग़ कुरलासैं,
खभां बाझ उडार नहीं|
बुल्ल्हा शौह बिना कोई नाहीं,
एथे ओथे दोहीं सराईं,
संभल-संभल क़दम टिकाईं,
फिर आवण दूजी वार नहीं|
उठ जाग
बुल्लेशाह अचेत जीव को सावधान करते हुए जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझाते हुए कहते हैं कि उठ जाग, खर्राटे मारकर सोता ही न रह| इस प्रकार सो जाने की तुझे ज़रूरत नहीं, बल्कि आलस्य छोड़कर प्रभु की ओर ध्यान दो| ओ ज़रा सोचो कि विश्वविजयी सुल्तान सिकन्दर आज कहां है| सदा याद रख कि मृत्यु ने किसी भी पीर-पैग़म्बर तक को नहीं छोड़ा, तब तेरी क्या बिसात| सभी लोग इस आडम्बर (रंगारंग संसार) को छोड़कर चले गए| ज़ाहिर है कि यहां कोई भी स्थिर नहीं है| इस संसार में तो जो कुछ करोगे उसी का प्रतिफल पाओगे, अच्छे का अच्छा, बुरे का बुरा| यदि प्रभु से प्रेम नहीं किया , तो अन्त में पछताना पड़ेगा| तुम्हारा हस्त्र यह होगा कि पंखों के बिना उड़ने में असमर्थ होगे और सुनी, अकेली कूंज की तरह क्रन्दन करोगे|
बुल्ला कहता है कि शौह (पति-परमेश्वर) के बिना और कोई नहीं, इसलिए यहां और वहां, दोनों लोकों में, संभल-संभलकर क़दम रखो| यहां लौटकर दूसरी बार न आ सकोगे|