Homeतिलिस्मी कहानियाँ08 – समुंद्री राक्षस | Samundri Rakshas | Tilismi Kahaniya

08 – समुंद्री राक्षस | Samundri Rakshas | Tilismi Kahaniya

दरअसल वो व्यक्ति जिसने बलराम को यह सारी बातें बतायी थीं वो तों उस जादूगर का ही एक विशेष राक्षस सुमेरु है।

सुमेरू दिखने में अत्यंत भयानक, विशाल और मोटा प्राणी है जो इंसानी भेष भी ले सकता है और उसने यह काम उस जादूगर के कहने पर ही किया था।

दरअसल वह जादूगर इन सभी पर काफी लंबे समय से नजर रखे हुए था इसीलिए उसे पता था कि करण और उसके सारे मित्र उस सुनहरी नीली चिड़िया को आजाद करने के लिए अपनी यात्रा शुरू कर चुके हैं। इसीलिए वह उनके इस यात्रा को असफल करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहा था।

वहीं करण और उसके मित्र जानकीमाया को ऐसे शीशे में कैद हुआ देखकर काफी हैरान हो जाते हैं।

बलराम: “तो करण! मैं तुम्हें उस बाबा का पता देता हूं। तुम वहां पर जाओ और वह बाबा जो तुमसे कहें वही करना। अगर तुमने कोई भी चालाकी दिखाने की कोशिश करी तो मैं इस चिड़िया को भी मार दूंगा!”

करण: “ठीक है मैं तुम्हारा कार्य अवश्य करूंगा परन्तु तुम इस चिड़िया को कोई हानि मत पहुंचाना!”

बलराम: “अवश्य! परन्तु तुम अपने एक ही मित्र के साथ जाओ और बाकी मेरे साथ यही रहेंगे!”

टॉबी: “लेकिन मुझे तो करण के साथ जाने दो!”

बलराम (गुस्से में): “मैंने कहा ना कि वो सिर्फ अपने एक मित्र के साथ ही जा सकता है!”

बलराम की यह बात सुनकर टॉबी दुखी हो जाता है और प्यार से करण की ओर देखने लगता है लेकिन करण भी मजबूर था वह कुछ नहीं कर सकता था।

करण को ना चाहते हुए भी बलराम की बात माननी पड़ती है वह जयदेव को अपने साथ लेकर बलराम द्वारा बताए गए पते पर चला जाता है। थोड़ी देर बाद वो लोग यहां वहां से पूछते-पूछते उस बाबा तक पहुंच ही जाते हैं।

तो जैसे ही दोनों उस बाबा को देखते हैं वो उनके पास जाते हैं और उन्हे प्रणाम करते हैं। दरअसल बाबा जी प्रतिदिन उसी जगह पर तपस्या किया करते थे।

वहीं बाबा उन दोनों को देखते ही समझ जाते है कि दोनों बलराम के कहने पर ही यहां आए हैं और वह गुस्से में आ जाते हैं।

बाबा: “लगता है तुम दोनों को प्राण प्यारे नहीं है? तुम दोनों को पता भी है कि जिन-जिन ने बलराम की बहन के श्राप को तोड़ने मे उसकी सहायता की वो अपने प्राण खो बैठा है !”

बाबा की यह बात सुनकर दोनों थोड़ा भयभीत हो जाते है लेकिन अपने लक्ष्य से भटकते नहीं है।

जयदेव: “बाबा जी, हमें अपने प्राणों की चिंता नहीं है, आप हमें बताइए कि हमें क्या करना होगा?”

बाबा: “ठीक है तुम दोनों यही चाहते हो तो, आओ मेरे साथ!”

तो बाबा उन दोनों को एक नदी के पास ले चलते हैं।

बाबा: “यह नदी देख रहे हो? इस नदी में एक बेहद खतरनाक घड़ियाल रहता है और हाँ, उसे कोई साधारण घड़ियाल समझने की भूल भी मत करना वह एक जादुई घड़ियाल है। तुम दोनों को उस घड़ियाल से लड़ना होगा और अगर तुम दोनों जीत गए तो मैं बलराम की बहन को आजाद कर दूंगा!”

करण (गहरी सांस लेते हुए): “ठीक है बाबा जी!”

तो बाबा उन दोनों को सब कुछ बता देते हैं और बताने के बाद उस घड़ियाल का नाम तीन बार पुकारते हैं।

बाबा: “लंकी …. लंकी…. लंकी!”

