गाज का व्रत – Gaaj Ka Vrat
यह व्रत भाद्रपद माह में किया जाता है| यदि किसी के पुत्र पैदा हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो तो उसी वर्ष भाद्रपद माह में किसी शुभ दिन को देखकर गाज का व्रत कर उजमन करना चाहिए|
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विधि:
सात जगह चार-चार पूड़ी और हलवा रखकर उसपर कपड़ा व रुपये रखदें| एक जल के लौटे पर सतिया बनाकर ७ दाने गेहूँ के हाथ में लेकर गाज की कहानी सुनें| इसके बाद सारी पूरी औढ़नी पर रखकर सासुजी के पैर छूकर दे दें| बाद में लौटे को जल से भरकर भगवान को अर्ध्य दें| इसके बाद सात ब्रह्मणियों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करें|
गाज माता व्रतकथा:
पुराने समय में एक राजा के कोई सन्तान नही थी। राजा रानी सन्तान के न होने पर बडे दःखी थे एक दिन रानी ने गाज माता से प्रार्थना की कि अगर मेरे गर्भ रह जाये तो मैं तुम्हारे हलवे की कडाही करूँगी। इसके बाद रानी गर्भवती हो गई। राजा के घर पुत्र पैदा हुआ। परन्तु रानी गाज माता की कडाही करना भूल गई। इस पर गाज माता क्रुद्ध हो गई एक दिन रानी का बेटा पालने मे सो रहा था। आँधी पालने सहित लडके को उडा ले गई और एक भील-भीलनी के घर पालने को रख दिया। जब भील-भीलनी जंगल से घर आए तो उन्हें अपने घर में एक लडके को पालने में सोता पाया।
भील- भीलनी के कोई सन्तान न थी। भगवान का प्रसाद समझकर भील दम्पति बहुत प्रसन्न हुए। एक धोबी राजा और भील दोनो के कपडे धोता था। धोबी राजा के महल में कपडे देने गया तो महल में शोर हो रहा था कि गाज माता लडके को उठाकर ले गई। धोबी ने बताया कि मैने आज एक लडके को भीलनी के घर में पालने मे सोते देखा है राजा ने भील दम्पति को बुलाया कि हम गाज माता का व्रत करते है गात माता ने हमे एक बेटा दिया है। यह सुनकर रानी को अपनी भूल का एहसास हो गया। रानी गाज माता से प्रार्थना करने लगी। मेरी भूल के कारण ऐसा हो गया और पश्चाताप् करने लगी। हे गाज माता मेरी भूल क्षमा कर दो। मैं आपकी कडाही अवश्य करूँगी। मेरा लडका ला दो गाज माता ने प्रसन्न होकर उसका लडका ला दिया तथा भील दम्पति माता ने प्रसन्न होकर उसका लडका ला दिया तथा भील दम्पति का घर भी सम्पन्न हो गया तथा एक पुत्र भी प्राप्त हो गया।
तब रानी ने गाज माता का श्रृंगार किया और उसकी शुद्ध घी के हलवे की कडाही की। हे गाज! माता जैसे तुमने भील दम्पति को धन दौलत और पुत्र दिया तथा रानी का पुत्र वापिस ला दिया उसी तरह हे माता! सबको धन और पुत्र देकर सम्पन्न रखना।