एकादशी माहात्म्य – एकादशी व्रत-उद्यापन विधि
एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता है, जब व्रत रखने वाले श्रद्धालु, स्त्री-पुरुष कुछ समय तक नियमित या वर्षों तक निश्चित संख्या में नियमित व्रत करते हैं| भगवान् को साक्षी मानकर व्रत के संकल्प की पूर्णता अन्तिम व्रत के पश्चात् उसके उद्यापन करने पर पूरी होती है| व्रतों के संकल्प का पुण्यफल तब ही मिलता है, जबकि उसका उद्यापन अर्थात् समापन विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न किया जाता है, अन्यथा वह एकादशी व्रत अधूरा ही माना जाता है| उद्यापन किये बगैर कोई भी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता| इसलिए नियमित एकादशी व्रत करने वाले सभी भक्तजनों को उद्यापन के संकल्प को सम्पूर्ण पूजन विधि सहित सम्पन्न करके संकल्प छोड़ना चाहिए|
एकादशी व्रत-उद्यापन अग्रहण कृष्ण पक्ष की एकादशी को करना चाहिए| माघ में अथवा भीम तिथि को भी उद्यापन किया जा सकता है|
दशमी के दिन एक समय भोजन करें, एकादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र होकर उद्यापन करें|
संकल्प लेने में शुक्ल पक्ष की अथवा कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत का उद्यापन करने का संकल्प करें|
बारह ब्राह्मणों को घर पर भोजन कराने का उल्लेख मिलता है| एकपक्षीय एकादशी के उद्यापन में अथवा दोनों पक्षों की एकादशी के उद्यापन में 26 वायन दिया जाता है|