”दीपावली आत्मा के प्रकाश का त्योहार है“ – डा. जगदीश गांधी
(1) दीपावली का पर्व हमें अपने अन्दर आत्मा का प्रकाश धारण करने की प्रेरणा देता है
भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक “दीपावली” प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। विश्व के अलग-अलग देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी इस पर्व को प्रकाश पर्व के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। ईश्वर की कृपा से आप सबके लिए दीपावली पर्व मंगलमय हो! दीपावली मनाते समय हमारा हृदय निर्मल, मन प्रसन्न, चित्त शांत, शरीर स्वस्थ एवं अहंकार ‘शून्य’ हो, ऐसी ही अनुनय विनय है। त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र “मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम” जब पिता की वचन-पूर्ति के लिए चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके तथा अहंकारी रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता जी एवं अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने उनके स्वागत के लिए, अपनी खुशी प्रदर्शित करने के लिए तथा अमावस्या की रात्रि को भी उजाले से भरने के लिए दीपक जलाये थे। दीपावली को आलोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह प्रकाश पर्व मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम की शिक्षाओं को जानने तथा उन शिक्षाओं पर चलकर आत्मा का जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दीपावली मात्र एक पर्व अथवा त्योहार नहीं है, अपितु यह हमें अपने अंदर आत्मा का प्रकाश धारण करने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म के अनुयायिओं का मत है कि दीपावली के ही दिन महावीर स्वामी जी को निर्वाण मिला था। सिक्ख धर्म को मनाने वाले कहते हैं कि इसी दिन उनके छठे गुरू श्री हर गोविन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
(2) परिवार की एकता ही विश्व एकता की आधारशिला है
वनवास के मध्य ही लंका का राजा रावण श्री राम की पत्नी सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था और तब हनुमान, अंगद, सुग्रीव, जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर सेतु-निर्माण कर तथा सोने की लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी का वध कर धर्म तथा मर्यादित समाज की स्थापना धरती पर की थी। इसके अलावा सम्पूर्ण मानव जाति को यह संदेश दिया कि “आतंक चाहे कितना भी सिर उठाने की कोशिश करे तो भी उसका अंत निश्चित है” और “बुराई पर अच्छाई सदा भारी हुआ करती है। ”इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है जो “विजय दशमी” के नाम से भी विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद ही दीपावली आती है। श्रीराम ने राम राज्य की स्थापना जादू की छड़ी घुमाकर नहीं कर दी। राम ने अपने पूरे जीवन भर अनेक कष्ट उठाकर मर्यादाओं का पालन करते हुए राम राज्य की स्थापना की। राम राज्य के मायने अयोध्या के राजा राम का राज्य नहीं वरन् सारे संसार में आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है। ऐसे राज्य में नगर, घर, खेत, खलियान गांव, बाग, नदी, गुफा, घाटी, गली सभी जगहें ईश्वरीय आलोक से भर जाते हैं। एक ऐसा राम राज्य जहाँ किसी को भी शारीरिक, दैविक तथा भौतिक किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। हमारा मानना है कि परिवार की एकता समाज की आधारशिला है। अतः हमें भी श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने परिवार के सदस्यों के बीच एकता स्थापित करने का हर कीमत पर प्रयत्न करना चाहिए।
(3) स्वच्छता, स्वास्थ्य तथा आरोग्य के लिए योगमय जीवन जीने की प्रेरणा का पर्व है
यह त्योहार सारे भारत में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ कार्तिक मास की अमावस्या पर तीन दिनों तक मनाया जाता है। अमावस्या से दो दिन पहले का दिन ‘धनतेरस’ के रूप में मनाया जाता है। जिसका सन्देश है आरोग्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। दरअसल, इस दिन भगवान् धन्वन्तरी जी का प्रागट्य हुआ था जो सबको आरोग्य देते हैं लेकिन कालांतर में यह दिन कोई न कोई नया बर्तन, सोना ,चांदी आदि खरीदने के रूप में विख्यात हो गया। इस दिन तुलसी के पेड़ के पास या घर के द्वार पर दीपक जलाया जाता है। तत्पश्चात् अगला दिन चतुर्दशी- ‘नरक-चतुर्दशी’ या छोटी दीपावली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते है कि इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने महाआतंकी नरकासुर नाम के दैत्य का वध किया था। दीपावली के लगभग एक माह पूर्व से घरों में स्वच्छता, पुताई, रंग-रोगन एवं साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
