उलटे होर ज़माने आये – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
उलटे होर ज़माने आये –
तां में भेद सजण दे पाये| टेक|
कां लगड़ां नूं मारन लग्गे|
चिड़ियां जुर्रे ढाये|
घोड़े चुगण अरूड़ियां उत्ते|
गद्दों ख़वेद पवाये|
आपणिआं विच उलफ़त नाहीं|
क्या चाचे क्या ताये|
पिओ पुत्तरां इतफ़ाक न कोई|
धीआं नाल न माये|
सचिआं नूं पए धक्के मिलदे|
झूठे कोल बहाये|
अगले हो कंगाले बैठे,
पिछ्लीआं फ़रश बिछाये|
भूरियां वाले राजे कीते|
राजिआं भीख मंगाये|
बुल्ल्हीआ हुकम हजूरों आया|
तिस नूं कौण हटाये|
कैसा उलटा ज़माना आ गया
ज़माने में न जाने कैसे सदाचारिक तथा नैतिक परिवर्तन आ गए हैं कि कुछ और ही तरह का वक्त आ गया है| उस बदलाव से शायद प्रभु की इच्छा जुड़ी हुई है| इसी में मैंने प्रिय प्रभु का भेद जाना|
ज़माने की उलटी चाल का हाल यह है कि कौए बाज़ों को मारने लगे हैं| चिड़ियों ने बाज़ को चित कर दिया है| घोड़े गन्दगी के ढेर पर चुग रहे हैं और गधों को हरे खेत में छोड़ दिया गया है|
लोगों में आपसी प्रेम-सद्भाव इतना ख़त्म हो गया है कि अपनों में प्रेम नहीं रहा| चाचे-ताऊ तक प्यार से ख़ाली हैं| पिता-पुत्रों के बीच एकता नहीं रही और मां का भी बेटियों के साथ प्यार नहीं रह गया है|
जो सच्चे हैं, उन्हें धक्के दिए जा रहे हैं और झूठों को पास बैठाया जा रहा है| जो अगली कतार में थे अर्थात ख़ुशहाल थे, वे कंगाल हो गए हैं, जो पिछ्ली कतार में थे, वे कालीन बिछाकर शानो-शौक़त से बैठे हैं|
भूरे ओढ़ हुए ग़रीब लोग राजे बन बैठे हैं1, और राजे भीख मांगने पर मजबूर हैं| बुल्ला कहता है कि इन सबका हुकम (आदेश) स्वयं ख़ुदा ने जारी किया है, तब इसे कौन टाल सकता है|