रूस का बादशाह पीटर
रूस का बादशाह पीटर अपने देश की उन्नति के लिए बहुत उत्सुक था| इसी कारण वह बहुत समय तक यूरोप के देशों में रहा ताकि वह उन देशों की उन्नति के अनुरूप रूस को भी आगे की ओर ले जा सके| इसी समय के दौरान वह एक मज़दूर का भेष बनाकर हॉलैण्ड देश में गया और वहाँ बहुत समय तक जहाज़ों का काम सीखता रहा| पूरा कारीगर बन गया| वहाँ उसको वे रूसी भी मिले जिनको उसने विद्रोह के अपराध में देश-निकाला दिया हुआ था| वहाँ रहकर उनका चाल-चलन ठीक हो चुका था| अब बादशाह ने तो उन्हें पहचान लिया, लेकिन वे बादशाह को मज़दूर के भेष में न पहचान सके| बादशाह ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं और कहाँ से आये हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि हम रूसी हैं और रूस से निकाले गये हैं|
बादशाह ने कहा, “मैं भी रूस से आया हूँ|” इतना कहना था कि उनका आपस में बहुत प्यार हो गया| जब बादशाह वापस आने लगा तो उनसे बोला कि चलो, आप भी मेरे साथ चलो; मेरी बादशाह के साथ दोस्ती है| मैं आपकी सिफ़ारिश कर दूँगा, वह आपको कुछ नहीं कहेगा| उन्होंने मान लिया| जब रूस की बन्दरगाह पर पहुँचे तो आगे बड़े-बड़े अफ़सर बादशाह के स्वागत के लिए खड़े थे| ख़ूब बाजे बजने लगे, आतिशबाज़ियाँ चलने लगीं कि उनका बादशाह आ गया है| जब उन्होंने देखा कि यह तो वही है जो हमारे साथ मज़दूरी करता था तो हैरान रह गये!
ठीक इसी तरह सन्त हमारे बीच आकर रहते हैं और हमारे जैसा ही जीवन बिताते हैं, लेकिन जब हमारी आँखें खुलती हैं तब पता चलता है कि वे किस हस्ती के मालिक हैं|
गुरु स्थूल शरीर में ही सीमित नहीं होता| लोगों की रहनुमाई
करने, उन्हें समझाने, उनसे हमदर्दी दिखाने, उनसे प्रेम करने, उनमें
विश्वास और भरोसा पैदा करने, उनमें अपने अन्दर शान्ति और
आनन्द की तलाश का शौक़ पैदा करने, उन्हें रास्ता दिखाने, उन्हें
एक मिसाल बनकर समझाने, उनमें दैवी गुण पैदा करने और उन्हें
इस स्थूल शरीर से निकालकर सूक्ष्म शरीर में ले जाने के लिए
गुरु इनसानी चोला धारण करता है| (महाराज सावन सिंह)