संभल के नेहु लाए – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
दिलबर संभल के नहु लाए,
पिच्छों पछोतावहिंगा|
जाणेंगा तूं तां,
जां रोइ रोइ हाल वजावेंगा|
ओथै इश्क़ ज़ुलीखा है,
ओथै आशक़ तड़पन सै,
ओथै मजनूं करदा है,
ओथों तूं क्या ल्यावहिंगा|
जाहि जि जाना फेरि,
ओथै बेपरवाहीआं ढेर,
ओथै उछिल खलोंदे शेर,
ओथै तूं भी उछिया जावहिंगा|
कलालां दा धरि पासे,
ओथै आवण मसत पिआसे,
भरि-भरि पीन पिआले ख़ासे,
ओथै तूं भी जीउ ललचावहिंगा|
बुल्ल्हा ग़ैर शरा न होइ,
सुख दी नींझर भरि करि सोइ,
अनलहक़ न मुखों बुगोई,
चढ़ सूली ढोला गावहिंगा|
संभलकर प्रेम करना
प्रेम-मार्ग की कठिनाइयों को जानने के कारण साईं बुल्लेशाह चेताते हैं कि हे प्रिय, संभलकर प्रेम करना, अन्यथा बाद में पछताना पड़ेगा|
तुम्हें पता ही तब चलेगा जब रो-रोकर अपनी अधोगति का वर्णन करेगा|
इश्क़ में तुम्हारा हाल ज़ुलैखा-सा1 हो जाएगा| वहां सैकड़ों आशिक़ तड़पते हैं और वहां मजनूं हाय-हाय करता है| सोच-समझ लो कि वहां तुम क्या प्राप्त कर सकोगे|
मेरे समझाने पर यदि नहीं मानते और यदि जाना ही है तो चला जा| वहां ढेरों बेपरवाहियां हैं| इतनी बेरहमी भी है कि वहां शेरों तक के दिल दहल जाते हैं| मैं बताए देता हूं कि वहां तुम भी छले जाओगे|
वहां कलालों2 का घर समीप ही है| वे ख़ुदाई इश्क़ में मस्त हुए अपनी-अपनी प्यास बुझाते आते हैं और भर-भरकर प्रेम-प्याले पीते हैं|
वहां जाओगे तो तुम्हारा मन भी उनकी श्रेणी में जाने को ललचाने लगेगा|
बुल्लेशाह कहता है कि शहर में वेगाना न हो, और इस प्रकार सुख की गहरी नींद सो जा, अपने मुख से अनलहक़3 कभी न कहना, वरना तुम्हें सूली पर चढ़कर प्रेमगीत गाना पड़ेगा|