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जब फ़ारस के मशहूर सूफ़ी महात्मा ख़्वाजा हाफ़िज़ ने अपने दीवान में कहा कि ‘ब मै सज्जादाह रंगीं क़ुन गरत पीरे-मुग़ां गोयद’ यानी अगर मुर्शिद हुक्म दे तो शराब में मुसल्ला रँग ले, तो इस बात पर हंगामा मच गया, क्योंकि क़ुरान मजीद के अनुसार मुसलमानों में शराब हराम मानी जाती है और ऐसी बात कहना कुफ़्र है|

कबीर साहिब ने मगहर से काशी में रिहाइश कर ली थी और वहीं सत्संग करना शुरू कर दिया था| उनका उपदेश था कि मनुष्य को अपने अन्दर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिए|

तुलसी साहिब महाराष्ट्र के पूना और सतारा के युवराज थे| युवा अवस्था में ही उन्हें पता चल गया था कि उनके पिता जी राज-पाट त्यागना चाहते हैं और राज्य की सारी ज़िम्मेदारी उनके कन्धों पर पड़नेवाली है|

इब्राहिब अधम ने कुछ वर्ष अपने सतगुरु कबीर साहिब के चरणों में रहकर सेवा की और फिर उनका आशीर्वाद प्राप्त करके उनसे विदा लेकर आप बुख़ारा आ गये| परन्तु अब वह बादशाह नहीं बल्कि एक फ़क़ीर के टूर पर लौटे थे|