की कर गिआ माही – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
देखो नी की कर गिआ माही,
लैंदा ही दिल हो गिआ राही| टेक|
अम्बड़ झिड़के मैंनूं बाबल मारे,
ताह्ने देंदे वीर पिआरे,
उस्से दी गल ओहा नितारे,
हसदिआं गल विच पै गई फाही|
बूहे ते उन नाद बजाया,
अक्ल फ़िकर सभ चा वंजाया,
जे बुरी बुरिआर मैं होईआं,
मैंनूं देवो उत वल लाही|
बुल्ल्हा शौह दे इश्क़ रंजाणी,
डंगीआं मैं किसे नाग अयाणी,
अज्ज अजो की प्रीत न जाणी,
लग्गी रोज़ अज़ल दी आही|
क्या कर गया प्यारा
आत्मा के आकर्षण और प्रियतम से न मिल पाने की तड़प का वर्णन करते हुए इस काफ़ी में प्रेमोदय और उसकी मीठी कसक का मार्मिक चित्रण करते हुए बुल्लेशाह कहते हैं कि ऐ सखी, देखो तो वह प्यारा क्या कर गया? मेरा दिल लेते ही बस चल दिया|
अब स्थिति यह है कि मुझ प्रेम दीवानी को मां झिड़कती है, मुझे बाप मारता है और प्यारे भाई भी ताने कसते हैं| उसकी बात का निर्णय वही करे, लेकिन उसको देख, जो ज़रा हंसी के हंसते मेरे गले में फांस पड़ गई|
हुआ यह कि उसने मेरे दरवाज़े पर आकर नाद बजाया| उसे सुनते ही मेरे तो होशो-हवास जाते रहे और मैं बुरी तरह पगला गई हूं| अब तो बस मुझे उसी की ओर धकेले दो|
बुल्ला शौहर के इश्क़ में फंसा ग़मगीन है| मैं अज्ञानी हूं, मुझे उसके प्रेम-नाग ने डस लिया है, लेकिन एक बात बता दूं कि उसकी और मेरी प्रीति आज, बिल्कुल आज की नहीं है, बल्कि यह प्रीति तो रोज़े-अज़ल (सृष्टि-रचना के दिन) से चली आ रही|