Homeआध्यात्मिक न्यूज़मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं! – डा. जगदीश गांधी

मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं! – डा. जगदीश गांधी

मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं!

(1) मौके खोजे नहीं, पैदा किए जाते हैं

देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का कहना था कि ‘‘इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।’’ इसलिए हमें मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजने चाहिए। हर इंसान में किसी न किसी तरह की रचनात्मकता जरूर होती है। इसलिए हमें लगातार अपनी रचनात्मकता को निखारने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में और भी बेहतर कर सकें। क्रिएटिव वह है, जो केवल स्वप्न ही नहीं देखता बल्कि उन स्वप्नों को साकार करने के लिए काम करता है। क्रिएटिव वह है, जो अंधेरों में भी कूदने का साहस रखता है। क्रिएटिव वह है, जो चुनौतियों को स्वीकारने में तत्पर रहता है।

(2) हमें समस्याओं से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए

सबसे बड़ा रचनाकार परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। हम ब्रह्माण्ड के उस महान रचनाकार के पुत्र है। परमात्मा की बनाई इस पूरी सृष्टि की भलाई के लिए काम करके हमें अपने पुत्र होने का दायित्व निभाना चाहिए। इसके लिए हमें कोई ऐसा काम करना चाहिए जिसे हम हमेशा से करना चाहते थे। इसके लिए हम नए विषयों का अध्ययन करें और नए विचारों की जाँच करें। देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी कहा करते थे कि हमारे अंदर अलग सोच रखने का साहस, नये रास्तों पर चलने का साहस, आविष्कार करने का साहस होना चाहिए। हमें समस्याओं से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए। ये सभी महान गुण हैं जिन्हें हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए।

(3) सीखने की कोई उम्र नहीं होती

रोमन देशभक्त मार्कस पोर्सियस केटो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी। महान जर्मन-अमेरिकन कलाकार मैडम अर्नेस्टाइन शूमैन-हेंक दादी बनने के बाद अपनी संगीत सफलता के शिखर पर पहुँची। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने वाद्ययंत्र बजाना तब सीखा, जब वे अस्सी साल के थे। माइकलएंजेलो अस्सी साल की उम्र में अपने सबसे महान कैनवास पर पेटिंग कर रहे थे। अस्सी साल की उम्र में सियोस सायमनाइडस ने कविता का पुरस्कार जीता, और लियोपॉल्ड वॉन रैंके ने अपनी हिस्ट्री आफ द वर्क्ड शुरू की, जिसे उन्होंने बानवे साल की उम्र में पूरा किया। अठासी साल की उम्र में जॉन वेस्ली मेथोडिज्म पर भाषण के द्वारा मार्गदर्शन दे रहे थे।

(4) हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवसाय परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बने

शीर्षस्थ हार्ट सर्जन माइकल डेबेकी ने खून का पहला रोलर पंप 1932 में ईजाद किया था। उनका बनाया पंप आज भी बाइपास सर्जरी में प्रयुक्त होता है। नब्बे साल की उम्र में डॉक्टर डेबेकी को एक नए आविष्कार पर प्रयोग शुरू करने की अनुमति मिली। यह एक छोटा पंप था, जिसे गंभीर हृदय रोगियों के सीने में लगाया जा सकता था। डेबेकी सिर्फ शोध से ही संतुष्ट नहीं थे। वे सर्जरी भी करते रहे। उनके बारे में एक सहयोगी ने कहा था, ‘‘उन्होंने जितना किया है, उतना करने के लिये बाकी लोगों को पाँच-छह जन्म लेने पड़ेगे।’’ डेबेकी ने नब्बे साल की उम्र में अपने जीवनदर्शन का सार इस तरह से व्यक्त किया था, ‘‘जब तक आपके सामने चुनौतियाँ हैं और आप शारीरिक तथा मानसिक रूप से सक्षम हैं, तब तक जीवन रोमांचक और स्फूर्तिवान है।

(5) जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए

मानव जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है। ईश्वरीय प्रेम हमारे मस्तिष्क, हृदय तथा आध्यात्मिक शक्तियों के विकास का आधार है। लोक कल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर सफल जीवन जीने के लिए प्रत्येक मनुष्य द्वारा इसी ईश्वरीय ज्ञान रूपी शक्ति का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हम जैसा सोचते तथा करते हैं वैसा ही हो जाता है। हमारा अवचेतन मन इसे साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नया लक्ष्य निर्धारित करने के लिए बढ़ती उम्र कोई बाधा नहीं है। उत्साह सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। इसलिए हमें जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए।

(6) जिन्दगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाये

अधिकतर लोग समझते हैं कि सफल होने की एक उम्र होती है। यह ठीक है कि उम्र व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कम कर सकती है, लेकिन उसके अनुभव, जुझारूपन और उत्साह को नहीं। उद्देश्य, लक्ष्य और उत्साह ही किसी को चैंपियन बनाते हैं। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने, प्रयास करने और अपने लक्ष्य को पाने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति किसी भी उम्र में यह सब प्राप्त कर सकता है। हां, इसके लिए उसके संकल्प, उद्देश्य, ह्नदय में उत्साह, प्रसन्नता व काम करने की ललक होनी चाहिए। जरूरत है, अपनी आंतरिक सुप्त शक्तियों को जागृत करने की और अपने काम को लगन व जोश से अंजाम देने की। जीवन का समय बीतकर वापस नहीं लौटता। इसीलिए हमें हर पल मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजकर और अपना कर्म कर सफलता के नए मापदंड स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।

डा. जगदीश गांधी

डा. जगदीश गांधी

– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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