और तभी वहां पर वह घड़ियाल प्रकट हो जाता है और बाबा वहां से चले जाते हैं। अब देखना यह था कि दोनों मित्र किस प्रकार लंकी घड़ियाल का सामना करते हैं। वह घड़ियाल देखने में काफी बड़ा और बेहद खतरनाक दिखाई दे रहा था।

करण: “डरो मत मेरे मित्र, अगर हम डरेगे तो यह हम पर हावी हो जायगा!”

जयदेव: “हम्म! तुम बिल्कुल सही कहते हो मित्र!”

तभी अचानक से ना जाने कैसे कई सारे उसी के जैसे घड़ीयाल वहां पर अपने आप उत्पन्न हो जाते हैं।

तभी दोनों हिम्मत करते हैं और उन सभी घडियालों से एक-एक करके निपटने लगते है क्योंकि दोनों को उस नीली चिड़िया के आने के कारण शक्ति मिल गई थीं इसीलिए दोनों लोग काफी वीरता और बहादुरी से उन घड़ियालो का सामना करने लगते हैं।

कि तभी पीछे से एक घड़ियाल जयदेव पर आकर हमला करने ही वाला होता है कि करण उसे देख लेता है और उसे अपनी तलवार से आधा शरीर काट देता है।

तो बस ऐसे ही दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं और धीरे-धीरे उन घडियालो को एक एक कर् के मार गिराते हैं लेकिन तभी दोनों देखते हैं कि वे दोनों जितना उन घड़ीयालों को मारे जा रहे थे उनकी तादात उतनी ही बढ़ती जा रही थी।

वे तो दुगनी तादात में उत्पन्न हो रहे थे क्योंकि बाबा जी ने तो पहले ही कहा था कि वह कोई साधारण घड़ियाल नहीं है बल्कि एक जादूई घड़ियाल है यानी कि यह सब लंकी घड़ियाल ही कर रहा है।

करण: “जयदेव हमें लगता है कि हमें लंकी को ढूंढना चाहिए क्यूंकि यह सारे घड़ियाल वही उत्पन्न कर रहा है और यह एक सब केवल भ्रम है हम दोनों को हराने के लिये! हमें यह जानना होगा कि इन सभी घड़ीयालों के बीच लंकी कौन सा है?”

करण और जयदेव दोनों लड़ते-लड़ते काफी थक जाते हैं लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारते हैं क्योंकि उनके दोस्त और उस सुनहरी नीली चिड़िया की जान दांव में लगी थी और उन दोनों को किसी भी हाल में यह लड़ाई जितनी थी।

तभी करण अपनी नजर यहां-वहां घूम आता है और देखता है कि उन घड़ियालो में एक घड़ियाल ऐसा है जिसके सिर पर एक निशान बना हुआ है और वह यह देखकर तुरंत समझ जाता है कि यही लंकी है, लंकी उस समय जयदेव की बाई ओर काफ़ी दूर था।

करण: “जयदेव, वो देखो, मैं समझ गया हूं कि इनमें से लंकी कौन है! वह देखो अपनी बायीं ओर, चलो हम उस पर वार करते हैं तभी यह सब खत्म होगा नहीं तो यह सब चलता ही रहेगा!”

जयदेव: “करण तुम बिल्कुल सही कह रहे हो चलो!”

तो इसके बाद दोनों दोस्त उस घड़ियालों की भीड़ को चीरते हुए लंकी के पास पहुंच जाते हैं और यह देख कर लंकी अचंभे में पड़ जाता है।

लंकी (चौंकते हुए): “अरे, आज तक जितने मनुष्य यहां आए आये वे बस मेरे सैनिकों को ही मारने में लगे रहे और उनका ध्यान मुझ पर कभी नहीं गया परन्तु तुम दोनों का ध्यान कैसे आया मुझ पर!?”

करण: “क्योंकि हम तुम जैसे राक्षस का वध करने ही आए हैं!”

ओर तभी दोनों लंकी पर हमला कर देते हैं लेकिन उस को हराना काफी आसान नहीं था, दोनों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। लेकिन तभी करण उसकी पीठ पर बैठकर उसके पीठ पर उस तलवार से वार करता है और वहीं जयदेव उस पर आगे से बात करता है और दोनों की बहादुरी से वे उसे मर गिराते है।

तो अगले एपिसोड में हम जानेंगे कि क्या वाकई में लंकी का वध हो चुका है? या ये कोई छल था।

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