तेरा नाम तिहाई दा – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
तेरा नाम तिहाई दा,
साईं तेरा नाम तिहाई दा| टेक|
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा
जिस पर ताम पकाई दा|
रल्ल फ़क़ीरां मजलस कीती,
भोरा भोरा खाई दा|
रंगड़े वालों खिंगर चंगा,
जिस पर पैर घसाई दा|
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे,
जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा|
तेरा नाम सुमिरते हैं
साधना का मार्ग आत्म-विसर्जन, सन्तोष और अहंकार को त्यागने का है| इसी पक्ष को इस काफ़ी में उजागर किया गया है| साईं तो सीधे-सीधे कहते हैं, हम तेरे नाम का सुमिरन करते हैं|
स्वामी, बस तेरे ही नाम का सुमिरन करते हैं|
बुल्ले से तो वह चूल्हा अच्छा है, क्योंकि वह तपता है और जिस पर तुआम (भोजन) पकाया जाता है|
फ़क़ीर लोग इकट्ठा होते हैं| उनमें इतना सन्तोष भाव होता है कि वे थोड़ा-थोड़ा (बांटकर) भोजन खाते हैं|
अहंकार मनुष्य की सबसे बड़ी रुकावट है साधना के मार्ग में| अहंकारी व्यक्ति से तो वह पत्थर अच्छा है, जिस पर पांव घिसकर साफ़ किया जाता है| पत्थर तक मैल छुटाने के काम आता है किन्तु अहंकार तो आत्मा पर मैल जमा करता है|
बुल्लेशाह कहता है कि शौहर (परमात्मा) को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने अर्थात आत्म-विसर्जन के लिए तैयार हो| साधना की सफलता अपने को मिटाकर ही प्राप्त होती है|