फ़क़ीर और साहूकार
एक फ़क़ीर का नियम था कि वह जिस गाँव में जाता था, रोटी ऐसे व्यक्ति के घर खाता था जिसकी कमाई हक़ की होती थी|
एक फ़क़ीर का नियम था कि वह जिस गाँव में जाता था, रोटी ऐसे व्यक्ति के घर खाता था जिसकी कमाई हक़ की होती थी|
एक बार हज़रत मुहम्मद साहिब अपने दोस्तों और इमामों को मस्जिद में ले गये और पूछा, “आपके पास क्या-क्या है?”
एक महात्मा बाज़ार में से गुज़र रहा था| रास्ते में एक कुँजड़े ने खजूरें बेचने को रखी हुई थीं| मन ने कहा कि ये खजूरें लेनी चाहिएँ|
जब फ़ारस के मशहूर सूफ़ी महात्मा ख़्वाजा हाफ़िज़ ने अपने दीवान में कहा कि ‘ब मै सज्जादाह रंगीं क़ुन गरत पीरे-मुग़ां गोयद’ यानी अगर मुर्शिद हुक्म दे तो शराब में मुसल्ला रँग ले, तो इस बात पर हंगामा मच गया, क्योंकि क़ुरान मजीद के अनुसार मुसलमानों में शराब हराम मानी जाती है और ऐसी बात कहना कुफ़्र है|
एक बार एक हंस एक समुद्र से उड़कर दूसरे समुद्र को जा रहा था| रास्ते में थककर एक कुएँ के किनारे बैठ गया|
दोपहर का वक्त था| बादशाह शाहजहाँ को प्यास लगी| इधर-उधर देखा, कोई नौकर पास नहीं था|
कबीर साहिब ने मगहर से काशी में रिहाइश कर ली थी और वहीं सत्संग करना शुरू कर दिया था| उनका उपदेश था कि मनुष्य को अपने अन्दर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिए|
तुलसी साहिब महाराष्ट्र के पूना और सतारा के युवराज थे| युवा अवस्था में ही उन्हें पता चल गया था कि उनके पिता जी राज-पाट त्यागना चाहते हैं और राज्य की सारी ज़िम्मेदारी उनके कन्धों पर पड़नेवाली है|
दादू जी एक पूर्ण सन्त हुए हैं| उनका नाम इसलाम धर्म में हुआ था| एक बार दो पण्डित आपके पास इस ग़र्ज़ से आये कि चलकर सत्संग सुनें और गुरु धारण करें|
पराशर जी सारी उम्र योगाभ्यास में रहे| पूर्ण योगी होकर घर को वापस आ रहे थे| रास्ते में एक नदी पड़ती थी|