उठ चल्ले गुआंढों यार – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
उठ चल्ले गुआंढों यार,
रब्बा हुण की करिये| टेक|
उठ चल्ले हुण रहंदे नाही
होया साथ तियार,
रब्बा हुण की करिये?
चारों तरफ़ चल्लण दे चरचे,
हर सू पई पुकार,
रब्बा हुण की करिये|
ढांड कलेजे बल-बल उठ दी,
बिन देखे दीदार,
रब्बा हुण की करिये?
बुल्ल्हा शहु पिआरे बाझों,
रहे उरार ना पार,
रब्बा हुण की करिये?
चल दिए यार पड़ोस से
अपने प्रिय (मुरशद) के कहीं दूर चले जाने पर बुल्लेशाह की विरह-वेदना का वर्णन इस काफ़ी में किया गया है| वे कहते हैं कि मेरे प्रिय तो मेरे समीप से उठकर चले गए| या अल्ला, अब मैं क्या करूं? मेरे प्रिय जब उठकर चल दिए, तो अब रुकते नहीं| उनके साथ चलने के लिए और भी कई तैयार हैं| या अल्ला, अब मैं क्या करूं? चारों ओर उनके चलने की बातों के चर्चे हो रहे हैं, सभी ओर यही पुकार है कि वे चले गए| या अल्ला, अब मैं क्या करूं? मेरे कलेजे में तो उनके दर्शन के बिना आग की पलटें जल रही हैं| या अल्ला, अब मैं क्या करूं? अब हालत यह है कि प्रिय पति के बिना बुल्लेशाह न तो दरिया के इस ओर है, न उस ओर| या अल्ला, अब में क्या करूं?