तोबा मत कर यार – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है?
नित पढ़ दे इस्तग़फ़ार कैसी तोबा है| टेक|
मुंहों तोबा दिलों न करदा,
इस तोबा थीं तरक न फड़दा,
किस ग़फ़लत न पाइओ परदा,
तैनूं बख्शे क्यों ग़फ्फ़ार|
सावीं दे के लवें सवाये,
डिओढ़िआं तक बाज़ी लाये,
मुसलमानी ओह कित्त्थों पाये,
जिसदा होवे इह किरदार|
जित न जाणा ओत्त्थे जावें,
हक़ बेगाना मुक्कर खावें,
कूड़ किताबां सिर ते चावें,
होवे कीह तेरा इतबार|
ज़ालम ज़ुलमों नाहीं डर दे,
अपणी कीतियों आपे मर दे,
नाहीं ख़ौफ़ ख़ुदा दा कर दे,
ऐथे ओत्त्थे होण ख़वार|
तौबा मत करो प्यारे
जब तक व्यक्ति अन्दर से पश्चात्ताप नहीं करता तो केवल शाब्दिक पश्चात्ताप सवर्था निरर्थक है| यही भाव इस काफ़ी में व्यक्त करते हुए कहा गया है – मेरे प्यारे, शाब्दिक तौबा मत करो| ऐसी तौबा से क्या लाभ? तुम प्रतिदिन बार-बार इस्तग़फ़ार (तौबा, क्षमा) कहते हो, इससे भला क्या होगा?
दिखावे की तौबा करने वालों की चर्चा करते हुए साईं जी कहते हैं कि मुंह से तुम तौबा करते हो, लेकिन दिल तौबा नहीं करते| मौखिक रूप से भले ही तुम तौबा करते हो, किन्तु जो चीजें तुम्हें छोड़ देनी चाहिए, उनको त्यागते नहीं| न जाने तुम्हारे मन पर किस लापरवाही का परदा पड़ा है ! ऐसी हालत में भला क्षमाशील भगवान तुम्हें क्यों क्षमा करें !
मुंह से तौबा करते हुए भी जो बराबर देकर उसके बदले में उसका सवाया प्राप्त करता है और ड्योढ़ा वसूल करने पर नज़र है| जिसका चलन ऐसा हो – उसे सच्चे मुसलमान की गति कैसे प्राप्त हो सकती है !
तौबा करने के साथ यदि व्यक्ति जिधर जाना नहीं चाहिए, उधर ही जाता है, बेगानी वस्तु बिना अधिकार के लूटकर खा जाता है और धर्मग्रन्थों की झूठी क़समें खाता है| ऐसे हालात में तुम पर भरोसा क्यों किया जाए?
जालिम लोग निस्संकोच ज़ुल्म करते रहते हैं, उन्हें अन्तत: अपने ही कुकर्मों का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है, उन्हें ईश्वर का भी भय नहीं| ऐसे लोग इस लोक में तो दुख पाते ही हैं, परलोक में भी दुख पाते हैं|