(4) ईश्वरीय आलोक को सारे संसार में फैलाने का पर्व है दीपावली
दीपावली के दिन लक्ष्मी जी एवं गणेश जी का पूजन अत्यंत श्रद्धा एवं आस्था के साथ किया जाता है। तरह-तरह के व्यंजन एवं खील-बताशों से उन्हें भोग लगाया जाता है। पकवान तो इतने बनाये जाते हैं कि जैसे माँ अन्नपूर्णा ने अपने भंडार ही खोल दिए हों। रंग-बिरंगी ‘रंगोली’ हर द्वार की शोभा में चार चाँद लगाती हैं। सब लोग नये वस्त्र पहनते हैं। अपने रिश्तेदारों एवं मित्रों को शुभ-कामनाएं एवं उपहार देते हैं, मिठाई खिलाते हैं। दीपावली-पूजन के साथ ही व्यापारी नये बही-खाते प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री, दफ्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं। कई इसी दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरूआत करते हैं। एक बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि दीपावली पर एक दीये से ही दूसरा दीया जलाया जाता है और यह संदेश स्वतः ही प्रसारित हो जाता है कि “ज्योत से ज्योति जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो।” तथा ‘‘अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है एक दीप जलाये।’’ तीनों ही दिन रात्रि में दीप जलाए जाते हैं। दीपावली के दूसरे दिन “गोवर्धन पूजा” मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने लोकहित के लिए इन्द्र के अहंकार को तोड़कर उसे पराजित किया था। इस दिन गाय की पूजा पूरे भक्ति भाव से होती है।
(5) भैया दूज पर बहन भाई के ललाट पर तिलक लगाकर उसके शुभ संकल्पों के पूरा करने का वचन देती है
दीपावली के दो दिन बाद तक यानि कि भाई-दूज तक दीपावली की रोशनी से पूजा स्थल, हर घर, गली, चौराहा जगमगाते रहते हैं। “ भैया दूज” के शुभ अवसर पर बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उसकी भलाई की प्रार्थना तथा उसके शुभ संकल्पों में पूरा सहयोग करने का वचन देती है। रक्षा बंधन से अभिप्राय है कि जब बहन, भाई की ललाट पर टीका लगाती है तो वह कह रही होती है, ‘मेरे प्रिय भाई मैं जीवन के प्रत्येक क्षण में आपके जनहित के संकल्प को पूरा करने में सहयोग करूँगी।’ अर्थात बहनें, भाई को ईश्वरीय कार्यों के लिए हार्दिक सहयोग जीवन पर्यन्त देने की परमात्मा से प्रार्थना करती हैं। यही भाई-दूज का वास्तविक अर्थ है। हमारे प्रत्येक कार्य रोजाना परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बने।
(5) मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की शिक्षायें हमें मर्यादित जीवन जीने का समग्र ज्ञान कराती हैं
हम दीपावली का परम-पावन त्योहार खूब उत्साह से मनाकर अपनी संस्कृति को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे सुंदर अवसरों पर यह चर्चा करना अक्सर भूल जाया करते हैं कि कैसे भगवान् श्री राम ने प्रभु की आज्ञा तथा इच्छा को जानने के बाद समाज में मर्यादा का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए अपने जीवन के राजसी सुखों को दाँव पर लगा दिया। श्रीराम की शिक्षायें हमें थोड़ी देर के लिए भक्ति में भावविभोर कर देने के लिए नहीं है वरन् वह जीवन शैली व जीवन जीने का समग्र ज्ञान कराती है। साथ ही यह मनुष्य के जीवन में वैचारिक बदलाव लाकर रामराज्य की स्थापना का एक सुनिश्चित एवं ठोस आधार है। श्रीराम द्वारा अपने जीवन द्वारा दी गई मर्यादा की शिक्षाएं युगों-युगों तक मानव जाति को मर्यादित जीवन जीने का मार्गदर्शन करती रहेगी। श्रीराम ने अपने जीवन से मर्यादाओं के पालन की शिक्षा देकर मानव जीवन को मर्यादित बनाया। श्रीराम ने कोई ग्रन्थ नहीं दिया। महापुरूषों ने श्रीराम के जीवन चरित्र को अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर व्यक्त किया है। रामायण के प्रणेता थे आदिकवि ‘वाल्मीकी’ उनकी काव्य-कृति ‘रामायण’ उनके अंतरंग से प्रस्फुटित हुई। महान संत तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित्रमानस’ जन सामान्य में लोकप्रिय धार्मिक ग्रन्थ है।
(6) पटाखें आर्थिक, मानसिक तथा सामाजिक दृष्टि से बहुत हानिकारक हैं
