चूढ़ी हां – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
मैं चूढ़ेटरी आं सच्चे साहिब दी सरकारों| टेक|
धिआन दी छज्जली गिआन दा झाड़ू,
काम क्रोध नित झाड़ों|
काज़ी जाणे हाकम जाणें,
फ़ारख़तो बेगारों|
दिने रातीं मैं एहो मंगदी,
दूर न कर दरबारों|
तुध बाझों मेरा होर न कोई,
कैं वल्ल करी पुकारों|
बुल्ल्हा शौह अनाइत बाझों,
बखरा मिले दीदारों|
भंगिन हूं सरकार की
बुल्लेशाह नम्रतावश स्वयं को प्रभु के दरबार की मेहतरानी बताते हुए कहते हैं कि मैं सच्चे सरकार की भंगिन हूं|
इस रूपक को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि मेरे पास है ध्यान का छाज और ज्ञान की झाड़ू, जिससे मैं सदा काम और क्रोध को झाड़ती रहती हूं|
काज़ी भी यह जानता है और हाकिम भी जानता है कि मैं सांसारिक बेगार से पूरी तरह आज़ाद हूं|
अब जब मैं पूरी तरह उनकी ही हूं, तो दिन-रात यही मांगती हूं कि मुझे अपने दरबार से कभी अलग मत करना|
साधक की प्रभु पर निर्भरता का बयान करते हुए सन्त कहता है कि तुम्हारे बिना मेरा कोई नहीं है| अब अगर चाहूं भी तो फ़रियाद किसके पास करूं?
शौहर (मुर्शिद) इनायत शाह के अतिरिक्त दर्शन का सौभाग्य किससे मिल सकता है ?