की बेदर्दों के संग यारी – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
की बेदर्दों के संग यारी?
रोवण अखियां ज़ारो-ज़ारी| टेक|
सानूं गये बेदर्दी छड़ के,
सीने सांग हिज़र दी गड़ के,
जिस्मों जिंद नूं लै गये कढ़ के,
एह गल कर गये हैं सियारी|
बेदर्दां दा की भरवासा,
ख़ौफ़ नहीं दिल अन्दर मासा,
चिड़िया मरन गंवारा हासा,
मगरों हस-हस ताड़ी मारी|
आवण कह गये फेर न आये,
आवण दे सब क़ौल भुलाये,
मैं भुल्ली भुल नैण लगाये,
कहे मिले सानूं ठग ब्योपारी|
कैसी बेदर्दी से प्रीत लगी
इस काफ़ी में प्रियतम को बेदर्दी ठहराते हुए कहा गया है कि वह प्रीति लगाकर प्रेमिका को विरह की अग्नि में जलने के लिए छोड़ गया है| वह बेचारी दुखिया बनकर कहती है कि कैसे बेदर्दी से प्रीति लगी है, जो आंखों से आंसू थमते ही नहीं|
प्रीति लगाकर वह कठोर होकर हमें छोड़कर चले गए हैं और कलेजे में गाड़ गए विरह का भाला| देह में से प्राण निकालकर ले गए हैं| हाय, वे यह कैसी हृदयहीनता कर गए हैं|
भला ऐसे निर्मम लोगों का क्या भरोसा? उनके हृदय में (ईश्वर का) रत्ती-भर भय नहीं| चिड़ियां मर जाएं तो गंवार हंसते हैं| और हंसने के बाद, उपहास-भरी तालियां बजाते हैं| (भला यह भी कोई बात हुई कि किसी की बेबसी पर हंसें|)
वे कह तो यह गए थे कि हम अवश्य लौट आएंगे, किन्तु अभी तक लौटे नहीं| यही नहीं, उन्होंने तो लौट आने के सभी वचन भुला दिए| असल में चूक मुझसे ही हुई, जो भूल में उनसे नयन लगा बैठी| कैसे ठग व्यापारी मिले थे मुझे|