क्या यह उचित न होगा कि हम श्रीराम की अयोध्या वापसी का यह पर्व शिष्टता-शालीनता के साथ दीये, रोशनी जलाकर तथा पौष्टिक भोजन, फल-फ्रूट व मिठाई खाकर मनाये। जुए-शराब व पटाखे जलाकर इसे समाज के लिए हानिकारक क्यों बनाये? धन बचाकर उसे परिवार के कल्याण तथा परोपकार में लगाये। इस तरह से सही मायने में मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप दीपावली का पर्व मनाएँ। अपनी प्यारी धरती को सुन्दर एवं सुरक्षित बनाने के लिए आज हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि ”प्रदूषण द्वारा मानव जगत का विनाश हो रहा है, उससे मानव जगत को मुक्त करेंगे“, ”हम दीवाली जरूर मनायेंगे – पर हम पटाखे नहीं जलायेंगे।“ शुभ दीपावली के बारे में जन समुदाय को साफ-सुथरा पर्यावरण निर्मित करने के प्रति जागरूक करते हुए यह बताया जाना चाहिए कि वे पटाखे न छुड़ाये। यह पर्यावरण, आर्थिक, स्वास्थ्य, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत हानिकारक है।
(7) बाल एवं युवा पीढ़ी को नीचे दिये गये 9 बिन्दुओं के बारे में बताकर जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिए
(1) बहुत तेज आवाज वाले (125 डेसिबल से अधिक) पटाखे जलाने पर कानूनी प्रतिबन्ध है। शान्ति क्षेत्र अर्थात अस्पतालों आदि के 100 मीटर के दायरे में पटाखे छोड़ना पूर्णतः प्रतिबन्धित है। (2) हमारे देश में दीपावली पर 3,000 करोड़ रूपये से अधिक के पटाखे एक दिन में धुआ-बारूद बनकर हमारे वायुमण्डल व वातावरण को विषाक्त करते हैं। इस धन से कितने अंधेरे घरों में चिराग जल सकते हैं तथा कितने बच्चों को मुरझाये चेहरे खिल सकते हैं। (3) हर वर्ष दीपावली पर हो रही आग की हजारों दुर्घटनाओं के कारण कितने बच्चे-नवयुवक अंधे-बहरे व अपंग हो रहे हैं और कितनों की मृत्यु हो रही है तथा अकल्पनीय राष्ट्रीय सम्पदा तथा मानव संसाधन जलकर खाक हो रहे हैं। (4) पटाखों के हुड़दंग से हमारे साथ पृथ्वी पर रहने वाले मासूम पशु-पक्षी बेहाल व मरणासन्न हो जाते हैं। हमारे शास्त्रों, पुराणों, चारों वेदों, रामायण, गीता में पटाखे-आतिशबाजी चलाकर दीपावली मनाने का कोई उल्लेख नहीं है। जुए-शराब व पटाखों के बारूद से मनाई जाने वाली दीपावली का पर्व मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की शिक्षाओं पर चलने की घोर उपेक्षा करना है। (5) इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि पूरे भारतवर्ष में अस्थमा रोगियों को पटाखों का प्रदूषण किस प्रकार हानि पहुँचाता होगा। क्या हम इस पाप के भागीदार नहीं हैं? (6) दीपावली के दिन शाम 6.00 से लेकर रात 10.00 के अतिरिक्त पटाखे चलाने एवं आतिशबाजी करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध है। रात 10.00 बजे के बाद पटाखे छोड़ने पर आपके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही हो सकती है। (7) केवल देश के एक महानगर में जले पटाखों का 1500 मीट्रिक टन कचरा जो फास्फोरस, सल्फर व पोटेशियम क्लोरेट से युक्त है, हमारी मिट्टी, पानी तथा हवा में जहर भर देगा। इस जानलेवा प्रदूषण से देश के शहर गैस चैम्बर बन जायेंगे। (8) इस दीपावली पर अनुमानतः लगभग 50,000 दिल्ली में निवास करने वाले अस्थमा मरीज डाक्टरी सलाह पर कुछ दिनों के लिये दिल्ली छोड़कर चले जायेंगे। (9) दीपावली के पटाखों के कारण वायुमण्डल में सल्फर डाई आक्साइड और कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा कई गुणा बढ़ जाती है जो सबके स्वास्थ्य के लिए विष तुल्य है। बच्चे, बूढ़े और बीमार इससे विशेष प्रभावित होते हैं।
(8) हमें ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके सामाजिक परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बनना चाहिए
दीपावली का पर्व सुख-समृद्धि, सुयश-सफलता, उन्नति, अंतस् की शुद्धता, पवित्रता और घर-आँगन की स्वच्छता की प्रेरणाओं से ओतप्रेत पर्व है ताकि अज्ञानता के अन्धकार की सारी बेड़ियाँ कट जाएँ और संसार का प्रत्येक व्यक्ति ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बने। जीवन के परम लक्ष्य ईश्वर की नजदीकी को प्राप्त करें। परमात्मा हमें कार्य-व्यवसाय में सदैव उन्नति-प्रगति की ओर अग्रसर रहने की प्रेरणा दें। बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों को ग्रहण करके आत्मा का जीवन जीने की शक्ति दें। ज्योति पर्व दीपावली हम सबके लिए शुभ रहे, मंगलकारी रहे और कल्याणकारी रहे। परमात्मा का स्नेह-आशीष सदैव हम सबके साथ रहे। प्रकाश पर्व दीपावली तथा भैया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं सहित!
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