से वणजारे आए – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
से वणजारे आए नी माए,
से वणजारे आए,
लालां दा ओह वणज करेंदे,
होका आख सुणाए|
सुणिआ होका, मैं दिल गुज़री,
मैं वो लाल लै आवां,
इक ना इक कन्नां विच पा के,
लोकां नूं दिखलावां|
कच्ची, कच्च विहाजण जाणां,
लाल विहाजण चल्ली,
पल्ले ख़र्च न, साख न कोई,
वेखो हारन चल्ली|
जां मैं मुल्ल ओह्नां नूं पुछिआ,
मुल्ल करन ओह भारे,
डम्म सूई दा कदे ना खाधा,
ओह पुच्छण सिर बारे|
जेह्ड़ियां गइयां लाल विहाजण,
ओहनां सीस लुहाए,
से वणजारे आए नी माए,
से वणजारे आए|
सैकड़ों बंजारे आए
नाम रूपी हीरों का व्यापार करने वाले सन्त-महात्मा और क़ामिल-मुर्शिद बनजारों (व्यापारी) को देखकर जीव के मन में उन्हें ख़रीदने की इच्छा होती है| तब उस हीरे का मूल्य ‘शीश देवा’ सुनते हैं, तो लोग भाग खड़े होते हैं|
भक्ति या नाम का रतन ख़रीदने की अवस्था का वर्णन इस काफ़ी में किया गया है|
मां, सैकड़ों ही बनजारे आए हुए हैं| वे हीरे-जवाहरात का व्यापार करते हैं और ऊंची आवाज़ से पुकारकर हमें सुनाते हैं|
मैंने जब यह पुकार सुनी, तो जी में आया कि मैं भी एक हीरा ख़रीद लूं और एक-न-एक हीरा कानों में लटका लूं और लोगों को दिखाऊं|
मैं अप्रौढ़ हूं और कांच तक नहीं परख सकती| फिर मैं चली हूं हीरा ख़रीदने| पल्ले पैसा न था, मेरी कोई साख़ भी न थी| देखो, इस सौदे में सीधे-सीधे हानि के लिए चल दी|
जब मैनें उनसे हीरे का मोल पूछा, तो उन्होंने उसका भारी मोल बताया – शीश| मैंने कभी सूई तक की चुभन सहन नहीं की थी और वे मांगने लगे कि इस हीरे के बदले सिर कटवा सकोगी? अर्थात अहं त्याग सकोगी?
जो-जो हीरे-जवाहरात ख़रीदने गईं, उन्होंने अपने सिर कटवा लिए| सैकड़ों ही बनजारे आए हैं मां, सैकड़ों ही बनजारे आए हैं|